वसन्त का मानवीकरण....महावर !!
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अंगशुची, मंजन,
वसन, मांग, महावर, केश। तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।। मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध।
अर्थात अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, मांग भरना, महावर लगाना, बाल संवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दांतों में मिस्सी, आंखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना सौभाग्य स्त्रियों के लिए शास्त्रों में बताया गया है।
हिन्दू धर्म में छोटे- बड़े सभी प्रकार के शुभ कार्य महावर के बिना शुरू नहीं होते है। भारत में विवाह, त्योहार,पूजा आदि शुभकार्यों में पैरों में महावर लगाने का प्रचलन है। महावर को ‘आलता’ व ‘जावक’ भी कहा जाता है। यह लाल रंग का तरल पदार्थ होता है जिसे महिलायें पायल और बिछिया पहनने के साथ ही अपने पैरों में लगाती हैं। महावर या आलता लगाने से महिलाओं के पैर और भी अधिक खूबसूरत लगने लगते है।
बिना महावर के दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। इसे सुहाग की निशानी भी माना जाता है। आज भी बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि जगहों पर विवाह के समय दुल्हन के पैरों पर महावर लगाने की परम्परा प्रतलित है। दक्षिण में नृत्य समारोहों में महावर लगाई जाती है। बघेलखंड में दुल्हन के पैर में महावर लगाने के साथ साथ दूल्हे के पैरों में भी लगाने की प्रथा है।
कुछ जगहों पर माना जाता है कि दुल्हन के महावर लगाने से पहले किसी सुहागन महिला के पैरों में महावर लगाया जाना चाहिए। लेकिन
ध्यान देने योग्य बात यह है कि आलता केवल पैरों या हाथों की शोभा ही
नहीं बढ़ाता बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी फायदेमंद होता है।
प्राकृतिक तरीके से बना आलता शुद्ध और सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसका निर्माण पान के पत्ते या लाक से किया जाता है। पैरों में महावर या आलता लगाने से मेहंदी की ही तरह पैरों को ठंडक मिलती है, जिससे तनाव कम होता है। बारिश के मौसम में महावर पैरों की हिफाजत करता है। बरसात के मौसम में काफी महिलाओं को पैर की उंगलियों के बीच में खुजली, सड़न आदि अनेक परेशानियाँ हो जाती हैं। महावर लगाने से इन परेशानियों से निजात मिलती है। इसीलिए कृषक महिलाएं भी पानी वाले खेत में घुसने से पहले महावर जरूर लगाती हैं क्योंकि ज्यादा समय तक पानी में रहने से उनके पैरों के तलवे कट जाते हैं, महावर लगाने से पैर सुरक्षित रहते हैं।
हिंदू उपनिषदों में महावर का वर्णन मिलता है। इसे हिंदू धर्म में सोलह श्रृंगार का एक हिस्सा माना गया है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण अपनी प्रेमिका राधा के पैरों में महावर लगाते थे वहीं से यह प्रथा शुरू हुई। वैसे भारत में पहले पैरों और हाथों में महावर ही लगाया जाता था, मेंहदी या हिना मुस्लिम शासक अपने साथ भारत लेकर आए और तब से मेंहदी लगाने का चलन शुरू हो गया। लेकिन हिना के आने के बाद भी महावर लगाने का चलन महिलाओं में आज भी कम नहीं हुआ।
वैसे तो महावर लगाने
का चलन काफी पुराना है पर बदलते समय के साथ आलाता लगाने के डिजाइनों में भी बदलाव आ रहा है। बॉलीवुड मूवीज ने भी इस ट्रेंड को काफी बढ़ावा दिया है और आलता के नए-नए डिजाइन इंट्रोड्यूस किए हैं। मेहँदी की तरह अब महावर के भी अलग-अलग डिजाइंस उपलब्ध हैं। और अब इस प्रथा ने फैशन का रूप धारण कर लिया है।
इसे महावर कहूँ,
या महज चटख सुर्ख रंग
उगते-डूबते सूरज
की आभा, वसन्त का मानवीकरण, या कुछ और ।
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