प्राचीनकाल में मानव की आवश्यकताएं
रोटी,कपड़ा और मकान तक ही सीमित थीं। परन्तु समय के साथ आवश्यकताएं बढ़ने लगीं, कहते भी हैं कि ‘आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है’.... टेलीविजन का अविष्कार भी मानव की आवश्यकताओं
का ही परिणाम है। टेलीविजन का आविष्कार 1925 में इंग्लैण्ड के बेयर्ड नामक वैज्ञानिक
ने किया था। यह भारत में लगभग 1957 में आया। लेकिन बहुत कम समय में ही यह घरों से लेकर
झोपड़ियों तक में पहुँच गया।
टेलीविजन पर हम घर बैठे ही धार्मिक
स्थलों, ऐतिहासिक इमारतों,समुद्र तल से लेकर चंद्रमा की सतह से प्राप्त चित्रों, विश्व में घटित होने वाली घटनाओं के
बारे में देख व सुन सकते हैं। टेलीविजन पर प्रतिदिन प्रसारित होने वाले पढ़ने के आसान
तरीके व ज्ञानवर्द्धक प्रोग्रामों ने अनपढ़ व कम पढ़े-लिखे लोगों में भी ज्ञान की ज्योति
जला दी है। आप इस पर ज्ञान से लेकर रसोईघर से सम्बन्धित कार्यक्रम देख सकते हैं।
यह तो सब जानते हैं कि जब किसी चीज
का सीमा से अधिक उपयोग किया जाने लगता है तो वह वरदान के स्थान पर अभिशाप बन जाती है।
ऐसा ही कुछ टेलीविजन के विषय में भी है।
टेलीविज़न मनोरंजन का सबसे आसान माध्यम
बन चुका है पर कई लोग टेलीविज़न को एक आदत बना चुके हैं और इसकी वजह से यह मनुष्य जीवन
के लिए एक हानि भी बन चुका है। इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। आज
के समय में तो शायद यह कहना भी गलत नहीं होगा कि टेलीविजन के फायदे कम और नुकसान ज्यादा
हैं।
टेलिविज़न समय बिताने का एक बेहतरीन
उपकरण है पर अगर टेलीविज़न देखना आदत बन जाए तो यह आपका महत्वपूर्ण समय भी बर्बाद कर
सकता है। बच्चे टेलीविज़न की लत का शिकार बन जाते हैं जिसके कारण वह अपने पढ़ाई के
समय पर भी टीवी देखने लगते हैं। इसका उनकी शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए टेलीविज़न
देखने का एक निर्धारित समय तय होना चाहिए जिससे यह आपकी आदत ना बन सके।
टेलीविज़न ज्यादा देखने पर आँखो पर
इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। एक ही वस्तु पर ज़्यादा ध्यान से देखने पर आँखो पर दबाव
पड़ता है।
कुछ ऐसे टेलीविज़न शो होते हैं जो बच्चों
के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालते हैं। कुछ ऐसे 18+ TV चैनल या शो, कुछ क्राइम से जुड़े शो या कुछ ऐसे विज्ञापन जो बच्चों के लिए बिलकुल सही नहीं
हैं खुले आम टीवी पर चल रहे हैं। हमें यह समझना होगा कि टेलीविज़न पर क्या बच्चों के लिए सही है और क्या
बुरा क्योंकि इससे बच्चों का व्यवहार बदल सकता है और उनके मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव
भी पड़ सकता है।
कुछ बच्चे टेलीविज़न के आदी हो जाते
हैं जिसके कारण वह अपने खाने, पीने और सोने का समय भी भूल जाते हैं।
ऐसे में अनिद्रा, अपचन, और कई प्रकार के मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियाँ होने का खतरा रहता है।
कुछ बच्चे टीवी देखते हुए खाना खाते
हैं जिसके कारण वह जरुरत से ज्यादा खा लेते हैं और वही उनके मोटापे का कारण बनता है।
अधिक समय तक टीवी देखने से बच्चों की सेहत पर असर पड़ रहा है। साथ ही बच्चों में आत्मसम्मान
और खुशी की भावना भी कम हो रही है। ऐसे बच्चों को भावनात्मक समस्या, चिड़चिड़ापन और अवसाद से भी गुजरना
पड़ रहा है।
सर्वे से पता चला कि दिनभर में दो घंटे
से ज्यादा समय टीवी या कंप्यूटर पर व्य़तीत करने वाले बच्चों में से 60 फीसदी में स्वभाव से जुड़ी समस्याएं पायी
गई।
अगर हम आसान शब्दों में सोचें तो टेलीविज़न
तब तक एक सही उपकरण है जब तक उसका इस्तेमाल करके मन को शांत या आराम दिया जाए। परंतु
इसे अपनी आदत बना लेना सही नहीं है। अगर आपके बच्चे भी धीरे-धीरे टेलीविज़न देखने में
व्यस्त होते जा रहे हैं इसके नुकसानों को समझाएं
और टेलिविज़न देखने का एक निर्धारित समय तय करें।
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