संगीता की
बेटी का आज दसवीं का रिजल्ट आने वाला था। वह आज बेटी के साथ रहना चाहती थी पर उसे
जिले की शिक्षा अधिकारी होने के नाते आज दफ्तर जाना भी जरूरी था।वह जल्दी आने का
वादा करके दफ्तर चली गई। बाजार से सबके लिए मिठाई लेकर जब वो उत्साहित होकर घर
पहुँची तो वहाँ दुख और गुस्से का माहौल था। बेटी रोये जा रही थी क्योंकि उसके 62
प्रतिशत अंक जो आये थे।सबसे पहले उसने बेटी को चुप कराया और पास होने के लिए बधाई
दी। जब उसने बेटी को मिठाई खिलानी चाही तो वह बोली,
“सॉरी माँ!” और यह कहकर फिर रो पड़ी! यह देख संगीता ने अपनी बेटी से बोला कि अगर
मैं तुमसे यह कहूँ कि मुझे10वीं में 60 प्रतिशत अंक भी नहीं मिले थे तो क्या तुम
मानोगी? इस पर एक मिनट के लिए उसकी बेटी ने उसकी तरफ देखा और फिर बोली ऐसा कैसे हो
सकता है! आप तो इतनी बड़ी पोस्ट पर हो! इस पर संगीता ने उसे समझाते हुए बोला कि यही
मैं समझाना चाहती हूँ कि ज़रूरी नहीं है कि आज की हार या जीत आपका भविष्य निर्धारित
करे! मैं मानती हूँ और जानती भी हूँ कि समाज में फर्स्ट डिवीजन को प्रमुखता दी
जाती है। और व्यक्तिगत तौर पर भी हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। लेकिन अगर मेहनत करने
के बाद भी यदि हमें मन चाहा परिणाम नहीं मिला इसका अर्थ यह तो नहीं हैं कि हम कुछ
कर नहीं सकते। मेरे तो बहुत मेहनत करने के बाद भी 60 प्रतिशत से अधिक अंक नहीं आये।
तब घर पर सभी को यही लगता था कि पढाई करवाने से बेहतर है कि मेरी शादी करवा दी
जाये। पर तुम्हारे नाना किसी की नहीं मानी और मेरी आगे पढ़ने में मदद की, मैंने बी.ए
किया फिर एम.ए. किया। वहाँ भी मेरे अंक गर्व करने लायक कभी नहीं आये लेकिन स्नातक
होते ही मैं राज्य सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गई, और मेरी मेहनत रंग
लाई, मैं जिला शिक्षा अधिकारी चुनी गई। इसलिए
बेटा यह याद रखो कि अभी तो ज़िन्दगी की मैराथन दौड़ का पहला
राउंड पूरा हुआ है......फिनिशिंग लाइन पे न जाने सबसे पहले कौन पहुँचेगा। तुम सोचो
यदि मैं कम अंक मिलने के कारण पहले ही हार मान लेती तो यहाँ पहुँचती? माँ की बात सुनकर बेटी के चेहरे के भाव बदल रहे
थे। संगीता समझ चुकी थी उसकी बेटी अब अपने आगे के जीवन के लिए तैयार है।
यह कहानी
हर उस घर की है जहाँ परीक्षा का परिणाम इच्छानुसार नहीं आता है। प्रतिवर्ष 10 वी
और 12वीं क्लास की परीक्षा देने वाले बच्चों को रिजल्ट्स का इतना इंतजार नहीं
होता, जितनी बेसब्री से आज उनके अभिवावकों को होता है। परीक्षा में 95% अंक प्राप्त करने वाले बच्चों के माता- पिता अपने
बच्चे की सफलता को बहुत गर्व के साथ साझा करते हैं। ऐसा होना स्वाभाविक भी है।
लेकिन इसके विपरीत जो बच्चे 60-62 प्रतिशत अंक लेकर पास होते हैं , या परीक्षा में
अच्छे अंक नहीं ला सके, ये सोचकर निराश और हताश हो जाते हैं कि वे अपने माता-पिता
की आशाओं और आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके । साथ ही उनको तरह-तरह की बातों या
तानों का भी सामना करना पड़ता है।
ऐसे में
बच्चे का मनोबल टूट जाता है और साथ ही जीवन में आगे बढ़ने और सफल होने का विश्वास
उनके अंदर खत्म होने लगता है। जबकि यह समझना और बच्चे को यह समझाना कि अंक ही सब
कुछ नहीं, बल्कि निरंतर मेहनत करना महत्वपूर्ण है ज्यादा अनिवार्य है। आज के दौर
में बच्चों पर कई तरह के मानसिक दवाब होते हैं, ऐसे में उनके आत्मविश्वास को ठेस पहुँचने
पर कई बार वह गलत कदम भी उठा लेते हैं।
इसलिए आज
के समय में ज़रुरत है बच्चों को यह समझाने कि जरूरी नहीं कि जो आज टॉपर है, वो भविष्य
में भी सफल ही होगा, या जो आज औसत है वो कल भी जीवन में
फेल ही होगा। सच तो यह है कि सफलता निरन्तरता का नाम है। जीवन में सफलता वो ही
पाता है जो धैर्य-पूर्वक लगा रहता है और बिना हार माने अपने लक्ष्य को पाने के लिए
निरन्तर प्रयत्नरत् रहता है।
साथ ही, माता-पिता
को भी अपने बच्चो की तुलना कभी किसी और से नहीं करनी चाहिए और उन्हें यह समझना
चाहिए हर एक बच्चा अलग है,अद्भुत है और अतुल्य है। कम अंक आने
पर बच्चों को ताना देकर उनका मनोबल कम करने की बजाय, “कोई बात नहीं, आगे और मेहनत के साथ अपने मनपसंद
विषय लेकर मन लगाकर पढ़ाई करो....जरूर सफल होगे...यदि पढ़ाई के अलावा किसी और चीज
में रुचि हो तो उसी क्षेत्र में कैरियर बनाओ..” जैसे शब्दों से उन्हें आगे बढ़ने के
लिए प्रेरित करना चाहिए क्योंकि परीक्षा में मिले अंकों को किसी के जीवन या
बुद्धिमत्ता के मूल्यांकन का आधार बनाया जाना उचित नहीं है।
आखिर में हर
किसी को बस यह ध्यान रखना चाहिए कि,
“कोशिश के बावजूद हो जाती है कभी हार, होकर निराश मत बैठना मेरे यार,
बढ़ते रहना आगे हो जैसा भी मौसम, पा लेती मंजिल चीटी भी, गिर गिर कर
कई बार”
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