ईश्वर
ने स्त्री और पुरूष दोनों की संरचना ही समाज में उनकी भागीदारी को देखकर की थी। पुरूष
को हर तरीके से शक्तिशाली बनाया ताकि वह बाहरी दुनिया की ठोकरों व धक्को को झेल सके और स्त्री की रचना इस तरह की गई कि वह घर – गृहस्थी
में सुख- समृद्धि का संचार कर सके। परंतु समय बदल रहा है, पीढ़ी-दर-पाढ़ी सोच
बदल रही है,जरूरतें बढ़ रही हैं और सबके सपनों और इच्छाओं में भी बदलाव आ रहा है। इसी
के मद्देनज़र जहाँ नौकरी करना पुरूषों की
जिम्मेदारी माना में जाता था वहीं आज के दौर में अब स्त्रियाँ भी घर से निकलकर इस
पुरूषप्रधान क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाने लगी हैं।
लेकिन
हर बदलाव अपने साथ कई सवाल भी लाता है और स्त्री की बदलती भूमिका ने भी कई प्रश्न खड़े
कर दिए! क्या महिलाओं का नौकरी करना सही है, क्या इस बदलाव की आवश्यकता है? इत्यादि। इन सवालों का जवाब कहीं न कहीं एक अहम् सवाल में छुपा है कि क्या महिलाएं
बाहर कार्यक्षेत्र में लोगों की पहली पसंद बनती जा रही हैं? अगर हाँ, तो बाकि सवालों की कोई आवश्यकता ही नहीं है और अगर नही, तो क्यों?
महिलाओं
का कार्यक्षेत्र में पहली पसंद बनना या न बनना उनके द्वारा संभाली जा रही
जिम्मेदारी पर निर्भर करता है,साथ
ही,पीढ़ी और सोच पर भी। यदि आज की पीढ़ी और पहले से नौकरी करती आ रही महिलाओं को देखा
जाए,तो उसमे कई अंतर है। आज की युवा पीढ़ी के लिए नौकरी करना जहाँ एक ओर दुनिया
में अपनी एक पहचान बनाने का माध्यम है, वहीं पहले की पीढ़ी में महिलाओं को कहीं न कहीं किसी
दबाव में आकर घर से बाहर कदम रखने पड़ते थे और इसी दबाव के कारण न तो वह
घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी पूरी तरह से निभा पाती थीं और न ही वह नौकरी पर पूरा
ध्यान दे पाती थीं। जिस कारण कहीं न कहीं महिलाओं की काबिलियत पर प्रश्न उठने
लगते थे और इसी कारण आज के समय में भी जब स्त्री हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा
रही हैं, अपने को सिद्ध कर रही है तो भी महिलाओं को नौकरी करनी चाहिए या नहीं इस
पर विचार- विमर्श करना समाज के लिए
अनिवार्य हो जाता है।
आज के दौर में समय के पहिए ने घूमते- घूमते हमें एक ऐसे
मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ हर दिन एक नई जरूरत और नई इच्छा जन्म लेती है। इनको
पूरा करने और जिंदगी को सही ढंग से संवारने के लिए स्त्री-पुरूष दोनों को ही कदम
से कदम मिलाकर अपना पूरा सहयोग देना होगा और इसी का एक भाग है स्त्री पुरुष दोनों का
बाहर नौकरी करना।
बदलती शिक्षा प्रणाली और समाज की सोच ने लड़कियों को आगे
बढ़ने के कई मौके दिए हैं और इसी के फलस्वरूप आज लड़कियाँ अपनी छाप हर क्षेत्र में
छोड़ रही हैं। चाहें वो पढ़ाई हो या नौकरी के अलग-अलग मौके हों, वे हर जगह अपनी
सफलता का प्रमाण दे रही हैं। और इसका एक बड़ा प्रमाण है नियोक्ताओं द्वारा कुछ
नौकरियों जैसे PA Manager, Event Manager आदि के लिए लड़कियों को पहली पसंद मानना क्योंकि समय के
साथ ये देखा गया है कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ लड़कियाँ पुरूषों से बेहतर साबित
हो रही हैं, चाहें यह उनकी केवल मेहनत का परिणाम है या ईश्वर प्रदत्त
कुछ गुणों के कारण।
परन्तु, सच तो यह भी है कि हर सिक्के के दो पहलू होते
हैं- एक अच्छा और एक बुरा। कई बार यह देखा जाता है कि लड़कियों को शारीरिक शोषण,
मानसिक यंत्रणा आदि का सामना करना पड़ता है जिससे खुद महिलाएं भी यह सोचने पर
मजबूर हो जाती हैं की क्या वे सच में अपनी काबिलियत के कारण नौकरी पा रही हैं या
अपनी शारीरिक संरचना में कमजोरियों के कारण जिसका समाज शोषण करता आ रहा है।
परंतु किसी ने सही कहा है “God helps those who help themselves”। आज के समय में लड़कियाँ अपनी कमजोरियों को दूर कर मजबूती
से आगे बढ़ते हिए इस पुरूष प्रधान समाज को हर क्षेत्र में टक्कर दे रहीं हैं और सफल
हो रही हैं। इंदिरा नुई, चंदा कोचर, किरन बेदी, मैरी कॉम,कल्पना चावला....आदि कुछ
ऐसे ही नाम हैं जिन्होंने अलग- अलग पुरूष प्रधान क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है।
यही नहीं एक समय था जब माना जाता था कि फाइटर प्लेन केवल पुरूष ही उड़ा सकते हैं
पर आज लड़किओं ने भारतीय सेना में फाइटर प्लेन पायलट के रूप में भी अपना नाम दर्ज
करा लिया है। अवनि, भावना और मोहना को हमारे देश की प्रथम महिला फाइटर प्लेन चालक
होने का गौरव प्राप्त है। ये सभी युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक हैं। इनसे उन्हें मार्गदर्शन
मिल रहा है उन्हें देख युवा पीढ़ी का मनोबल बढ़ रहा है और वे आगे बढ़ रही हैं। सरकार
द्वारा भी महिलाओं को मिलने वाली अनेक प्रकार की छात्रवृत्तियों और अनेक क्षेत्रों
में महिलाओं के लिए आरक्षित कोटे से उन्हें समाज में आगे आने में मदद मिल रही है
तथा महिलाओं को अपनी पहचान के कारण समाज
में मिलने वाले आदर से भी उनकी इच्छा- शक्ति को बल मिल रहा है।
अतः यह कहना गलत न होगा कि वह समय दूर नहीं है जब लड़कियां हर क्षेत्र में
अव्वल होंगी बस इसके लिए जरूरत है अपनी खामियों को जानकर दूर करते हुए निरंतर आगे
कदम बढ़ते रहने की ताकि हम सभी एक दिन कह सकें "लड़का – लड़की एक समान, दोनों को समाज में मिलता रहे एक सा मान-सम्मान।"
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