भगवान शिव शंकर के देशभर में ही नहीं बल्कि पूरे
विश्वभर में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका इतिहास रामायण, महाभारत
आदि से जुड़ा हुआ है। ऐसा ही भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की
राजधानी देहरादून में स्थित है। जिसे टपकेश्वर मंदिर या टपकेश्वर महादेव मंदिर के
नाम से जाना जाता है। तथा यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। इसका संबंध महाभारत काल से होने के कारण यह
मंदिर अपने आप में खास माना जाता है।
टपकेश्वर कहने का कारण-
टपक एक हिन्दी शब्द है, जिसका मतलब है
बूंद-बूंद गिरना। मंदिर में स्थित शिवलिंग पर चट्टानों से लगातार पानी की बूंदे
टपकती रहती हैं इसके कारण इस मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है।
मंदिर
श्री टपकेश्वर एक महान तीर्थस्थल है यहाँ भगवान
शिव ने अनेकों बार दर्शन देकर श्रद्धालुओं व भक्तों का कल्याण किया। यह मंदिर
भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहाँ प्रकृति शिव का जलाभिषेक स्वयं
करती है। शिव का यह मंदिर , टौंस
नामक एक मौसमी नदी के तट पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह शिवलिंग पहाड़ की
तलहटी में एक प्राकृतिक गुफा के अंदर है और यहाँ सिर झुका कर प्रवेश करना पड़ता
है। मंदिर में दो शिवलिंग हैं। ऐसा माना
जाता है कि श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर में जो प्रमुख शिवलिंग है वह स्वयंभू है
अर्थात् इस शिवलिंग को किसी ने नहीं बनाया है। श्री टपकेश्वर मंदिर में 5151 रूद्राक्षों से पूरी तरह बने शिवलिंग के भी दर्शन कर सकते हैं।
इस मंदिर में वैष्णों माता का भी मंदिर बना है
इसमें एक प्राकृतिक गुफा है जो मां वैष्णों देवी स्थल की अनुभूति कराती है। साथ ही
यहाँ हनुमान जी की भी एक विशाल मूर्ति है जो कि इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है।
मंदिर के आस पास कई गंधक के झरने भी हैं।
सोमवार के दिन मंदिर में श्रद्धालुओं की ज्यादा
भीड़ होती है। शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।मंदिर
में जाने के लिए लगभग 300 सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं तथा अक्षम भक्तों के लिए लिफ्ट
द्वारा जाने की व्यवस्था भी है।
मंदिर का निर्माण
मंदिर के निर्माण के बारे में भी अनेक मान्यताएं
हैं कोई कहता है कि यहाँ मौजूद शिवलिंग स्वयंभू है तो वहीं कुछ लोगों का मानते हैं
कि पूरा मंदिर ही स्वर्ग से उतरा है लेकिन मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया
इसके सिद्ध प्रमाण नहीं हैं। मान्यता है कि यह मंदिर आदि अनादिकाल से यहाँ स्थित
है और यह देवताओं की तपस्थली था, जहाँ वे भगवान शिव की आराधना किया करते थे। कालांतर
में सिद्ध पुरूषों व ऋषि- मुनियों ने यहाँ शिव की तपस्या की और भगवान शिव ने भी
अनेक बार प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिये। यह भी कहा जाता है कि इस जगह का
वर्णन देवेश्वर और तपेश्वर नाम से स्कंद
पुराण के केदार खंड में मिलता है।
इस जगह से जुड़ी कुछ लोकप्रिय मान्यताएं
माना जाता है कि कौरवों व पाडवों के गुरू
द्रोणाचार्य जी ने यहाँ कड़ी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे अलौकिक
अस्त्र-शस्त्र और धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त किया था। यहीं पर द्रोण पुत्र अश्वत्थामा
का भी जन्म हुआ था। इसी जगह को द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थली व तपस्थली माना
गया है। यह भी मान्यता है कि एक बार अश्वत्थामा ने अपनी माता कृपि से दूध पीने की
इच्छा जाहिर की, जब उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी तब अश्वत्थामा ने
एक पांव पर खडें होकर छह मास तक भगवान शिव की
तपस्या की, पूर्णमासी के दिन तपस्या पूर्ण हुई जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने गुफा से दुग्ध की
धारा बहा दी। तब अश्वत्थामा ने भगवान के चरणों से दूध ग्रहण किया
और अपनी भूख प्यास मिटायी।
तब से ही यहाँ पर दूध की धारा शिवलिंग पर टपकने लगी, जो समय
के साथ-साथ जल की धारा में परिवर्तित हो
गई। मान्यता यह भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला था।
कहाँ स्थित है
यह मंदिर देहरादून शहर के बस स्टैंड (ISBT)
से लगभग 5.5 कि॰मी॰ की दूरी पर सेना के गढ़ी कैंट क्षेत्र में स्थित है।
पता - गढ़ी कैंट, डोईवाला
जिला-देहरादून, उत्तराखंड-24800
कैसे पहुँचे
देहरादून देश के कई प्रमुख शहरों से रेल मार्ग से
जुड़ा है। तो आप यहाँ दिल्ली से ट्रेन द्वारा जा सकते हैं।बस और टैक्सी से भी
आसानी से पहुँच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून है। अन्य प्रमुख रेल
स्थानक ज्वालापुर और हरिद्वार हैं। देहरादून रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग
साढ़े सात किलोमीटर है।
वायु द्वारा - निकटतम हवाई अड्डा
जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है।जो यहाँ से करीब 20 किलोमीटर दूर है।
मंदिर जाने के लिए ऑटो रिक्शा और टैक्सी असानी से मिल जाते हैं।
एक बार देहरादून जरूर जायें व खूबसूरत वातावरण
में बसे श्री टपकेश्वर महादेव जी के दर्शन
कर आशीर्वाद जरूर लें। वहाँ आपको निश्चित रूप से असीम शांति का अनुभव होगा।
जय श्री टपकेश्वर महादेव की.....
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