हम देखते हैं कि आमतौर पर नेताओं या
राजनीतिक दलों के लिए सभी कि राय होती है कि उनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर होता
है जिसके चलते उनके व्यक्तित्व पर विश्वास हो ही नहीं पाता। परन्तु यदि ऐसे उदाहरण रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में देखने को
मिले तो कहीं न कहीं मन में कई प्रकार के सवाल आने लगते हैं कि लोग दोगला जीवन
क्यों और कैसे व्यतीत कर लेते हैं?
हर परिवार की तरह हमने भी एक
सोसाइटी में अपना घर लिया और उसके लिए गृहप्रवेश की छोटी-सी पूजा रखी। अपने आसपास के लोगों से जान पहचान, अपना परिचय देने और
अपनी ख़ुशी का भाग बनाने के उद्देश्य से हमने सोसाइटी
के कुछ लोगों को आमंत्रित किया। पूजा खत्म होने के बाद जब सब जाने लगे तो उनमें से
एक महिला मेरे पास आईं उन्होंने पहले बड़ी आत्मीयता के साथ मुझे बधाई दी और फिर
अपना परिचय देते हुए बोली कि मैं आपके ही फ्लोर पर 201 में रहती हूँ। मेरा नाम
निकिता गांधी है। आपको किसी भी तरह की मदद की जरूरत हो तो बिना झिझक बताइयेगा और
अपना फोन नंबर दे दिया। मैं उन्हे दरवाजे तक छोड़ने गई तो उन्होंने घर पर आने के
लिए आमंत्रित किया और फिर मिलते हैं कहकर चली गईं। मुझे बहुत सुखद लगा कि चलो इस
नई जगह पर किसी से तो पहचान हुई।
समय के साथ मैं घर को व्यवस्थित करने में व्यस्त हो गई। कुछ
दिन बाद जब सब काम सुचारू रूप से चलने लगा तो मुझे मिसेज गाँधी का ध्यान आया । वे इतने
दिनों में कई बार मिली और हर बार ही बहुत अपनेपन से मिलती और समय मिलने पर अपने
यहाँ आने के लिए कहना नहीं भूलती थीं। मैंने काम खत्म किया और मिसेज गाँधी के यहाँ
मिलने के लिए उनके घर जा पहुँची। उन्होंने मुस्करा कर मेरा स्वागत किया। उनका घर
एकदम साफ और सामान बहुत ही करीने से सजा हुआ था। हम बैठकर बातें करने लगे। बातों
के बीच ही उन्होंने मुझे बताया कि वे कई ऐसी स्वयं सेवी संस्थाओं से जुड़ी हैं जो
गरीब लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई में मदद के साथ-साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद
करती हैं। साथ ही गरीब लड़कियों की शादी कराने व उनकी गृहस्थी बसाने में भी सहयोग
करती हैं। यह सब सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा और मिसेज गाँधी का व्यक्तित्व और भी
ऊँचा लगने लगा।
मिसेज गाँधी ने बातों के बीच में ही
अपनी कामवाली बाई को बुलाया और चाय लाने के लिए कहा, मैंने चाय के लिए मना किया पर
वो नहीं मानी। थोड़ी देर बाद बाई ट्रे में चाय और बिस्कुट लेकर आई और मेज पर रखकर हाथ
में ट्रे लेकर वहीं दरवाजे पर खड़ी हो गई। मेरा ध्यान उसकी तरफ गया तो मैंने मिसेज
गाँधी से कहा कि शायद वो आपसे कुछ कहना चाहती है। उन्होंने उसकी तरफ देख कर उससे पूछा
क्या बात है? काम खत्म हो गया? उसने हाँ में सिर हिलाया और वह धीमी आवाज में बोली मेम साहब मुझे आप से कुछ
बात करनी थी। उन्होंने उसकी तरफ देखा और कहा ठीक है शाम को कर लेना। पर बाई ने कहा
जरूरी है तो बोली ठीक है कहो क्या कहना है, छुट्टी चाहिए! बाई ने कहा नहीं मेमसाहब
मुझे दो हजार रूपयों की जरूरत है। यह सुनकर मिसेज गाँधी ने कहा तुम्हे पगार
तो मिल गई है न फिर दो हजार रूपये किस
खुशी में चाहिए। बाई ने बताया कि वह अपनी बेटी को बीबीए कराना चाहती है उसी के लिए
कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं। इसलिए उसने मिसेज गाँधी से विनती की आप मेरी मदद कर
देगीं तो मेरा काम आसान हो जायेगा। आप हर महीने मेरी पगार में से काट लीजियेगा।
यह सब सुन
कर मिसेज गाँधी ने कुछ तलकहाट भरी आवाज में कहा कभी सोचा है तुम लड़की को इतना
पढ़ा- लिखा दोगी तो फिर उसके के लिए एक अच्छा पढ़ा- लिखा लड़का भी ढूँढना पड़ेगा।
शादी के लिए पैसों की जरूरत होगी। बड़ी
आफत मोल ले रही हो। बेटी को बी. एड क्यों
नहीं करा देतीं। बी.एड करके नौकरी कर सकती है। मिसेज गाँधी की बात पूरी होने के
बाद कुछ देर मौन रहकर बाई ने जवाब दिया मेमसाहब मैंने तो इतना आगे तक का सोचा ही
नहीं था। आने वाले समय में क्या होगा पता नहीं मैं तो बस उसे अच्छी शिक्षा दिलाना
चाहती हूँ, बाकी आगे की जिंदगी उसकी है, जैसे जीना चाहे। बाई ने अपनी बात खत्म की
तब तक हमारी चाय भी खत्म हो गई थी। वह खाली कप-प्लेट लेकर बाहर चली गई।
बाई के
जाने के बाद मिसेज गाँधी कहने लगी कि इन लोगों की यही परेशानी है ये अपनी चादर
देखकर पैर नहीं पसारते हैं। जहाँ चार पैसे हाथ में आये नहीं वहीं बड़े-बड़े सपने
देखने लगते हैं....। उनकी ये सब बातें सुनकर लगा इनकी कथनी और करनी में कितना अंतर
है कहाँ अभी ये अपने लड़कियों ,महिलाओं के
लिए किये जाने वाले सोशलवर्क के बारे में बता रहीं थी जिसे सुनकर मेरे मन में उनकी
जो छवि बनी थी वह अब बिल्कुल अलग लग रही थी,मुझे उनका व्यक्तित्व बौना लगने लगा था।
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