फिल्म 'यह जवानी है दीवानी' में एक बहुत ही खूबसूरत लाइन है , ".....यादें एक मिठाई के डिब्बे की तरह होती हैं, एक बार डिब्बा खुला तो एक पीस खाने से मन नहीं भरेगा..."। सभी का जीवन खट्टी मीठी यादों से भरा एक पिटारा ही तो है। बचपन की शैतानियाँ, माँ की डांट, भाई -बहन का झगडा, किसी बात पर रूठना-मनाना,दोस्तों के साथ मस्ती और ना जाने क्या क्या......जिन्हें हम उनसे जुडी चीजों को सहेजकर अपने विचारों में संजोकर रखते हैं। और इनका जीवन में एक अलग ही स्थान होता है।
बातें चाहें हम भूल भी जाएँ परन्तु यादें हमेशा याद आती हैं.....और यादें अपने साथ लाती हैं चेहरे पर मुस्कुराहट और आखों में नमी...... यादें ही तो हैं जो दूर होने पर भी पास होने का अहसास कराती हैं। मुझे लगता है इनमें वो ताकत है जो कभी-कभी छूटे को भी जोड देती हैं......
आज अलमारी की सफाई करते समय एक पत्र मिला जिसे पढ़कर न जाने कितनी यादें स्मृति पटल पर आ गई......पत्र को देख कर वही अनुभूति हुई जैसी काफी समय बाद अपने किसी मित्र से मिल कर होती है...कहने को बहुत होता है...परन्तु उस से पहले साथ बिताये गये समय की पुरानी यादें ताजा कर खुश होते हैं,मुस्कराते हैं जैसे कुछ बदला ही न हो.....और यह तो और अधिक ख़ास था क्योंकि यह मेरी छोटी बहन द्वारा अपनी भांजी .....मेरी बेटी की प्रथम वर्षगाँठ पर लिखा गया पत्र था......और आप समझ ही गए होंगे की इस पत्र के साथ मुझे अपने बचपन से ले कर अपनी बेटी तक का बचपन याद आ गया.....
उस पत्र को पढ़कर ऐसा लगा की समय के साथ बदलाव कभी नहीं आने चाहिए, चाहे वो रिश्ते हो या जिंदगी....उस पत्र का कुछ भाग यहाँ आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ....आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि इन पंक्तियों को पढ़ कर आपको भी जीवन की आपाधापी छोड अपने यादों की पोटली खोलनी ही होगी.....
नन्ही-मुन्नी, नटखट,चुलबुली,मीठी,सोनी, रूनझुन,चुनमुन,गुनगुन,सलोनी हमारी खुशबू
छुटकी ने जब आँखे खोली,सोनचिरैया फुदकती आई,फिर उसने नन्ही के कानों में गाई बधाई-
शुभ है दिन जब तुम धरा पर आये।
जीवन में हों रंग हजार,जीवन सदा जगमगाये।।
फिर मौसम ने दी बढ़िया दावत,मौसम का हर रंग आया नक्षत्रों के संग।
सबने मिलकर खूब सजाया, सब मिलकर हँसते रहे गाते रहे खुशबू के संग।
छुटकी की अम्मा ने ढेरो-ढेरो चीजें बनाई
और छुटकी के पापा ने भी सबको गरम- गरम स्वादिष्ट हलवा खिलाया।
पता है फिर क्या किया फिर सबने मिलकर गाना गाया-
सीखा तुम से फूलों ने, मुख देख मंद –मंद मुस्काना,
तारों ने सजल –नयन हो, करूणा-किरणें बरसाना।
पता ही नहीं चला गाते –गाते अँधेरा हो गया।इतने में चंदा मामा आये, और जानती हो क्या हुआ।
उन्होने खुशबू को ढेर सारा प्यार किया और दी बधाई-
हँसमुख प्रसून सिखलाते, पलभर है, जो हँस पाओ,
अपने उर के सौरभ से,जग का आाँगन भर जाओ।
अगले वर्ष फिर आयेंगे,सबने ली छुटकी से विदाई और इस तरह हमने खुशबू की प्रथम वर्षगांठ मनायी।
पत्र पढ़ कर मैंने सब काम छोड कर सबसे पहले अपनी बहन को फ़ोन मिलाया और पता नहीं कब कब की बातें करके हंसी भी और रोई भी....आप सब से बस यही कहूँगी की जीवन की दौड में ना चाहते हुए भी रिश्तों की डोर ढीली पड जाती है....परन्तु उसे कसना भी हमें आना चाहिए...तो जाइये और जोड लीजिये एक बार फिर दिल से दिल के तार........
यादें अकसर होती हैं सताने के लिए,
कोई रूठ जाता है मनाने के लिए
रिश्तों को मनाना कोई मुश्किल तो नहीं
बस दिलों में प्यार चाहिए उसे मनाने के लिए............
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