सभी त्योहारों में ‘रक्षाबंधन’ का नाम सुनते ही बस
मन में एक ही बात आती है ......भाई-बहन का प्यार जो कि अनमोल है। पर कल मैं राखी
लेने के लिए बाजार गयी वहाँ जिस दुकान से मैं राखियाँ ले रही थी वहीं और बहनें भी
राखी ले रही थी...तभी एक बहन बोली, “पहले तो इस दिन का बहुत इंतजार रहता था, हर
साल अपने हाथों से भाई की कलाई पर राखी बांधते थे पर अब जब से उसकी शादी हुई है राखी भेजना
केवल एक औपचारिकता भर रह गयी है....वर्ष की शुरुआत में राखी का त्यौहार किस दिन है यह तो मैं पूरे मन से देखती हूँ पर
फिर उत्साह कम होने लगता है....”। उनकी यह बात सुनकर सुबह पढ़ा एक मैसेज याद आ
गया-
“ ननद ने अपनी भाभी को फोन किया और पूछाः भाभी मैंने
राखी भेजी थी मिल गयी क्या?
भाभीः नहीं दीदी अभी नहीं मिली...!
ननदः भाभी कल तक देख लो अगर नहीं मिली तो मैं खुद आऊँगी
राखी लेकर...
अगले दिन भाभी ने खुद फोन कियाः हाँ दीदी आपकी राखी मिल
गयी है, बहुत अच्छी हैं....thank you didi!!!”
ननद
ने फोन रखा और आँखों में आंसू लेकर सोचने लगी, लेकिन भाभी, मैंने तो राखी भेजी ही
नहीं और आपको मिल भी गयीं।...
यह
मैसेज पढ़ और उन बहनों की बात सुनकर मेरे मन में बार-बार एक प्रश्न उठने लगा, ऐसी
सोच क्यों? कहीं इसके पीछे यह धारणा तो
नहीं कि बहन आयेगी तो उसे कुछ देना पडेगा। यदि ऐसा है तो मैं भी एक बहन
हूँ, और इतना पूरे विश्वास से कह सकती हूँ कि कोई बहन कुछ लेने के लिए इस दिन का
इंतजार नहीं करती, कुछ देना तो भाई का अपनी बहन के प्रति प्रेम दर्शाता है, भाई की
दी हुई छोटी सी चीज ही बहन के लिए अनमोल होती है, चाहें वह चॉकलेट ही क्यों न हो.....
यदि वह किसी को खाने को देती है तो पहले बता देती है यह मेरे भाई ने दी थी। क्या
भाई कुछ ना दे तो क्या बहन राखी बांधना छोड़ देगी? और बहने तो प्यार बाँटने और
अपने मायके के प्यार और सुनहरी यादों को आंचल में भरने आती हैं और सब खुश रहें यही
दुआ देती चली जाती हैं । रहीमदासजी ने सही कहा है-
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो
चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए।
मेरे
अंदर से आवाज आयी ये रिश्ते तो अनमोल हैं, फिर भी रिश्तों में बदलाव आ रहे हैं.....इसके
लिए हम सिर्फ किसी एक को दोषी नहीं ठहरा सकते...
क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती....! किसी भी रिश्ते को सच्चे मन से निभाने और
बनाए रखने के लिए यह समझना बहुत आवश्यक है कि जैसा व्यवहार हम दूसरे से अपने लिए
चाहते हैं,वैसा व्यवहार दूसरे के साथ भी करें। मैं माँ हूँ तो बेटी भी हूँ,मैं
भाभी हूँ तो ननद भी हूं......और इसी तरह हर एक रिश्ते की गर्माहट बनाए रखने के लिए
हमें रिश्ते की डोर के दोनों तरफ खड़े हो कर सोचना होगा.... कि क्या सही है क्या
गलत....
आजकल
सुनी हुई बातों का हम पर कुछ अधिक असर होता है...हम किसी अन्य के घर में चल रही
परिस्थितियों को अपने ऊपर लागू कर लेते हैं और एक दूसरे को देखने का नजरिया ही बदल
जाता है.....।और अधिकतर कुछ गलतफहमियों के कारण ही ये अनमोल रिश्ते टूट जाते हैं,
जिन्हें भुलाया तो नहीं जा सकता परन्तु जिंदगी भर याद बनकर ये दिल में एक पीड़ा
अवश्य देते हैं।
तो मैं
इतना कहना चाहूंगी कि हमें इन पवित्र रिश्तों को सिमटने और टूटने से पहले सहेज लेना
चाहिए क्योंकि रिश्ते वे फूल हैं जिन्हें ईश्वर नें स्वयं हमारे लिए खिलाया है, उन्हे
मुरझाने न दें क्योंकि रिश्ते ही तो हैं जिनसे जीवन का गुलशन महकता रहता है....
और
क्योंकि बात भाई बहन के रिश्ते से शुरू हुई थी...कुछ पंक्तियाँ लिखना
चाहूंगी........
बहन का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता,
वो चाहें दूर भी हो तो गम नहीं होता,
अकसर रिश्ते दूरियों से फीके पड़ जाते हैं,
पर भाई बहन का प्यार कभी कम नहीं होता.....!!!
रक्षाबंधन
की शुभ कामनायें........
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें