अपना मान भले टल जाए, भक्त का मान न टलते देखा..!!
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एक बार नरसी जी का बड़ा भाई, नरसी जी के घर आया। भाई ने नरसी जी से कहा, "कल पिताजी का वार्षिक श्राद्ध करना है। बहू को लेकर मेरे यहाँ आ जाना। काम-काज में हाथ बंटाओगे तो तुम्हारी भाभी को आराम मिलेगा।"
नरसी जी ने कहा, "'पूजा पाठ करके अवश्य आ जाऊंगा!" इतना सुनते ही भाई गुस्सा होते हुए बोले, " जिन्दगी भर यही सब करते रहना। जिसकी गृहस्थी भिक्षा से चलती है, उसकी सहायता की मुझे जरूरत नहीं है। तुम पिताजी का श्राद्ध अपने घर पर अपने हिसाब से कर लेना।" नरसी जी ने कहा, "नाराज क्यों होते हो भैया? मेरे पास जो कुछ भी है, मैं उसी से श्राद्ध कर लूँगा। तुम शांत हो जाओ!"
दोनों भाईयों के बीच श्राद्ध को लेकर झगडा हो गया है यह बात नागर- मंडली तक पहुँच गयी। नरसी अलग से श्राद्ध करने का निर्णय ले चुका है यह सुनकर नागर मंडली ने नरसी से बदला लेने की सोची। पुरोहित प्रसन्न राय ने सात सौ ब्राह्मणों को नरसी के यहाँ आयोजित श्राद्ध में आने के लिए आमंत्रित कर दिया। अब कहीं से इस षड्यंत्र का पता नरसी मेहता जी की पत्नी मानिकबाई जी को लग गया और वह चिंतित हो उठीं। दूसरे दिन नरसी जी स्नान के बाद श्राद्ध के लिए घी लेने बाज़ार गए। नरसी जी घी उधार में चाहते थे पर किसी ने उनको घी नहीं दिया। अंत में एक दुकानदार राजी हो गया पर यह शर्त रख दी कि नरसी को पहले भजन सुनाना पड़ेगा।
बस फिर क्या था, मन पसंद काम और उसके बदले घी मिलेगा, ये तो आनंद हो गया। नरसी जी भगवान का भजन सुनाने में तल्लीन हो गए और उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि घर में श्राद्ध है। तभी कृष्ण जी ने अपनी लीला का खेल दिखाया... जब दुकानदार के यहाँ नरसी जी भजन गा रहे थे, तभी नरसी के घर पर गिरधर गोपाल नरसी जी के भेष में ब्राह्मणों को भोजन करवा रहे थे...! मन भर भोजन करने के बाद नरसी के भेष में आये मोहन ने सभी को दक्षिणा में एक- एक अशर्फी भी प्रदान की।
नरसी जी को जब होश आया तो वह भागते हुए घर पहुंचे....और बोले आने में जरा देर हो गयी! क्या करता, कोई उधार का घी भी नहीं दे रहा था!" आश्चर्य से उनकी पत्नी उनकी तरफ देखते हुए बोली, "स्वयं खड़े होकर तुमने श्राद्ध का सारा कार्य किया..ब्राह्मणों को भोजन करवाया, दक्षिणा दी। अब कह रहो कि घर पर नहीं थे! तबियत तो ठीक है ना?" यह बात सुनते ही नरसी जी समझ गए कि उनके इष्ट स्वयं उनका मान रख गए। गरीब के मान को, भक्त की लाज को परम प्रेमी करूणामय भगवान् ने बचा ली थी। नरसी जी मन भर कर गाते हुए अपनी भक्ति में रम गये,
" दिल कभी ना लगाना दुनिया से, दर्द ही पाओगे
बीती बातें याद करके, रोते ही रह जाओगे।।
करना ही है तो करो भजन श्याम का
हमेशा उम्मीद से दुगुना ही पाओगे।।"
सही कहते हैं कि प्रभु की माया प्रभु ही जाने.....
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