हम में से बहुत
से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें यह नहीं पता कि हमारे देश के प्रतीक राष्ट्रीय गान और
राष्ट्रीय गीत में क्या अंतर है।
हमारे देश के
सम्मान, पहचान, राष्ट्रवाद और भारतीयों की देशभक्ति की भावना से ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम्’ दोनों ही जुड़े हुए हैं। इन में एक ही
भावना निहीत है फिर भी जन- गन- मन को राष्ट्रीय गान और वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत होने का गौरव
प्राप्त है।
आप सोच रहे
होंगे यह तो हम भी जानते हैं इसमें नया क्या है। लेकिन तो चलिए जानते हैं
राष्ट्रीय गान जन-गण-मन.... और राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में....
हमारा राष्ट्रगान
: जन-गण-मन
जन गण मन हमारे देश का राष्ट्रगान है जो गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बांग्ला भाषा में लिखा गया था जिसका बाद में आबिद अली ने हिंदी में
अनुवाद किया। इसे सर्वप्रथम 27 दिसम्बर 1911 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में बंगाली और हिन्दी दोनों भाषाओं में गाया गया था। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा
द्वारा जन-गण-मन को हिंदुस्तान के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था। पूरे गान में 5 पद
हैं।
राष्ट्रगान का पूरा संस्करण गाने में 52 सेकेण्ड का समय लगता है।
कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है,
इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग २०
सेकेण्ड का समय लगता है।
राष्ट्रगान के दौरान सभी लोगों को इसके सम्मान में सावधान की
मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिये और इसे
किसी गायन प्रतियोगिता में एक गीत के रूप में नहीं गाया जा सकता क्योंकि
राष्ट्रगान होने के नाते इसे गाते या बजाते समय एक खास सम्मान देने की आवश्यकता
होती है। इसलिए राष्ट्रगान प्रमुख राष्ट्रीय अवसरों पर ही गाया जाता है।
भारत सरकार ने एक कानून धारा 71, राष्ट्रीय
सम्मान को ठेस पहुँचने से रोकने के लिये लागू किया है जिसके तहत, जो कोई भी राष्ट्रगान का अपमान करेगा तो उसे जुर्माने के साथ अवश्य सजा
मिलेगी यह सजा तीन साल तक हो सकती है।
जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल
बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि
तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय गाथा।
जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय
जय जय जय हे।।
राष्ट्रीय गीत: वंदे मातरम्
राष्ट्रगान के अलावा एक और गीत भारतवासियों के दिलों, दिमाग और जुबान पर छाया रहता है वह है 'वंदेमातरम'। इस गीत को बांग्ला साहित्यकार बंकिमचन्द्र चैटर्जी ने 1882
में अपने उपन्यास आनन्दमठ में लिखा था। यह स्वतंत्रता की लड़ाई में
लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। इसे पहली बार 1896 में
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था। 24 जनवरी 1950 को संविधान
सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वंदेमातरम् को भारत
के राष्ट्रगीत का दर्जा दिये जाने की घोषणा की थी। तब वंदे मातरम् को राष्ट्रगान
के समकक्ष मान्यता मिल जाने पर महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों पर इस गीत को स्थान
मिला।
भारत के
स्वत्रंतता संग्राम में वंदे मातरम् गीतकी महत्तवपूर्ण भूमिका होने के बावजूद भी
जब राष्ट्रगान के चयन करने की बात आई तो विरोध के कारण वास्तविक वन्दे मातरम् के
शुरुआत के दो छंद को कांग्रेस कार्यकारिणी समिति द्वारा अक्टूबर 1937 में भारत के
राष्ट्रगान नहीं राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था जो इस प्रकार हैं-
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज
शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
आज भी ‘आकाशवाणी’ के सभी केंद्र का प्रसारण ‘वंदेमातरम’ से ही होता है। कई सांस्कृतिक और
साहित्यिक संस्थाओं में ‘वंदेमातरम’ गीत
का पूरा-पूरा गायन किया जाता है। 2005 में वंदेमातरम के सौ
साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक साल के समारोह का आयोजन किया गया। वंदे मातरम,
गीत के प्रतिपादन के लिए कोई समय सीमा या परिस्थिति संबंधी निर्देश नहीं हैं और न
ही राष्ट्रगान की तरह राष्ट्रीय गीत गाते समय भारत के प्रति अपना सम्मान दिखाने के
लिये खड़े होने की जरूरत है। वंदे मातरम गीत को
गायन प्रतियोगिता में गाया जा सकता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें