हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज महज तीन रंग के कपड़े का टुकड़ा नहीं,वह भारत देश के नागरिकों,देश की संस्कृति, वतन परस्ती तथा अस्मिता का केन्द्रबिन्दु है।
इतिहास गवाह है कि राष्ट्रीय ध्वज की खातिर देशभक्तों ने अपने प्राणों को न्योछावर
कर दिया। हमारा वर्तमान राष्ट्रीय तिरंगा झंडा स्वाधीनता संग्राम के उन अमर शहीदों
की अनमोल यादगार है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सारा जीवन देश को समर्पित
कर दिया।
यह तिरंगा......
बस डेढ़ गज का कपड़ा नहीं
अपने देश की आन है ये
लाखों बेटों ने दी इस पर
जान अपनी कुर्बान
उन बेटो की माँ की खामोश जुबान है ये
दुनिया ने इसका माना है लोहा
सारे जहाँ पर छा जाने का अरमान है ये
हर नजर में,हर गर्व से उठ रहे
सर में
दुनिया ने इसका माना है लोहा
सारे जहाँ पर छा जाने का अरमान है ये
हर नजर में,हर गर्व से उठ रहे
सर में
तीन रगों के संगम का तूफान है ये
नत मस्तक, नम आँखे, चौड़े सीने
हर भारतीय की पहचान है ये।
आप के मन में आ रहा होगा कि अपने राष्ट्रीय झंडे के विषय में बचपन से पढ़ते आ
रहे हैं और हम सब ही जानते हैं फिर इसके बारे में लिखने की क्या जरूरत है? सही सोच रहें हैं पर क्या इतना जान लेना ही
काफी है कि तिरंगे में तीन रंग होते हैं- हरा,सफेद और केसरिया। सफेद रंग की पट्टी पर बीच में
चक्र बना होता है। हरा रंग हरियाली खुशहाली का प्रतीक है,सफेद ...... केसरिया....और बीच में बना चक्र
धर्म का। पर बहुत कम लोग जानते हैं कि जो वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज है वह इस रूप तक
कितना सफर पार करके पहुँचा है। इसलिए जो नहीं जानता वो अपने तिरंगे के सफर को पढ़े
व जाने मेरे लिखने का केवल यह उद्देश्य है।
हमारे राष्ट्रीय झंडे की कहानी बहुत पुरानी है। राष्ट्रीय आंदोलन के समय से
इसे तिरंगे के नाम से जाना जाता है। सन् 1857 में हमारा राष्ट्रीय ध्वज हरे रंग का था और उस
पर रूपहले रंग का सूरज बना हुआ था। सन् 1885 में हमारे झंडे में कुछ परिवर्तन हुआ उसमें तीन
रंगों का प्रयोग हुआ।1906
तथा 1907 में फहराए गये ध्वज को लेकर कुछ इतिहासकारों
में मत भिन्नता थी। सन् 1916
में होमरूल आंदोलन
के समय काग्रेंसी नेता ऐनी बेसेंट ने लोकमान्य तिलक का दिया गया झंडा फहराया,जिसमें एक के बाद एक पाँच रंग और चार हरे रंग
की पट्टियाँ थीं तथा बाईं ओर कोने में यूनियन जैक था। उसके सामने दायें कोने पर
अर्द्धचंद्र और एक तारा भी था।
अखिलभारतीय कांग्रेस कमेटी की विजयवाड़ा में एक बैठक भी हुई जिसमें महात्मा
गाँधी ने देश को एक नया झंडा दिया। उस झंडे के बीच में चर्खे का चित्र अंकित था। यह
तिरंगा इतना लोकप्रिय हुआ कि हर समाहरोह में फहराया जाने लगा।
सन् 1931 अखिलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में राष्ट्रीय
ध्वज निश्चित करने के लिए एक समिति गठित की गयी जिसमें पं. जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुलकलाम
आजाद, सरदार बल्लभभाई
पटेल, डॉ हॉर्डिकर शामिल
थे। इस समिति ने सर्वसम्मति से यह राय दी थी कि
राष्ट्रीय झंडा चौरस और एक ही रंग केसरिया का हो तथा उस पर चर्खे का चिन्ह अंकित
रहे लेकिन अगस्त 1931 में राष्ट्रीय कांग्रेस ने जो झंडा अपनाया
उसमें केसरिया, सफेद और हरी रंग की तीन पट्टियाँ तथा चर्खे का
चिन्ह अंकित था।
आजादी के 24 दिन पूर्व 22 जुलाई 1947 को हमारा राष्ट्रीय झंडा भारतीय संविधान द्वारा
स्वतंत्र भारत के लिए स्वीकृत किया गया। इस झंडे की लंबाई-चौड़ाई तथा रंग वही रहा
सिर्फ सफेद पट्टी में चर्खे के स्थान पर 'सम्राट अशोक' के धर्म चक्र को अंकित कर दिया गया। इसे
आंध्रप्रदेश के देशभक्त पिंगली वैंकैया ने बनाया था।
झंडा है भारत की शान
झंडा है वीरों की आन
इसको है हम शीश झुकाते
जन-गण-मन का गीत हैं गाते।
जय हिन्द...!!!
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