सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है !
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उस दिन सवेरे आठ बजे राजीव अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला। रेलवे स्टेशन पँहुचा, पर देरी से पँहुचने के कारण उसकी ट्रेन निकल चुकी थी......उसके पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नहीं था। इसलिए उसने सोचा कि कहीं नाश्ता कर लिया जाए!
उसे बहुत जोर की भूख लगी थी! राजीव होटल की ओर जा रहा था कि अचानक रास्ते में उसकी नज़र फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी। दोनों लगभग 10-12 साल के थे और उनकी हालत सही नहीं लग रही थी। कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे...छोटा बच्चा बड़े से खाने के बारे में बार बार पूछ रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था......राजीव अचानक रुक गया..।
यह देख राजीव का मन भर आया... उसके आस पास की पूरी चहलपहल जैसे थम गयी....राजीव उन बच्चों को दस रूपए देने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अचानक उसके मन में विचार आया कि कितना कंजूस हूँ मैं! दस रूपए में क्या मिलेगा? चाय तक ढंग से न मिलेगी!
राजीव को स्वयं पर शर्म सी आ गयी...उसने बच्चों से कहा, "कुछ खाओगे?" बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए। राजीव ने कहा, "बेटा! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ, तुम भी कर लो..." बच्चे भूखे तो थे ही इसलिए झट तैयार भी हो गये...राजीव बच्चों के साथ होटल तक पंहुचा ही था कि बच्चों के गंदे कपड़े देख होटल वाले ने डांट कर उन्हें वहां से जाने के लिए कहा...!
राजीव ने तभी होटल के मालिक से कहा, " भाई साहब ! उन्हें जो खाना है वो उन्हें दे दीजिये, पैसे मैं दूँगा!" होटल वाले ने आश्चर्य से राजीव की ओर देखा! उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दे रही थी। राजीव ने बच्चों के लिए मिठाई व लस्सी मंगवाई...बच्चे जब खाने लगे तो उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी !!
राजीव को भी एक अजीब सा आत्म संतोष महसूस हुआ..वहाँ आसपास के लोग उसे बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे ! होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे.....राजीव स्टेशन की ओर निकला लेकिन उसका मन भारी हो रहा था और दुखी भी।
तभी रास्ते में उसे एक मंदिर दिखाई दिया...राजीव ने मंदिर की ओर देखा और मन ही मन कहा, "भगवान! आप कहाँ हो ? आपके रहते इन बच्चों की ये हालत कैसे !?" लेकिन तभी उसके मन में विचार आया कि अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था !? राजीव के सभी प्क्यारश्न खत्म हो गये क्योंकि उसे स्वयं ही समझ आ गया कि बच्चों को नाश्ता करवाने का विचार भगवान ने ही तो दिया...भगवान ने उसके माध्यम से उन बच्चों की तकलीफ कम की थी!
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