हिन्दी - भाषा नहीं एक भावना

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भारत की प्यारी भाषा है हिन्दी, जग में सबसे न्यारी भाषा है हिंदी! जन-जन की भाषा है हिंदी, हिन्द को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिंदी! कालजयी जीवनरेखा है हिंदी, जीवन की परिभाषा है हिंदी!  हिंदी की बुलंद ललकार से थी हमने आज़ादी पाई, हर देशवासी की थी इसमें भावना समाई! इसके मीठे बोलों में है ऐसी शक्ति, अपने ही नहीं, परायों को भी अपना कर लेती! हर भाषा को अपनी सखी-सहेली है मानती, ऐसी है हमारी अनूठी अलबेली हिंदी!   संस्कृत से निकलती है हिंदी की धारा, भारतेंदु जयशंकर ने इसे दुलारा! जहाँ निराला महादेवी ने इसको सँवारा, वहीं दिनकर और सुभद्रा ने इसको निखारा! ऐसे महापुरुषों की प्यारी है हिंदी, हिन्द का गुरूर है हिंदी!   विडम्बना है कि हिंदी को राष्ट्र धरोहर मानते हैं, फिर भी लोग हिंदी बोलने में सकुचाते हैं! वैदिक काल से चली आ रही भाषा को छोड़, विदेशी भाषा बोलने में अपनी झूठी शान मानते हैं! पर आज तो विदेशी भी ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ बोलकर, हिंदी संस्कृति के रंगों में रंग जाते हैं!   तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी सभी रंगों को अपनाती, जैसे भी बोलो यह मधुर ध्वनी सी हर के मन में बस जाती। जहाँ कुछ भाषाओं के

दुनिया में सिकंदर कोई नहीं, वक्त ही सिकंदर है..


सिकंदर के नाम से सभी परिचित हैं। उसने ऐसे पानी के बारे में सुन रखा था जिसे पीने के बाद मृत्यु नहीं आती और इंसान अमर हो जाते हैं। काफी दिनों की तलाश के बाद सिकंदर को उस जगह का पता चल ही जाता है जहाँ उसे अमरत्व प्रदान करने वाले जल की प्राप्ति हो सकती है। वह वहाँ जाता है और उसके सामने ही अमृत जल बह रहा होता है... वह अपनी अंजलि में अमृत को लेकर पीने ही वाला होता है कि तभी उस गुफा के अन्दर से एक बूढे व्यक्ति की आवाज आती है,”रुक जा, इसे पीने की भूल मत करना...!’ सिकंदर आवाज सुनकर रूक जाता है। उसने गुफा के अंदर बूढ़े को देखकर चिल्लाकर पूछा, ‘तू मुझे रोकने वाला कौन है...?’

बूढ़े व्यक्ति ने उत्तर देते हुए कहा, “मैं भी तुम्हारी तरह अमर होना चाहता था। मैंने भी इस गुफा की खोज की और यह अमृत पी लिया। मेरी हालत देखो..दिखाई नहीं देता, पैर गल गए हैं चल नहीं सकता, शरीर कमजोर हो गया है.... अब मैं मरना चाहता हूँ... अब मैं मर नहीं सकता! देखो... परेशान होकर मैं चिल्ला रहा हूँ...चीख रहा हूँ...कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मुझे मारा भी नहीं जा सकता ! अब मैं हर पल ईश्वर से मुझे मौत देने की प्रार्थना कर रहा हूँ !”

उस बूढ़े की दयनीय स्थिति देख सिकंदर बिना अमृत पिए चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आता है क्योंकि वह समझ चुका था कि जीवन का आनन्द उस समय तक ही रहता है, जब तक हम उस आनन्द को भोगने की स्थिति में होते हैं!

इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। जितना जीवन मिला है,उस जीवन का भरपूर आनन्द लें। स्वस्थ रहें मस्त रहें। क्योंकि दुनिया में सिकंदर कोई नहीं, वक्त ही सिकंदर है..

रखिये हमेशा स्वास्थ्य का ध्यान
परिवार का होगा कल्याण।
कोई भी हो कितना विद्वान
इसके बिना ना हो सके महान।।




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