मन का भाव है श्रद्धा के फूल....!
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एक सिद्ध महात्मा कुछ दिन विश्राम करने हेतु एक गाँव में रुके। महात्मा के दर्शन करने गाँव के लोग कुछ न कुछ भेंट लेकर उनके पास जाने लगे। उसी गाँव में माधव नाम का एक गरीब किसान रहता था। जब उसने महात्माजी के आगमन के बारे में सुना तो वह सोचने लगा कि आज तो कोई काम नहीं मिलेगा। फिर उसकी नजर घर के बाहर तालाब में बेमौसम खिले एक कमल पर गई तो उसने सोचा चलो आज इस फूल को बेचकर ही गुजारा कर लेते हैं। वह तालाब के अंदर घुसकर कमल तोड़ लाया और केले के पत्ते का दोना बनाकर उसमें कमल का फूल रख दिया। कमल पर पड़ी पानी की कुछ बूंदों से वह और भी सुंदर दिखाई दे रहा था।
इतनी देर में नगर-सेठ आया। उसने कहा ''भई, फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो! हम इसके दस चांदी के सिक्के दे सकते हैं।" वह फूल का मूल्य सुनकर सोच मे पड़ गया ... कि एक-दो आने का फूल! इसके लिए दस चांदी के सिक्के... इतना कीमती है यह फूल। नगर सेठ ने माधव को सोच मे पड़े देख कर कहा कि अगर पैसे कम हों, तो ज्यादा ले लो। मैं महात्मा के चरणों में यह फूल भेंट करना चाहता हूँ इसलिए इसकी कीमत लगा रहा हूँ।
उसी समय वहाँ से महात्मा के दर्शन के लिए जाते हुए मंत्री ने उस फूल को देखा तो उसने भी फूल के बदले सौ सिक्कों देने को कहा। वह भी महात्मा को कमल का फूल भेंट करना चाहता था।
धीरे धीरे फूल लेने वालों की भीड़ लग गयी...तभी वहां से नगर का राजा निकला...भीड़ देखकर उसका कारण जब वजीर से पूछा तो उसने बताया कि कमल के फूल का सौदा चल रहा है। तब राजा ने भी उस फूल को एक हजार चाँदी के सिक्के देकर खरीदने की इच्छा जाहिर की लेकिन किसान ने फूल बेंचने से इंकार कर दिया। यह सुनकर राजा ने पूछा, "... बेचोगे क्यों नहीं?" उसने कहा कि जब महात्मा के चरणों में सभी कुछ-न-कुछ भेंट करने के लिए ले जा रहे हैं.. तो आज यह फूल इस गरीब की तरफ से उनके चरणों में भेंट होगा। राजा ने कहा, "सोच लो! तुम्हारी इच्छा है पर एक हजार चांदी के सिक्कों से तुम्हारी पीढ़ियां तर जायेंगी।" तब गरीब किसान ने राजा से कहा,"मैंने तो आज तक किसी को धन सम्पत्ति से नहीं, हाँ, महान पुरुषों के आशीर्वाद से लोगों को तरते जरूर देखा है।"
उसकी यह सरल लेकिन सत्य बात सुनकर राजा ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हारी बात एकदम सही है.... तुम इस फूल को महात्माजी को ही भेंट करो...!" यह कहकर राजा महात्माजी के दर्शन के लिए चला गया!
जल्द ही उस अमूल्य फूल की चर्चा और माधव की कहानी महात्माजी के कानों तक भी पहुँच गई। जैसे ही माधव फूल लेकर पहुँचा, शिष्यों ने महात्मा जी को उसके आने की खबर दे दी। माधव जैसे ही फूल लेकर अंदर पहुँचा तो महात्मा ने उसकी तरफ बड़े ही प्रेम से देखा और अपने पास बुलाया। महात्मा को देख उसकी आँखों से आंसू बरसने लगे। पानी की कुछ बूंदे तो कमल पर पहले से ही थीं... कुछ उसके आंसुओं के रूप में कमल पर गिर गईं। उसने रोते हुए कहा, "सब ने बहुत सी कीमती चीजें आपके चरणों में भेंट की होंगी, लेकिन इस गरीब के पास यह कमल का फूल ही है और जन्म-जन्मान्तरों के पाप जो मैंने किए हैं और मेरे आंसू उनको आज आपके चरणों में चढ़ाने आया हूँ। ये फूल और मेरे आंसू स्वीकार करें।" महात्मा के चरणों में फूल रखकर वह वहीं घुटनों के बल बैठ गया।
महात्मा
ने कहा, "हजारों साल में भी कोई राजा इतना नहीं कमा पाया जितना इस गरीब इन्सान ने
अपने समर्पण से आज एक पल में ही कमा लिया। इसने अपने मन का भाव दे दिया। वास्तव
में एकमात्र ये मन का भाव ही है जिससे हम परमात्मा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इसके
सामने त्रिलोक का सामान भी कोई अहमियत नहीं रखता।"
मन का भाव है श्रद्धा के फूल। बाकी सामान सब जाओ भूल।।
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