सविता के पास किसी चीज की कमी नहीं थी पर कुछ दिन से उसका मन किसी चीज में नहीं लग रहा था, उसे ऐसा लगता की उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं है। कोई चीज उसे खुशी नहीं दे पाती। अपने मित्रों से मिलना घूमना फिरना भी उसे अच्छा नहीं लगता। एक दिन वह इस बारे में अपनी मित्र स्नेहा को बताती है, तो स्नेह उसे मनोचिकित्सक की मदद लेने की सलाह देती है। सविता कहती है मुझे कोई मानसिक बीमारी थोड़ी है जो मैं मनोचिकित्सक के पास जाऊँ । स्नेहा उसे समझाते हुए कहती है कि मनोचिकित्सक के पास जाने का मतलब यह नहीं होता कि हमें कोई मानसिक बीमारी ही हो, कई बार किसी से बात करना ही काफी होता है और चूँकि मनोचिकित्सक मन की बात समझने का ही काम करते हैं एक बार मिल लेने में हर्ज़ ही क्या है!? स्नेहा की सलाह मानकर सविता अगले दिन डॉ कुमार के पास जाती है।
सविता अपनी मनःस्थिति के बारे में,कि वह कैसा महसूस करती है आदि विस्तार से डॉ. कुमार को बताती है। उसकी बात सुनकर डॉ. कुमार एक महिला को सविता से मिलाने के लिए फोन करके बुलाते हैं। एक अधेड़ उम्र की महिला मुस्कराते हुए आती है और डॉ कुमार सविता से उसके जीवन की कहानी को ध्यान से सुनने को कहते हैं।
वह महिला सविता के पास बैठकर उसे बताती है कि उसके पास घर परिवार सब कुछ था मैं अपने जीवन में बहुत खुश थी पर अचानक एक दुर्घटना में मेरा सब कुछ खत्म हो गया। मैं अकेली रह गई, मेरी भूख- प्यास, नींद सब चली गई। मेरे जीवन से सुकून, मेरी मुस्कराहट सब कुछ छीन गया। मैं हर समय अपने जीवन को समाप्त करने के तरीके सोचती रहती। एक दिन मैं घर के बाहर बैठी थी बारिश हो रही थी तभी एक छोटा कुत्ते का बच्चा बारिश में भीगता हुआ उसके पास आ गया। मैंने यह सोचकर की यह बारिश में भीग गया है और भूखा होगा थोड़ा-सा दूध उसे दिया और वहीं बैठ कर उसे दूध पीते हुए देखने लगी। उसने जल्दी से दूध पिया और मेरे पैरों के पास आकर घूमने लगा, वह कभी मेरे पैर चाटता कभी मुझे देख कूँकूँ करता जैसे मुझसे कुछ कहना चाहता हो... उस दिन मैं बहुत समय बाद मुस्कराई...मुझे खुशी महसूस हुई मुझे लगा इसकी मदद करके इतनी खुशी हो रही है तो मैं दूसरे लोगों की मदद करूँ तो....। बस उस दिन मेरा जीवन के प्रति नजरिया बदल गया..मैंने दूसरों की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। मैं ऐसा कुछ करती की लोगों को खुशी मिले और उनको खुश देखकर मुझे खुशी मिलती थी।
आज मैंने दूसरों को खुशी देकर, अपनी खुशियाँ पा ली हैं। मुझे आज अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है...वह डॉ. साहब की तरफ देखकर कहती है एक छोटा परिवार खोकर मुझे बहुत बड़ा परिवार मिल गया है। वह सविता के कन्धे पर हाथ रखकर मुस्कराते हुए बाहर चली जाती है।
सविता डॉक्टर की तरफ देखकर कहती है, “डॉक्टर साहब, मुझे समझ में आ गया कि आप मुझे क्या समझाना चाह रहे हैं! ज़रुरत है मुझे समझने कि मुझे जीवन में किस चीज़ से ख़ुशी मिल सकती है! मैं आपसे अगले हफ्ते फिर मिलने आऊँगी लेकिन अपने जीवन की मुस्कुराहट का रास्ता ढूंढ कर!” डॉक्टर के कमरे से बाहर आते हुई सविता पहले वाली सविता को अलविदा कह चुकी थी!
वास्तव में जीवन में खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती की हम कितने संपन्न हैं बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि हमारी वजह से कितने लोगों के चेहरे पर मुस्कान आई या हम कितने लोगों की खुशी का कारण बने।
मुस्कराहट मनुष्य को ईश्वर द्वारा मिला वो वरदान है, जो उसके मनुष्य होने की पहचान है..! इसलिए इसे खोने नहीं दें, स्वयं हँसिये और दूसरों को भी हँसाईये। दूसरों की खुशी का कारण बनिये फिर देखिये जीवन में आनन्द ही आनन्द होगा।
जो जीता है जीवन को हंसकर
फिर उसके जीवन में सदा बहारे ही बहारे आती हैं
छू भी ना पाता कोई गम उसके दामन को
फिर तो जिन्दगी इंसान को इतना ऊपर उठाती है
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