जो बच्चे कहते हम होंगे बुढा़पे का सहारा ! कैसे कह देते हैं, करना होगा अब बंटवारा तुम्हारा !!
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रामकिशन सरकारी स्कूल में टीचर थे। वे अपनी पत्नी सरस्वती और तीन बेटों के साथ बहुत खुश थे। उन्होंने अपने बेटों के नाम भी राम, लक्ष्मण और भरत रखे थे। रामकिशनजी के बेटे बहुत ही होनहार थे। जब कोई रामकिशन जी से उनके बेटों की तारीफ करता तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता। देखते ही देखते बड़े बेटे राम ने इंटरमीडियट पास कर ली और उसकी इच्छानुसार उसका दाखिला बी.टैक में करा दिया गया।
दो साल बाद दूसरा बेटा लक्ष्मण भी बीबीए करने के लिए बाहर चला गया। जब कभी उनकी पत्नी खर्च के बारे में
चिंता करती , तो वो बड़े ही संयम से कहते, “तुम चिंता न करो ईश्वर की कृपा रही तो सब ठीक हो जायेगा। मैं चाहता हूँ की मेरे बच्चे जो करना चाहें मैं करा सकूँ ताकि उन्हें या मुझे यह जीवन भर अफसोस न रहे की मैं उनकी इच्छा पूरी न कर सका। तुम तो अपने लिए बहू लाने व पोते-पोतियों के साथ खेलने के बारे में सोचो!” सरस्वती हँसने लगती और माहौल खुशनुमा हो जाता।
तीनो बेटों की पढाई
पूरी हुई और सबकी नौकरी भी लग गयी। नियत समय पर सब बच्चों की शादी हुई और रामकिशन का परिवार पूरा हो गया। अब रामकिशन भी रिटायर हो गये थे इसलिए वो अपनी
पत्नी के साथ ख़ुशी ख़ुशी गाँव में रहने
लगे। तीज त्यौहार पर बेटे- बहू उनसे मिलने आ जाते, दोनों पति पत्नी अपने जीवन में
संतुष्ट थे। सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक उनकी पत्नी का देहांत हो गया। जीवन के इस पड़ाव पर रामकिशन के लिए अकेले जीवन व्यतीत करना कठिन तो था...गाँव के लोग उन्हें बार- बार बेटों के पास जा कर रहने के लिए कहते, पर वे मना कर देते.... बेटे साथ चलने के लिए कहते पर वो टाल जाते...वो भी कुछ दिन रहकर चले जाते...।
कुछ महीनों बाद तीनों बेटे रामकिशन से कहते हैं, “पिताजी अब कब तक आप जमीन-जायदाद का अकेले रख रखाव कर पाएंगे! इससे बेहतर तो आप सब कुछ हम सब में बाँट दीजिये! हमसब के साथ आकर आराम से रहिये! बहुत काम कर लिया आपने!” रामकिशन इससे पहले कुछ निर्णय ले पाते देखते ही देखते बंटवारे के लिए पंचायत बैठ गयी। जायदाद के हिस्से होने के बाद पंच रामकिशन से पूछते हैं कि वे किसके साथ रहना चाहेंगे। रामकिशन के कुछ बोलने से पहले ही उनका बड़ा बेटा कहता है, “इसमें सोचने वाली बात क्या है! हिस्से बराबर मिले हैं तो पिताजी भी हम तीनों के पास बारी बारी से चार-चार महीने आकर रहेंगे।“ रामकिशन जो अबतक संतान मोह के चलते इस ऊहापोह में थे एकाएक बोले, “यह जमीन जायदाद मेरी है। तुम सब के प्रति जितनी भी मेरी जिम्मेदारी थी मैं अपनी ओर से पूरी कर चुका हूँ! यह मेरा जीवन है जिसे बांटने का तुम्हे कोई हक नहीं है! मैं कहीं नहीं जाऊँगा और ना ही कोई बंटवारा होगा! तुम चाहो तो यहाँ आकर रह सकते हो!” यह कहकर रामकिशन सभी कागज़ात उठाकर पंचायत छोड़ कर आसमान की तरफ देखते हुए चले जाते हैं जैसे अपनी पत्नी से कुछ कह रहे हो! सभी लोग उन्हें जाते हुए बस देखते रह जाते हैं।
यह एक कटु सत्य है
कि बच्चे यह सोचते हैं कि माता-पिता को उनकी जरूरत है इसलिए
वे जैसा चाहे कर सकते हैं उन्हें मानना ही पड़ेगा। वे भूल जाते हैं कि जिन माता –पिता ने उनको इस लायक बनाया है वे अपना जीवन उनके सहारे के बिना अपनी इच्छा से जी सकते हैं। पर बच्चों के मोह और लोग क्या कहेंगे के बारे में सोचकर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं और अपनी खुशियों एवं
अपने जीवन के बारे में नहीं सोच पाते हैं। बच्चों को यह एहसास होना चाहिए कि माता-पिता को ही नहीं, अपितु बच्चों को भी अपने बड़ों की उतनी ही जरूरत होती है।
सिर पर बड़े का हाथ और उनका आशीर्वाद हो तो जीवन में कई समस्याएं तो छू भी नहीं पाती!
आज बच्चों और माता पिता दोनों को ही यह समझने की आवश्यकता है दोनों ही अपने जीवन को अपने अनुसार जीने का हक रखते हैं। बच्चों को अपने माँ - बाप के ऊपर एहसान करने की ज़रुरत नहीं और माता पिता को भी संतान मोह में अंधे हो कर यह इसे अपनी नियति मानने की आवश्यकता नहीं है कि उन्हें ऐसे ही रहना होगा। आपस में प्रेम बना रहे उससे बड़ी जीत कोई नही!
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