मायका...सिर्फ भाई से ही क्यों, बहनों से क्यों नहीं!?
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शिखा पाँच भाईयों की अकेली बहन थी और घर में सब की लाड़ली भी। बचपन बहुत लाड़-प्यार में गुजरा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उसके लिए विवाह के प्रस्ताव आने लगे। कई रिश्तों में से आशीष का रिश्ता सभी को पसंद आया। शिखा के माता-पिता ने आशीष के माता पिता से बात की तो उन्होंने कहा कि हमें शिखा पसंद है और हमारी कोई माँग नहीं है। जल्दी ही आशीष के साथ उसका विवाह हो गया। समय यूँ ही पंख लगा कर उड़ गया। देखते ही देखते आशीष और शिखा दो प्यारी बेटियों के माता –पिता बन गये। सास ससुर के दबाब देने पर कि एक बेटा तो होना ही चाहिए, बेटियाँ तो अपने घर चली जायेंगी, शिखा एक के बाद एक पाँच बेटियाँ की माँ बन गई।
कहने वाले तो कहते ही रहते कि पांच
बेटियां हैं, कैसे होगा सब! लेकिन शिखा और आशीष ने अपनी बेटियों की परवरिश बहुत
अच्छे से की, उन्हें अच्छी शिक्षा व संस्कार दिये। समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा और
देखते ही देखते शिखा की बड़ी बेटी तान्या विवाह योग्य हो गई! अनेक प्रस्ताव आये और
जहाँ भी तान्या के विवाह की बात चलती
लड़के वाले उसे देखते ही पसन्द कर लेते, विवाह की बात लगभग तय हो जाती पर जैसे ही
लड़के वालों को पता चलाता कि बहू के भाई नहीं है तो लड़के वाले मना कर देते। हर
कोई यही कहता कि बहू का भाई नहीं है तो माता-पिता के बाद उसका मायका तो खत्म हो
जायेगा। उसे कोई परेशानी हो, या तीज त्योहार, विवाह आदि में बहू का भाई, बच्चों का
मामा तो होना ही चाहिए। हर जगह इसी तरह के जवाब पाने के बाद शिखा के सास ससुर ने
तो उन्हें बेटा गोद लेने तक की हिदायत दे डाली…अपने
माता पिता को परेशान देख शिखा और आशीष की बेटियों ने सिर्फ इतना कहा, “आपने हमेशा
हमें यह सिखाया कि हम किसी से कम नहीं है! समाज के इन दकियानूसी कायदे कानून के
लिए आपको कुछ ऐसा करने कि ज़रुरत नहीं है! हम अपने जीवन को खुद बना और संवार सकते है!”
आज शिखा और आशीष अपनी पांच बेटियों में पांच बेटे देख रहे थे!
यह हमारे समाज का एक कटु सत्य है! आज
भी बेटे को लेकर यही नजरिया देखने को मिलता है….बेटियां
हर क्षेत्र में अपने को सिद्ध कर रही हैं पर ‘बेटियाँ पराये घर की अमानत होती हैं’,
‘बेटा ही माता पिता का बुढ़ापे तक साथ निभाता है’, ‘मृत्यु के बाद बेटे के
मुखाग्नि देने से मोक्ष मिलता है’..आदि सोच को नहीं बदल पाई हैं।
मायके का अर्थ सिर्फ बेटे से ही होता
है ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि अगर भाई ने अपनी बहन को पूछा ही नहीं तो मायका
तो फिर भी खत्म हो ही जायेगा! इससे बेहतर यह नहीं है कि चाहें भाई हो या बहन हो, ऐसा कोई हो जो बहू के सुख दुःख में काम आकर उसे मायके का सुख दे पाए!
‘बेटा बेटी एक समान’ जैसे नारे आज भी पूर्णरूप से सही नहीं लगते। नई पीढ़ी की सोच में बदलाव आ
रहा है पर उसकी गति व संख्या कम है....बेटा हो या बेटी दोनों ही ईश्वर की रचना है
फिर ऐसा क्यों....
बेटा
वंश है, तो बेटी अंश है! बेटा संस्कार है, तो बेटी संस्कृति है!
बेटा
दवा है, तो बेटी दुआ है! बेटा भाग्य है, तो बेटी विधाता है!
बेटा
शब्द है, तो बेटी अर्थ है! बेटा प्रेम है, तो बेटी पूजा है!
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