बहनें मायके से कुछ लेने नही बल्कि बहुत कुछ देने आती हैं!
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रेखा ने काम खत्म करके सबसे पहले अपने फोन को चैक किया कही कोई मैसेज या मिस कॉल तो नहीं है। पर फोन में ऐसा कुछ न पाकर वह उदास हो गई, आज उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था वह बार बार यही सोच रही थी कि रक्षाबंधन का त्योहार आने वाला है, पर इस बार न तो भाई ने फोन करके अपने आने की खबर दी और न ही मेरे आने के बारे में कुछ पूछा...उसके मन में रह रह कर अजीब ख्याल आ रहे थे!
शाम को पति के घर आने पर उसने इस बारे
में बात की तो उन्होने कहा वैसे तो सब ठीक ही होगा लेकिन तुम्हारा मन है तो तुम
मिल आओ। रेखा अगले दिन ही मायके जा पहुँची पर घर में कदम रखते ही उसे माहौल कुछ
बदला बदला लगा। उसे देखकर जहां सबके चेहरे खिल उठते थे वहीं इस बार परेशानी की झलक
साफ दिखाई दे रही थी। रात को उसने अपनी माँ से बात की तो उन्होंने कहा बेटा इस बार
कोरोना के चलते भैया का काम बिल्कुल बंद हो गया है। आमदनी के बिना कब तक चलेगा। माँ
की बात सुनकर रेखा ने माँ को सांत्वना देते हुआ कहा, “ माँ, चिंता क्यों करती हो, यह
कठिन समय भी जल्दी निकल जाएगा आप चिंता न करो।“ रेखा का मन थोड़ा शांत हुआ लेकिन वो
कमरे से बाहर निकल ही रही थी कि उसने भैया भाभी की बातें सुन ली। “पहले ही घर
चलाना इतना मुश्किल हो रहा था, अगले महीने बेटे की कॉलेज की फीस भी भरनी है, परसो राखी है तो रेखा को भी कुछ तो देना पड़ेगा” भैया भाभी से कह रहे थे! भाभी
ने धीरे स्वर में भैया को सांत्वना देते हुए कहा कि चिंता ना करो! इंतज़ाम हो
जायेगा!
यह सुनकर रेखा कुछ पलों के लिए तो
आहात हुई कि मैं इतनी परायी हो गयी! लेकिन अचानक से उसके चेहरे के भाव बदल गए और
वो सुबह का इंतज़ार करते हुए सो गयी। अगले दिन सुबह रेखा को घर में ना देखकर सबको
लगा कि अपने दोस्तों से मिलने चली गयी होगी लेकिन जब 12 बजे तक नहीं आई तो सबको
चिंता होने लगी। भाई फ़ोन करने ही वाला था कि रेखा सामने से आती दिखी! सबके पूछने
पर वो बोली मैंने चिंटू की फीस जमा करवा दी है। इससे पहले कि रेखा से कोई और सवाल
होता, वो खुद ही बोली, “ इससे पहले कि आप लोग पूछें मैं खुद ही बता देती हूँ कि यह
पैसे मैंने ससुराल या आपके दामाद से नहीं लिए हैं! बल्कि यह मेरे अपने पैसे हैं!
याद है मेरी पहली नौकरी की तनख्वाह जिसके लिए माँ - पापा ने कहा था कि बेटा ये
पैसे अपने पास रखो मुश्किल वक़्त में तुम्हारे काम आएंगे। शादी के बाद उसे पैसों की
कभी जरूरत नहीं पड़ी तो कभी निकालने के बारे में सोचा ही नहीं पर आज इस मुश्किल
घड़ी में उन पैसों का सही इस्तेमाल हो सकता है क्यों न करें ?” यह बोलकर रेखा ने अपने
भाई को राखी बांधते हुए कहा, “भैया, आज इस थाली में शगुन के रूपये मत रखो! बल्कि
एक वादा रखो कि अपनी बहन को घर का हिस्सा मानोगे! भैया बहनें,बेटियां मायके शगुन
के नाम पर कुछ लेने या परेशान करने नहीं आतीं बल्कि वह प्यार पाने आती हैं। जितनी बार मायके
की दहलीज पार करती हैं वे उसकी सलामती की दुआएं माँगती हैं। मुझे देख माँ-पापा के
चेहरे पर आने वाली रौनक व आप और भाभी के लाड़ लड़ाने से, मुझे मेरा शगुन मिल जाता है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए!” अगले दिन जैसे ही रेखा अपने घर जाने के लिए
निकलने लगती है भाई को फोन पर एक बड़ा आर्डर मिलने की सूचना मिलती है और उसे अपनी बहन
की कही बात, “बहनें मायके से कुछ लेने नही बल्कि बहुत कुछ देने आती हैं” याद आ
जाती है और आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते हैं।
यह विडम्बनीय है कि हमारे समाज में बहन
बेटियों को बोझ समझा जाता है जबकि वे तो घर की रौनक होती हैं। हर बहन और बेटी की
कामना होती है कि उसका मायका हमेशा खुशहाल रहे ताकि वह ससुराल में निश्चिंत होकर
रह सके। सच में वे मायके कुछ लेने नही बल्कि अपनी दुआ के मोती लुटाने आती हैं और उनके घर में कदम पड़ते ही बरक़त भी अपनेआप चली आती है।
होना तो यह चाहिए बेटी को विवाह के बाद भी ऐसा लेगे कि वह आज भी मायके का एक अटूट
हिस्सा है और उनके लिए घर और दिल के दरवाजे़ हमेशा खुले हैं।
“बेटियां सबके नसीब में कहां होती हैं, घर खुदा को जो पसंद आ जाये वहां होती
हैं”
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