सिर्फ ‘विश्वास’ यानी belief ही नहीं, ‘विश्वास’ यानी trust करना भी सीखें...
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रामू नट अपना खेल दिखाकर पैसा कमाता था। एक दिन वह एक तार पर लंबा सा बांस लेकर चल रहा था और उसने अपने कन्धे पर अपने बेटे को बैठा रखा था। उसके इस खेल को देखने के लिए काफी लोगों की भीड़ लगी थी। वहाँ उपस्थित लोग सांस रोककर खेल देख रहे थे। रामू सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगा, दूरी पूरी कर ली। यह देख भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी और तालियाँ, सीटियाँ बजने लगीं ।
उसके
नीचे आते ही लोग उसका फोटो खींचने लगे, उसके साथ सेल्फी लेने
लगे। उससे हाथ मिलाने लगे। तब उसने माइक लेकर भीड़ को सम्बेधित करते हुए बोला,
"क्या आपको विश्वास है कि मैं दोबारा यह कर सकता हूँ?"
भीड़ चिल्लाई, “हाँ हाँ, तुम कर सकते हो।“ उसने दोबारा पूछा, “क्या आपको विश्वास है।“ पुनः लोगों ने कहा, “हाँ पूरा विश्वास है,हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा सकते हो।“ रामू ने कहा, “ठीक है आपको मुझपर पूरा विश्वास है तो,कोई मुझे अपना बच्चा दे दे, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा।“ उसकी बात सुनकर वहाँ चुप्पी छा गई।
यह नजारा देख रामू ने हँसते हुए कहा, “डर गए...! अभी तो आपको पूरा विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ। असल मे आप का यह ‘विश्वास’ यानी belief है, मुझपर ‘विश्वास’ यानी trust नहीं है।
हम भी उस भीड़ की तरह ही हैं। हम यह कहते हैं, “ईश्वर है!” ये तो विश्वास है! परन्तु ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास नहीं है। यही दोनों विश्वासों में फर्क है। यानि हमे विश्वास तो है की ईश्वर है, परन्तु यदि ईश्वर में पूर्ण विश्वास है तो चिंता, क्रोध, तनाव क्यों?
इसलिए, ईश्वर पर विश्वास ठीक उस बच्चे की तरह करें, जिसको आप हवा में उछालो तो वो हँसता है, डरता नहीं है, क्योंकि वो जानता है कि आप उसे गिरने नहीं देंगे!
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