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हिन्दी - भाषा नहीं एक भावना

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भारत की प्यारी भाषा है हिन्दी, जग में सबसे न्यारी भाषा है हिंदी! जन-जन की भाषा है हिंदी, हिन्द को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिंदी! कालजयी जीवनरेखा है हिंदी, जीवन की परिभाषा है हिंदी!  हिंदी की बुलंद ललकार से थी हमने आज़ादी पाई, हर देशवासी की थी इसमें भावना समाई! इसके मीठे बोलों में है ऐसी शक्ति, अपने ही नहीं, परायों को भी अपना कर लेती! हर भाषा को अपनी सखी-सहेली है मानती, ऐसी है हमारी अनूठी अलबेली हिंदी!   संस्कृत से निकलती है हिंदी की धारा, भारतेंदु जयशंकर ने इसे दुलारा! जहाँ निराला महादेवी ने इसको सँवारा, वहीं दिनकर और सुभद्रा ने इसको निखारा! ऐसे महापुरुषों की प्यारी है हिंदी, हिन्द का गुरूर है हिंदी!   विडम्बना है कि हिंदी को राष्ट्र धरोहर मानते हैं, फिर भी लोग हिंदी बोलने में सकुचाते हैं! वैदिक काल से चली आ रही भाषा को छोड़, विदेशी भाषा बोलने में अपनी झूठी शान मानते हैं! पर आज तो विदेशी भी ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ बोलकर, हिंदी संस्कृति के रंगों में रंग जाते हैं!   तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी सभी रंगों को अपनाती, जैसे भी बोलो यह मधुर ध्वनी सी हर के मन में बस जाती। जहाँ कुछ भाषाओं के

सर्दियों की 'चटपटी' बहार

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गाजर के अचार: सर्दियों के मौसम में बाजार में खूब गाजर मिलती है. गाजर के हलवे का मजा तो काफी लिया जाता है मगर इस मौसम में खाने के साथ गाजर का अचार खूब खाया जाता है. इसे एक बार बना लेने के बाद आप कई हफ्तों तक स्टोर कर सकते हैं. इसे गाजर, सरसों का पाउडर, नमक, सरसों के तेल के साथ इस अचार को बनाया जाता है. अदरक का अचार: इसे सिर्फ चार सामग्री, नींबू, अदरक, नमक और सिरके से तैयार किया जाता है. अदरक को छिलने के बाद उसको काट लिया जाता है और उसमें सिरका और नींबू का रस डालकर छोड़ दिया जाता है. यह अचार हल्के गुलाबी रंग का दिखता है. गोभी शलजम का अचार: सर्दियों में लोगों को तीखा खाना अच्छा लगता है. अगर आप रोज़ के खाने के साथ नया स्वाद चाहते हैं तो इस बार सर्दी में ट्राई करें गोभी शलजम का यह खट्टा-मीठा आचार. गोभी शलजम के अचार की खास बात यह है कि आपको इसके लिए ज्यादा दिनों तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा. इस अचार को आप सिर्फ 30 मिनट में बना सकते हैं. आंवले के सेवन को बहुत ही फायदेमंद माना जाता है. वैसे तो आंवले का स्वाद खट्टा और हल्का कसेला सा लगता है लेकिन, आप चाहें तो इसका अचार बनाकर खा सकते हैं. इसका

सर्दियों के मौसम में पीये जाने वाले गर्म पेय....!!

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सर्दियों के मौसम में अपने को ठंड से बचाने के लिए सिर्फ गरम कपड़े पहनना ही काफी नहीं है बल्कि शरीर को बाहरी और अंदरूनी रूप से देखभाल की जरूरत होती है। इसके लिए मौसम बदलते ही दिनचर्या और खान-पान में भी बदलाव लाना आवश्यक है। जिस तरह गर्मियों के मौसम में ठंडी चीज हमारे शरीर को फायदा देती हैं, उसी प्रकार सर्दियों के मौसम में गर्म पेय पदार्थ भी हमारे शरीर के लिए जरूरत बन जाते हैं। इस लेख के माध्यम से हम आपको कुछ ऐसे पेय पदार्थों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिनका सर्दियों में सेवन करने से आपका शरीर सर्दियों में होने वाले दुष्प्रभावों तथा बिमारियों से बचा रहेगा। आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ पेय पदार्थों के बारे में... अदरक की चाय : सर्दियों के मौसम में अदरक की चाय पीना बहुत ही फायदेमंद होता है क्योंकि इसका सेवन ठंड से होने वाली बीमारियों से आराम दिलाता है। अदरक की चाय पाचन को बेहतर बनाने के साथ-साथ भोजन के एब्सॉर्प्शन को बढ़ाती है। उसके अलावा यह खांसी- जुकाम जैसी समस्याओं से बचाने के साथ- साथ वातावरण में पाए जाने वाले जीवाणुओं से होने वाली एलर्जी से भी सुरक्षा करती है। ग्रीन टी: ग्रीन

सर्दियों में शरीर को अन्दर से गरम रखें इन आम चीज़ों से...!

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सर्दियों के मौसम में सर्दी के असर से बचने के लिए लोग गर्म कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं , लेकिन क्या शरीर को ठंड से बचाने के लिए कपड़ों से ढक लेना ही काफी है तो इसका उत्तर है , नहीं , ठंड से लड़ने के लिए गर्म कपड़े पहनने के साथ - साथ शरीर में अंदरूनी गर्मी का होना जरूरी है। शरीर में यदि अंदर से खुद को मौसम के हिसाब से ढालने की क्षमता हो तो ठंड कम लगेगी और बीमारियां का खतरा भी नहीं रहेगा। यही कारण है कि ठंड में खानपान पर विशेष रूप से ध्यान देने के लिए कहा जाता है। सर्दियों में   मौसम के अनुकूल सही खानपान के सेवन से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है और शरीर में गर्मी बनी रहती है। तो आइए आज हम   सर्दी से लड़ने के लिए आपको कुछ ऐसी चीजों के बारे में जानकारी देते हैं जो शरीर को अंदर से गर्मी प्रदान करती हैं। बाजरा - बाजरा एक ऐसा   अनाज है जिसे सर्दी के दिनों में खाने से शरीर को गर्मी मिलती है। इसमें दूसरे अनाजों की अपेक्षा सबसे ज्यादा प्रोटीन की मात्रा होती है। बाजरे में शरीर के लिए आवश्यक तत्व जैसे मैग्नीशियम , कैल्शियम , मैग्नीज , ट्रिप्टोफेन , फाइबर , विटामिन - बी , एंटीऑक्सीडेंट आदि भरपूर

ठण्ड में रखें अपना ख्याल!

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मनभावन-सी सर्दी आई....!!!

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गुनगुनी धूप में धुआँ-धुआँ-सी घूम रही है मुखरित-सी पुरवाई  ... नववर्ष के द्वारे देखो मनभावन-सी  सर्दी आई...!!! अलाव की लहरों पर पिघलती कोहरे की परछाई तितली-तितली मौसम पर गीत सुनाती शरद ऋतु की शहनाई नववर्ष के द्वारे देखो मनभावन-सी सर्दी आई प्रकृति की नीरवता में आसमान है जमा-जमा-सा पुष्पित वृक्षों पर सोया है सुबह का कोहरा घना-घना-सा उनींदे सूर्य से गिरती ओस की बूँदों से लिपटा सुरमई-सा थमा-थमा-सा जाग उठा मुक्त भाव से मौसम ने कसमसा कर अमराई में ली अंगडाई नववर्ष के द्वारे देखो मनभावन-सी सर्दी आई ।

चढ़ावा

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सुनीता ने सुमेधा को जल्दी- जल्दी जाते देखा तो उसे रोकते हुए बोली " सुमेधा सामान लेकर अकेली कहाँ जा रही हो? सुमेधा ने रुकते हुए मुस्करा कर जवाब दिया- " मां के मंदिर जा रही हूँ।" यह सुनकर सुनीता ने हैरानी से पूछा "पर मंदिर तो तुम्हारे घर के पास है। फिर इतनी दूर इधर कहाँ जा रही हो"? सुमेधा ने सुनीता की बात का आराम से जवाब देते हुए कहा-"मैं श्रीनगर कॉलोनी वाले मंदिर में जाती हूँ।" यह सुनकर सुनीता ने सुमेधा से यह जानने के लिए कि " उस मंदिर में क्या कुछ खास बात है? क्या उसकी खास मान्यता है"? पूछा। सुमेधा ने कहा " नहीं, खास बात कुछ नहीं है। माँ तो सब जगह एक ही हैं।" सुमेधा अभी बता ही रही थी उसकी बात पूरी होने से पहले ही सुनीता ने सुमेधा से एक और प्रश्न कर दिया कि "फिर तुम इतनी दूर गंदी-सी बस्ती में क्यों जाती हो"? सुमेधा ने सुनीता को बताया "वहाँ बस्ती में ज्यादातर गरीब लोग ही रहते हैं। चढ़ावा बहुत कम चढ़ता है। इसलिए पुजारी की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं है। जो भी चढ़ावा चढ़ता है। पंडितजी के लिए उस चढ़ावे की बहुत अहमियत है। ज

ग्रन्थों की वैज्ञानिकता

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 एक बूढ़ी माता मन्दिर के सामने भीख माँगती थी। एक संत ने पूछा, "आपका बेटा लायक है, फिर आप यहाँ ऐसे क्यों?" बूढ़ी माता बोली, "बाबा, मेरे पति का देहान्त हो गया है। मेरा पुत्र परदेस नौकरी के लिए चला गया। जाते समय मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया था, वे खर्च हो गये इसीलिए भीख माँग रही हूँ।" सन्त ने पूछा, " क्या तेरा बेटा तुझे कुछ नहीं भेजता?" बूढ़ी माता बोलीं, "मेरा बेटा हर महीने एक रंग-बिरंगा कागज भेजता है जिसे मैं दीवार पर चिपका देती हूँ।" सन्त ने उसके घर जाकर देखा कि महिला ने दीवार पर 60 बैंक ड्राफ्ट्स  चिपकाकर रखे हुए थे। प्रत्येक ड्राफ्ट ₹50,000 राशि का था। पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी सम्पत्ति है।  हम भी इसी तरह की स्थिति में रहते हैं। हमारे पास अपने धर्मग्रन्थ तो हैं पर हम उन्हें माथे से लगाकर अपने घर में सुसज्जित करके रखते हैं....हमें समझना होगा कि हम उनका वास्तविक लाभ तभी उठा पाएगें जब हम उनका अध्ययन, चिन्तन, मनन करके उन्हें अपने जीवन में उतारेगें!

परखने वाले का नहीं समझने वाले का साथ...!

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एक 'मिडिल क्लास' पति बीवी से प्यार ज़ाहिर करने के लिए उसे ऐनिवर्सरी पर ताजमहल या नैनीताल नहीं ले जा पाता! घर में जब सब सो जाते हैं तब वो रात में ऑफ़िस वाले बैग में से चाँदी की एक जोड़ी पायल और लाल काँच की चूड़ियाँ धीरे से निकाल कर बीवी को पहनाता है और..  उसके माथे पर पसीने से फैल चुके सिंदूर को उँगलियों से पोछते हुए ख़ुद से वादा करता है कि अगली गर्मी से पहले वो कूलर ख़रीद लाएगा..! और शर्ट की जेब टटोल कर 500 रूपये  हाथ में देते हुए कहता है, " घर जाना तो अम्मा और भाभी के लिए कुछ ख़रीद लेना! क्या पता तब हाथ में पैसे रहे न रहे..🙂 हर कोई चाहता है प्यार में ताजमहल बनाना परंतु जीवन का सच है दो टाइम की रोटी का जुगाड़ लगाना !! जिंदगी तब बहुत आसान हो जाती है,  जब साथी परखने वाला नहीं....! बल्कि समझने वाला  साथ हो...!! ❤

'सही' संस्कार

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रजनी का बेटा साकेत खाने का बहुत शौकीन था। कुल बारह वर्ष का होने के बावजूद न जाने कहाँ कहाँ से व्यंजनों के नाम सुन कर आता और उससे बनवाता। हर रविवार रजनी कोई न कोई विशेष डिश ज़रूर बनाती थी! खुद खाने के साथ साथ साकेत को औरों को भी खिलाने का बहुत शौक था। अगर उसे कुछ पसन्द आ जाता तो रजनी से बोलता, "मम्मा थोड़ा सा एक डिब्बे में रख दो। मेरा दोस्त है ना उसे खिलाऊँगा। उसे भी ये डिश बहुत पसंद है।" उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन रजनी ने उससे पूछा, "ये कौन सा दोस्त है जिसके लिए तुम हमेशा कुछ न कुछ लेकर जाते हो?" साकेत बोला, "वो समर है ना उस……"  रजनी ने बीच में ही बोलते हुए कहा, "उसे घर बुला लिया करो! यहीं कॉलोनी में तो रहता है। संडे है, तुम्हारे साथ बैठ के खा लेगा!" "नहीं मम्मा, वो नहीं आएगा। उसे शर्म आती है।" फिर  रजनी की तरफ देख कर बोला, "पर वह बहुत खुश हो जाता है। उसने तो पूरी  लिस्ट बना रखी है, उसे क्या क्या खाना है!" हँसता हुआ बोला साकेत। एक दिन कॉलोनी की दुकान पर रजनी को दोस्त समर दिख गया। कुछ सामान ले रहा था।  रजनी ने उससे बात करत

गृहलक्ष्मी

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 एक बार राजेन्द्र जी को अपने एक दोस्त के बेटे की शादी के रिसेप्शन में जाने का मौका मिला। वह स्टेज पर खड़ी खूबसूरत नयी जोड़ी को आशीर्वाद देकर नीचे उतर ही रहे थे कि दोस्त ने आवाज देकर वापस स्टेज पर बुलाया और कहा कि "नवदंपति को आशीर्वाद के साथ अच्छी शिक्षा देते जाओ !" राजेन्द्रजी ने पर्स में से 100 रुपये का नोट निकालकर दुल्हे के हाथ में देते हुए कहा, " बेटा! इस नोट को मसलकर फेंक दे!" दुल्हे ने कहा "अंकल, ऐसी सलाह? पैसे को तो हम लक्ष्मी मानते हैं!" राजेन्द्रजी ने जबाब में कहा, "जब कागज की लक्ष्मी का इतना मान सम्मान करते हो तो आज से तुम्हारे साथ खड़ी कंधे से कंधा मिलाकर पुरी जिंदगी दुख सुख में साथ देने के लिए तैयार गृहलक्ष्मी को कितना मान सम्मान देना है वो तुम खुद तय कर लेना क्योंकि ये किसी माँ-बाप की सबसे अनमोल मोती हैं जो कि इस कागज़ की लक्ष्मी से बहुत ऊपर है!" राजेन्द्रजी अपनी बात कह आकर स्टेज से नीचे आ गये और वहां खड़े लोग बस उन्हें देखते ही रह गए! सच है, गृहलक्ष्मी को सम्मान देना हर परिवार और जीवनसाथी का कर्तव्य है क्योंकि एक स्त्री मकान को घर बना

दोस्तों के साथ जियोगे खुद को जवां पाओगे!

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सुबह सुबह किसी ने द्वार खटखटाया , मैं लपककर आयी ,  जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने "बुढ़ापा" खड़ा था , भीतर आने के लिए,  जिद पर अड़ा था.. 😔   मैंने कहा, "  नहीं भाई ! अभी नहीं...  ... अभी तो मेरी 'उमर' ही क्या है.. ''  वह  हँसा और बोला, "   बेकार कि कोशिश ना कर , मोहतरमा ,  मुझे रोकना नामुमकिन है...!"   मैंने कहा, " .. अभी तो कुछ दिन रहने दे , अभी तक दूसरो के लिए जी रही हूँ .. अब अकल आई है तो कुछ दिन अपने लिए और सहेलियों  💃💃 के साथ भी जीने दे.. '' बुढ़ापा हंस कर बोला, "  अगर ऐसी बात है तो चिंता मत कर.. उम्र भले ही तेरी बढ़ेगी,  मगर बुढ़ापा नहीं आएगा , तू जब तक सहेलियों 💃💃 के साथ जीएगी खुद को जवान ही पाएगी!"    

नसीब का दाना, नसीब वाले तक पहुँच ही जाता है!

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सेठ करोड़ीमल भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। वे निरंतर उनका जाप करते रहते। वह रोज स्वादिष्ट पकवान बना कर कृष्ण जी को भोग लगाने मंदिर जाते। पर घर से मन्दिर के रास्ते में ही उन्हें नींद आ जाती और उनके द्वारा बनाए हुए पकवान चोरी हो जाते। और वो हर रोज़ कान्हा जी को भोग नहीं लगा पाते। सेठ जी बहुत दुखी होते और कान्हा जी से शिकायत करते, "ऐसा क्यूँ होता है! मैं आपको भोग क्यों नहीं लगा पाता हूँ?"  कान्हा जी सेठ जी को कहते, "वत्स, दानें- दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम! तुम्हारा बनाया भोग मेरे नसीब में नही हैं, इसलिए मुझ तक नही पहुंच पाता।" सेठ थोड़ा गुस्से से कहते हैं, "ऐसा नही हैं, प्रभु। कल मैं आपको भोग लगाकर ही रहूंगा आप देख लेना!" और कान्हा जी मुस्कुराते हुए कहते हैं, "ठीक है, भक्त! जैसी तुम्हारी इच्छा!"  अगले दिन सेठ सुबह जल्दी तैयार हो कर अपनी पत्नी से चार डब्बों में स्वादिष्ट पकवान बनवाकर उन्हें लेकर मंदिर के लिए निकल पड़ता है। सेठ रास्ते भर सोचता है, आज जो भी हो जाए मैं नहीं सोऊंगा! कान्हा को भोग लगाकर ही रहूंगा।  मंदिर के रास्ते में जाते समय सेठ क

क्योंकि हमें "ईश्वर" ने बनाया है...!

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रोज़ की तरह एक आम शाम... चाय का कप लेकर आप खिड़की के पास बैठे हों,  और बाहर के सुंदर नज़ारे का आनंद लेते हुए चाय की चुस्की लेते हैं,  और तभी आपको ध्यान आता है, "अरे चीनी डालना तो भूल ही गये..!" लेकिन किचन में जाकर चीनी डालने का विचार आते ही आलस आ जाता है.... और फिर फीकी चाय जैसे तैसे पी कर कप खाली कर दिया!  तभी आपकी नज़र कप के तल में पड़ी बिना घुली चीनी पर पड़ती है..!! मुख पर मुस्कुराहट लिए दिमाग में एक विचार....चम्मच होती तो चीनी मिला लेते! हमारे जीवन मे भी कुछ ऐसा ही है... सुख ही सुख बिखरा पड़ा है हमारे आस पास...  लेकिन, बिन घुली उस चीनी की तरह !! बस ज़रूरत है थोड़ा सा ध्यान देने की !  याद रखें,  जितना हो सके "सरल" बनने की कोशिश करें "स्मार्ट" नही! क्योंकि हमें "ईश्वर" ने बनाया है...किसी "electronic company" ने नही..😀  किसी के साथ हँसते-हँसते उतने ही हक से रूठना भी आना चाहिए !  अपनो की आँख का पानी  धीरे से पोंछना आना चाहिए !  रिश्तेदारी और दोस्ती में कैसा मान अपमान ?  बस अपनों के दिल मे रहना आना चाहिए..! 

' सर्वदुखहर्ता ' स्त्री !

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एक नवाब साहब और उनकी बेगम के बीच उस दिन कहा सुनी हो गयी जब नवाब साहब ने कह दिया, "मैं इस शहर का नवाब हूँ , इसलिए लोग मेरी इज्जत करते हैं और तुम्हारी इज्जत मेरी वजह से है।"  यह सुनकर बेगम ने भी कह दिया, "आपकी इज्जत मेरी वजह से है। मैं चाहूँ तो आपकी इज्जत एक मिनट में बिगाड़ भी सकती हूँ और बना भी सकती हूँ।"  यह सुनकर नवाब को तैश आ गया और वह बोले, "ठीक है दिखाओ ! मेरी इज्जत खराब करके..!!!" उस वक़्त तो बात आई गई हो गयी। शाम को नवाब के घर दोस्तों की महफ़िल जमी...हंसी मजाक हो रहा था कि अचानक नवाब को अपने बेटे के रोने की आवाज आई, वो जोर जोर से रो रहा था और नवाब की पत्नी बुरी तरह उसे डांट रही थी। नवाब ने जोर से आवाज देकर पूछा कि क्या हुआ बेगम क्यों डाँट रही हो..? बेगम ने अंदर से ही कहा,"देखिये न--आपका बेटा खिचड़ी मांग रहा है जबकि उसका पेट भर चुका है..!!" नवाब ने नरमी से कहा,"दे दो थोड़ी सी और.! उसमें क्या हो गया ....!" बेगम बोली, "आप नहीं समझेंगे! घर में और भी तो लोग है, सारी खिचड़ी इस को कैसे दे दूँ..??" यह सुनकर पूरी महफ़िल शांत हो गयी। लो

Facebook वाले 'अनोखे' रिश्ते!

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आज के तकनीकी युग में हम सभी का एक परिवार सोशल मीडिया पर भी होता है...फेसबुक के माध्यम से....और इन रिश्तों का अपना ही अलग रंग है क्योंकि: लाइक और कॉमेंट्स करने से इनकी शुरुआत होती है 👍 बिना देखे बिना मिले ही बन जाते हैं 💓 कोई खून का रिश्ता ना होते हुए भी रिश्ता बन जाता है 💕 आपस में एक अजीब सा जुड़ाव हो जाता जो कभी कभी खून के रिश्ते से बढ़कर हो जाते हैं 👫 यहाँ हम एक दूसरे से रूठते भी हैं,और मनाते भी हैं! और जो एक रूठ जाए तो हाल सब का बुरा होता है 😘 एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहाँ हम सब किसी के भी रिश्तेदार नहीं....और किसी किसी रिश्तेदारी भी है 😚 फिर भी यहां एक अटूट रिश्ता बांध लिया जाता है...जिसमे आपसी प्यार है....❤हंसी-मजाक है, ❤ रूठना है तो मनाना भी है...❤जन्मदिन की मुबारकबाद है...❤बीमार हो तो दुआऐं भी हैं❤ किसी के शहर जाओ तो मिलने की आस है...तो कोई मदद करने के लिए हमेशा तत्पर है 😍 कोई दीदी बन जाती है तो कोई माँ बन जाती है तो कोई सखी बन जाती है तो कई अज़ीज़ दोस्त बन जाते हैं तो कई हमारे लिए ना टूटने वाला रिश्ते बन जाते है!   👼😀 कुछ ऐसा ही होता है *FACEBOOK* का रिश्ता 

छोटी छोटी 'काम' की बातें

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पिता की याद

  जब भी देखती हूँ , कोई घना पेड़ , कुछ पल उसके पास ठहर जाती हूँ। और पिता जो मुझसे दूर रहते हैं , उन्हें अपने बहुत करीब पाती हूँ। उसकी झूमती मुस्कराती डालियाँ , पिता की बाहों की याद दिलाती हैं , झुक जाती हैं मेरे आस - पास , और फिर मुझे , गले लगाता है। उसके सुर्ख पत्ते जब गिरते हैं मुझपर , चूमते हैं माथा , बरसाते हैं आशीष मुझपर। और कह रहे हों मानो , न हो कोई बुरी नज़र तुझ पर। उसके खुरदुरे तने से लिपटकर , मैं जी भर कर , रो लेती हूँ , उसको ही पिता कंधा समझ , कुछ पल ही सही , मैं सुकून से सो लेती हूँ। और पिता जो मुझसे दूर रहते हैं , थोड़ी देर ही सही , उनके करीब हो लेती हूँ।

माँ का वो 'जादुई' पल्लू !

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शायद ही आज के समय में किसी बच्चे ने 'माँ के पल्लू' का जादू महसूस किया होगा क्योंकि आजकल कई कारणों के चलते साड़ी नहीं पहनी जाती। लेकिन माँ का वो 'जादुई' पल्लू खुद में इतने एहसास समेटे रखता है जिनकी गिनती भी नहीं की जा सकती!  माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता लेकिन 'माँ का पल्लू' माँ को और एक गरिमामयी छवि प्रदान कर देता है।   'माँ का पल्लू' गरम बर्तन को चूल्हे से हटाते समय बर्तन को पकड़ने के काम आता है।  'माँ का पल्लू' एक खुली किताब है जिस पर ना जाने कितनी ही कहानियां लिखी जा सकती हैं।  पल्लू  नई नवेली दुल्हन के श्रृंगार के साथ लज्जा का इज़हार हैं।   'माँ का पल्लू' बच्चों का पसीना और आँसू पोंछने का साधन है तो माँ के लिए अपने बच्चे के गंदे कानों और मुंह की सफाई का जरिया!   'माँ का पल्लू' उसका अपना तौलिया है।  खाना खाने के बाद  'माँ का पल्लू' से हाथ मुंह साफ करने का अपना ही आनंद होता है। कभी आँख मे दर्द होने पर 'माँ का पल्लू' का गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख में लगा देतीं है , सभी दर्द उसी समय गायब हो जाते हैं।  माँ

एक 'चुप', सौ 'सुख'

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एक मछलीमार ने मछली पकड़ने के लिए एक तालाब में कांटा डाला! और तालाब के किनारे बैठकर मछली के कांटे में फँसने की प्रतीक्षा करने लगा पर जब काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी , ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा,  कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाला है और  यहाँ कोई मछली है ही नहीं!  उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके कांटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं। उसे यह देख बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँस नहीं रही है! एक राहगीर ने जब मछुआरे को परेशान देखा तो उसके पास आकर उससे कहा, "लगता है भैया , यहाँ पर मछली पकड़ने बहुत दिनों बाद आए हो! तुम्हें नहीं पता अब इस तालाब की मछलियाँ कांटे में नहीं फँसती।"  मछुआरे ने उसकी बात सुनकर आश्चर्य से पूछा, "क्यों , ऐसा क्या है यहाँ ?" तब राहगीर ने कहा, "कुछ दिनों पहले तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत आकर ठहरे थे। उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था। उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से प्रवचन सुनतीं। यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके

कर्म - फल

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सचिन  जरूरी मीटिंग के लिए बाहर आया और उसने बाइक को किक मारी ही थी कि जूते का सोल अचानक टूट गया! अब वो टूटे जूते के साथ मीटिंग में तो नहीं जा सकता यह सोचते हुए उसने आसपास नज़र घुमाई तो उसे सड़क किनारे बैठी एक बुजुर्ग महिला दिखी जो जूते चप्पल सही कर रही थी। पहले तो सचिन को एक बुजुर्ग महिला से ऐसे काम करवाना सही नहीं लगा लेकिन मीटिंग में जाना भी उसके लिए अनिवार्य था इसलिए वो हिचकिचाहट के साथ ही उस महिला के पास पहुँच गया! बातों बातों मे सचिन ने उस महिला से पूछा, "मां जी! आप यह काम क्यों करती हैं!?" महिला ने विनम्रता से जवाब देते हुए कहा, " बेटा! सब कर्मों का फल है!" सचिन को कुछ समझ नहीं आया, तब महिला ने समझते हुए आगे कहा, " बेटा! मैं और मेरे पति शुरू से एक बेटा चाहते थे इसीलिए हमने दो बेटियों को कोख में ही मार दिया ..उसके बाद दो बेटे हुए और बड़ी उम्मीदो से हमने उनकी परवरिश की, उन्हें पढ़ाया - लिखाया। उनकी हर छोटी बड़ी इच्छाओं को पूरा किया! धूमधाम से दोनों की शादी की! लेकिन शादी होते ही दोनों बदल गए! घर में कलेश देख मैंने अपने पति से घर कारोबार सब-कुछ बेटों के नाम करने क

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