गृहलक्ष्मी
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एक बार राजेन्द्र जी को अपने एक दोस्त के बेटे की शादी के रिसेप्शन में जाने का मौका मिला। वह स्टेज पर खड़ी खूबसूरत नयी जोड़ी को आशीर्वाद देकर नीचे उतर ही रहे थे कि दोस्त ने आवाज देकर वापस स्टेज पर बुलाया और कहा कि "नवदंपति को आशीर्वाद के साथ अच्छी शिक्षा देते जाओ !" राजेन्द्रजी ने पर्स में से 100 रुपये का नोट निकालकर दुल्हे के हाथ में देते हुए कहा, " बेटा! इस नोट को मसलकर फेंक दे!"
दुल्हे ने कहा "अंकल, ऐसी सलाह? पैसे को तो हम लक्ष्मी मानते हैं!" राजेन्द्रजी ने जबाब में कहा, "जब कागज की लक्ष्मी का इतना मान सम्मान करते हो तो आज से तुम्हारे साथ खड़ी कंधे से कंधा मिलाकर पुरी जिंदगी दुख सुख में साथ देने के लिए तैयार गृहलक्ष्मी को कितना मान सम्मान देना है वो तुम खुद तय कर लेना क्योंकि ये किसी माँ-बाप की सबसे अनमोल मोती हैं जो कि इस कागज़ की लक्ष्मी से बहुत ऊपर है!"
राजेन्द्रजी अपनी बात कह आकर स्टेज से नीचे आ गये और वहां खड़े लोग बस उन्हें देखते ही रह गए!
सच है, गृहलक्ष्मी को सम्मान देना हर परिवार और जीवनसाथी का कर्तव्य है क्योंकि एक स्त्री मकान को घर बनाती है! अपना सर्वस्व त्याग कर एक नया संसार बनाती है! घर की शोभा होती हैं जिनके बिना घर, घर नहीं होता। वह एक निर्जीव से मकान को अपनी सूझबूझ, कल्पनाओं व प्रेम से आरामदायक आशियाने में बदल देती है, जहाँ हम सारा तनाव भूलकर सुकून के पल गुजार सकते हैं।
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