सुनीता ने सुमेधा को जल्दी- जल्दी जाते देखा तो उसे रोकते हुए बोली " सुमेधा सामान लेकर अकेली कहाँ जा रही हो?
सुमेधा ने रुकते हुए मुस्करा कर जवाब दिया- " मां के मंदिर जा रही हूँ।"
यह सुनकर सुनीता ने हैरानी से पूछा "पर मंदिर तो तुम्हारे घर के पास है। फिर इतनी दूर इधर कहाँ जा रही हो"?
सुमेधा ने सुनीता की बात का आराम से जवाब देते हुए कहा-"मैं श्रीनगर कॉलोनी वाले मंदिर में जाती हूँ।" यह सुनकर सुनीता ने सुमेधा से यह जानने के लिए कि " उस मंदिर में क्या कुछ खास बात है? क्या उसकी खास मान्यता है"? पूछा।
सुमेधा ने कहा " नहीं, खास बात कुछ नहीं है। माँ तो सब जगह एक ही हैं।" सुमेधा अभी बता ही रही थी उसकी बात पूरी होने से पहले ही सुनीता ने सुमेधा से एक और प्रश्न कर दिया कि "फिर तुम इतनी दूर गंदी-सी बस्ती में क्यों जाती हो"?
सुमेधा ने सुनीता को बताया "वहाँ बस्ती में ज्यादातर गरीब लोग ही रहते हैं। चढ़ावा बहुत कम चढ़ता है। इसलिए पुजारी की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं है। जो भी चढ़ावा चढ़ता है। पंडितजी के लिए उस चढ़ावे की बहुत अहमियत है। जबकि बड़े-बड़े और अमीरों की बस्ती के पास वाले मंदिरों में तो इतना चढ़ावा चढ़ता है कि पुजारी को देखने की भी फुर्सत नहीं होती। वे बड़े-बड़े नोट उठाकर बाकी चढ़ावे के सामान का बाहर ढेर लगा देते हैं"।
सुमेधा की बात सुनकर सुनीता ने कहा " बात तो तू ठीक कह रही है, चल आज मैं भी तेरे साथ चलती हूँ"। सुनीता सुमेधा के साथ चल पड़ी।
मंदिर के पास पहुँचकर सुनीता एक रेहड़ी पर रुककर मंदिर में चढ़ाने के लिए सिंगार का सामान और चुनरी लेने लगी। ऐसा करते देख सुमेधा ने उसे समान लेने से रोकते हुए कहा, "जितने का सामान ले रही हो, उतने पैसे मंदिर में चढ़ा देना। यह घटिया सिंगार का सामान और छोटी सी चुन्नी किसी के काम नहीं आएगी। अगली बार जब मंदिर आओगी तो चाहें एक चीज ले आना, पर वह ऐसी लाना जो पुजारीजी के परिवार के काम आ सके। न कि इन रेहड़ियों और दुकानों पर फिर से बिकने के लिए वापस पहुँचे"।
सुनीता ने सुमेधा की बात से सहमती जताते हुए कहा- हाँ,कह तो तुम बिल्कुल ठीक रही हो। हम बिना सोचे समझे भेड़ चाल में इन दुकानों से खरीदकर ऐसा ऐसा सामान भगवान को चढ़ा आते हैं जिसको खुद कभी प्रयोग नहीं करते और सोचते यह हैं कि भगवान हमारे इस चढ़ावे से खुश होकर हमें हीरे, मोती जवाहरात धन धान्य सब कुछ दे देगें "। सुनीता के बोलने से साफ लग रहा था कि अब उसकी आंखें खुल चुकी हैं।
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