कई बार हम किसी की मदद बिना किसी स्वार्थ के सच्चे दिल से करते है परन्तु यदि उसके बदले तारीफ के दो शब्द के बजाये कुछ कड़वी बातें सुनने को मिल जाएँ, तो क्या किसी की मदद करनी चाहिए अथवा नहीं यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
काफी समय पहले की बात है। एक कपड़े की दुकान से ही मैं कई सालों से परिवार के सभी कपड़े खरीदती आ रही थी। उस दुकान का कपड़ा चाहे दो पैसे महँगा हो पर क्वालिटी की गारंटी थी और हमें कभी शिकायत भी नहीं करनी पड़ी। एक विश्वास बन गया था।दुकान के मालिक से अच्छी जान पहचान भी हो गयी थी।मेरी घनिष्ट मित्र अलका की ननद की शादी थी। वह दुलहन की साडियाँ तथा शादी के कपड़ों की खरीददारी के लिए मुझे साथ ले गई थी। यह कोई नई बात नहीं थी , हम दोनों सहेलियाँ अधिकतर खरीददारी करने साथ ही जाती थीं और कभी किसी ने एक दूसरे के साथ जाने के लिए मना भी नहीं किया। मैंने अपनी उसी पहचान की कपड़े की दुकान से कपड़े की खरीददारी करायी। अलका संतुष्ट थी।
शादी की तैयारियाँ चल रहीं थी। मेहमानों का आना शुरू हो गया था।एक दिन मैं अपनी सहेली अलका के साथ साडि़यों की पैकिंग कर रह थी व शादी में आई महिलाओं ने साड़ी देख साड़ियों के रंग, डिजाइन व कपड़े इत्यादि की खूब तारीफ की। तब मेरी सहेली ने मेरी तरफ इशारा किया कि 'ये बैठी हैं कपड़े की पारखी, सब इसीने अपनी पहचान की दुकान से दिलवाया है।' इस पर उसकी बुआ सास, जो की वही बैठी थीं, ने पूछा- 'कितने का कपड़ा खरीदा?' मेरी सहेली ने बताया 30-35 हजार का कपड़ा खरीदा था। 30-35 हजार सुनकर उन्होंने मुझ से सीधे सवाल किया 'और बताओ इसमें तुम्हारा कमीशन कितना बना।' उनकी यह बात सुनकर मैं सन्न-सी रह गई सभी मेरी ओर ही देख रहे थे। मैं कुछ संभलकर बुआजी से बोली,"बुआजी आप ये क्या कह रही हैं। अलका तो मेरी सहेली है। खरीददारी में उसकी मदद करने के लिए ही उसके साथ गई थी।किसी तरह के कमीशन लेने के लिए नहीं।" लेकिन उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था । वे केवल एक ही बात कहे जा रहीं थीं कि आजकल बिना लालच के कोई किसी का काम नहीं करता। अधिक दुख तो तब हुआ जब मेरी सहेली ने भी बुआजी से कुछ नहीं कहा। अब मैं वहाँ और ज्यादा देर नहीं रूक सकी । उनके ऐसे शब्दों से दिल बहुत आहत हुआ, बिना कुछ किये मेहमानों के सामने मजाक बना वो अलग।
घर आकर मैंने पूरे वाकये के बारे में सोचा कि इसमें मेरी गलती क्या थी। मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा हो गया कि क्या भलाई की सोच में भी बदलाव लाने की जरूरत है.........
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