संदेश

जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिन्दी - भाषा नहीं एक भावना

चित्र
भारत की प्यारी भाषा है हिन्दी, जग में सबसे न्यारी भाषा है हिंदी! जन-जन की भाषा है हिंदी, हिन्द को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिंदी! कालजयी जीवनरेखा है हिंदी, जीवन की परिभाषा है हिंदी!  हिंदी की बुलंद ललकार से थी हमने आज़ादी पाई, हर देशवासी की थी इसमें भावना समाई! इसके मीठे बोलों में है ऐसी शक्ति, अपने ही नहीं, परायों को भी अपना कर लेती! हर भाषा को अपनी सखी-सहेली है मानती, ऐसी है हमारी अनूठी अलबेली हिंदी!   संस्कृत से निकलती है हिंदी की धारा, भारतेंदु जयशंकर ने इसे दुलारा! जहाँ निराला महादेवी ने इसको सँवारा, वहीं दिनकर और सुभद्रा ने इसको निखारा! ऐसे महापुरुषों की प्यारी है हिंदी, हिन्द का गुरूर है हिंदी!   विडम्बना है कि हिंदी को राष्ट्र धरोहर मानते हैं, फिर भी लोग हिंदी बोलने में सकुचाते हैं! वैदिक काल से चली आ रही भाषा को छोड़, विदेशी भाषा बोलने में अपनी झूठी शान मानते हैं! पर आज तो विदेशी भी ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ बोलकर, हिंदी संस्कृति के रंगों में रंग जाते हैं!   तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी सभी रंगों को अपनाती, जैसे भी बोलो यह मधुर ध्वनी सी हर के मन में बस जाती। जहाँ कुछ भाषाओं के

वन विनाश....सोचो मानव.....

इस बार तो सावन का महीना आया और जाने भी वाला है पर सावन जैसी कोई बात नहीं थी। वो आनंद कहीं नहीं था, न पानी की फुहार ,न ठंडी- ठंड़ी बयार,छाता न लेकर जाना और बारिश में भीग कर आना, घर आकर माँ से ड़ाँट खाना,गर्म चाय के साथ  पकौडों की फरमाईश करना कहीं खो सा गया था। दिन प्रतिदिन बदलते पर्यावरण के लिए कहीं न कहीं हम ही दोषी हैं। प्रगति की दौड़ में हम अपनी प्रकृति के प्रति अपने कर्त्तव्य भूल गये हैं। निरन्तर वन कट रहे हैं,हरियाली कहीं दिखती नहीं, दूर-दूर तक कंक्रीट के जंगल ही जंगल दिखाई देते हैं, जिसका प्रभाव धीरे-धीरे दिखने लगा है - वर्षा कम होने लगी है,जहाँ हो रही है वहाँ बाढ़ ने तबाही मचा रखी है, पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया है, गर्मी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। परन्तु अभी भी इतनी देर नहीं हुई है, यदि मानव धरा के प्रति अपनी जिम्मेदारी को याद कर पूरी ईमानदारी से निभाने का संकल्प करे तो आने वाले पर्यावरणीय संकट से बचा जा सकता है।   मैंने इन पक्तियों में इन ही विचारों को शब्दबद्ध कर कहने की कोशिश की है  -       वन संरक्षण को अपनाना है,       धरा को अपनी बचाना है।       वन ही जीवन का प

बदलावः भलाई की सोच में भी...?

कई बार हम किसी की मदद बिना किसी स्वार्थ के सच्चे दिल से करते है परन्तु यदि उसके बदले तारीफ के दो शब्द के बजाये कुछ कड़वी बातें सुनने को मिल जाएँ, तो क्या किसी की मदद करनी चाहिए अथवा नहीं यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं। काफी समय पहले की बात है। एक कपड़े की दुकान से ही मैं कई सालों से परिवार के सभी कपड़े खरीदती आ रही थी। उस दुकान का कपड़ा चाहे दो पैसे महँगा हो पर  क्वालिटी की गारंटी थी और हमें कभी शिकायत भी नहीं करनी पड़ी।  एक विश्वास बन गया था।दुकान के मालिक से अच्छी जान पहचान भी हो गयी थी।मेरी घनिष्ट मित्र अलका की ननद की शादी थी। वह दुलहन की साडियाँ तथा शादी के कपड़ों की खरीददारी के लिए मुझे साथ ले गई थी। यह कोई नई बात नहीं थी , हम दोनों सहेलियाँ अधिकतर खरीददारी करने साथ ही जाती थीं और कभी किसी ने एक दूसरे के साथ जाने के लिए मना भी नहीं किया। मैंने अपनी उसी पहचान की कपड़े की दुकान से कपड़े की खरीददारी करायी। अलका संतुष्ट थी।  शादी की तैयारियाँ चल रहीं थी। मेहमानों का आना शुरू हो गया था।एक दिन मैं अपनी सहेली अलका के साथ साडि़यों की पैकिंग कर रह थी व शादी में आई महिलाओं ने साड़ी देख

चाहत

तुम्हारी चाहत में, आज तक जीता आया हूँ, न जाने क्यूँ तुम कोअपना न बना पाया हूँ...... तुम्हारा वो धीरे से पास आना, हौले से मुस्कराना दिल को बदहवास कर, वापस लौट जाना समझ न पाया हूँ....... दिल को अपने मैं अभी न संभाल पाया हूँ, लेकिन पता नहीं क्यों फिर भी तुम्हारी चाहत में जीता आया हूँ.........     

युवा पीढी - शिक्षा और संस्कार

शिक्षा जो पुस्तकों और विद्यालय के माध्यम से प्राप्त होती है उसके अतिरिक्त भी ज्ञान अर्जित करने के साधन मौजूद हैं जो प्रकृति प्रदत्त हैं। जीव जब गर्भ में आता है तभी से उसको संस्कार व शिक्षा मिलने लगती है और वह संस्कारों व शिक्षा को अपने अवचेतन मस्तिष्क में ग्रहण करने लगता है। इसके अनेक ज्वलंत उदाहरण इतिहास में मौजूद हैं, जैसे वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, भक्त ध्रुव आदि। वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि जीव जब गर्भ में पलता है तभी से उसकी माता की सोच और व्यवहार का गंभीर असर उस पर पड़ता है तथा उसके आने वाले जीवन की दिशा प्रभावित होती है। वेद, पुराण व अन्य धार्मिक ग्रंथों से भी इन तथ्यों को बल मिलता है कि माता को अपने आचार विचार पर विशेष ध्यान देना चाहिये और वह सात्विक, पवित्र एवं सकारात्मक हो, क्योंकि यह सीधे रूप से गर्भस्थ शिशु को प्रभावित करते हैं। प्रकृति के निकट रहने पर बच्चा हर पल कुछ न कुछ मौलिक रूप से सीखता ही रहता है। बच्चा जब धीरे- धीरे समझदार व चैतन्य होता है तो उस पर घर के वातावरण के अतिरिक्त मुहल्ले,गाँव, शहर के वातावरण का प्रभाव भी पड़ता है और जाने-अनजाने में बच

'जुगाड़' के पीछे का विज्ञान...

चित्र
अनेकों अविष्कार के जनक के रूप में दुनिया भर में भारत  की अपनी एक पहचान है। वही भारत को जुगाड़ों का देश भी कहा जाता है। हर भारतीय चाहे वह अपने देश में रहता हो या विदेश में वह जुगाड़ शब्द से भलीभाँति परिचत होगा। जुगाड़ शब्द बोलचाल की भाषा से निकला शब्द है जिसको हम परिभाषित तो नहीं कर सकते पर जुगाड़ शब्द का अर्थ किसी काम को ट्रिक से करना कह सकते हैं या ट्रिक का ही देशज रूप है। परन्तु जुगाड़ के पीछे भी अपनी एक तकनीक होती है।जुगाड़ बनाना और जुगाड़ का प्रयोग करना अपने में कला है जो हर किसी के पास नहीं होती। देखा जाये तो जुगाड़ से बना कोई भी इनोवेशन कुछ नियमों पर आधारित होता है- 1.जुगाड़ करने का अवसर प्रतिकूल परिस्थितयों में प्राप्त होता है इसलिए टाटा और अम्बानी तो जुगाड़ करने से रहे...... 2.कम में ज्यादा पाने की कला आनी चाहिए.... 3. साथ ही बहुत ही लचीले ढंग से काम करना आना चाहिए। यह कला "सीधी अंगुली से घी न निकले तो अगुली टेढी कर देनी चाहिए" मुहावरे पर  काम करती है। 4. जुगाड़ में अधिक लागत लगाने का मौका नहीं होता इसलिए तो माइक्रोसॉफ्ट,गूगल जैसी कंपनियाँ जुगाड़ करती नजर न

तीज पर भारी टमाटर.........

चित्र
आज की शाम तीज के त्योहार की मस्ती के नाम रही। हरे रंग की साड़ी,चूड़ी पहने सोलह श्रृगांर किये एकत्र महिलाओं के कारण वहाँ का माहौल भी रंगीन हो गया था। हँसी-मजाक हो रहा था। सभी एक दूसरे से पूछ रहे थे कि आज क्या स्पेशल बनाया।बस सब्जी का टॉपिक शुरू हो गया।"क्या बनायें कोई ढंग की सब्जी ही नहीं आ रही है, टमाटर के दाम तो आसमान छू रहे हैं..... बिना टमाटर के तो सब्जी में स्वाद है, न रौनक, टमाटर बिन सब सून .......! " सब हँसने लगे। टमाटर पुराण शुरू हो चुका था। टमाटर तो सौ का आंकडा पार कर गया है, ऐसा लगता है कि टमाटर के दर्शन करो और फिर फ्रिज में रख दो। ऐसा लग रहा था कि आज की शाम का मुख्य आकर्षण टमाटर ही है,  बस उसी के विषय में सब बातें करना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर भी टमाटर ट्रेंड में है, खूब चुटकियाँ ली जा रहीं हैं-          "टूटते हुए रिश्तों को बचाइये..           बिन बुलाये अपनों के घर जाइये..                     फल-मिठाई,न सही..          कुछ 🍅🍅 टमाटर 🍅🍅           ही ले जाईये..."                    😊😊😊😊😊😊         "हमें दहेज में कुछ नहीं चाहि

श्रावण या हरियाली तीज

चित्र
श्रावण का महीना धार्मिक के साथ ही साथ प्रकृति की दृष्टि से भी बहुत महत्तवपूर्ण है। वर्षा की ठंडी फुहार से मौसम सुहाना हो जाता है एवं तपती गर्मी से छुटकारा मिलता है।चारों ओर हरियाली छा जाती है।श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है। उत्तर भारत में इसे सिंधारा तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विवाहित लड़कियों के लिए मायके से उनकी ससुराल में फल,नमकीन, मिठाई विशेष रूप से घेवर,गुझिया आदि  और श्रृगांर का सामान भेजा जाता है। मायके से आने वाले  सामान का हर महिला इंतजार करती है क्योंकि विवाह के बाद लड़कियों का अपने मायके से प्रेम कम नहीं होता। नाना प्रकार की खाने की चीजों में उसे अलग स्वाद आता है, आये भी क्यों ना, आखिर उन सब में उन्हें अपनी माँ,भाभी का प्यार जो मिलता है। शायद इसीलिए इन त्योहारों में सामान भेजने की प्रथा बनायी गयी हैं ताकि बेटियाँ दूर रहते हुए भी मायके से जुड़ाव महसूस करें और छोटी-छोटी बातों में मायके के प्यार का अनुभव करें। कल तीज का त्योहार मनाया जायेगा माना जाता है अनेक सालों की  कठोर तपस्या के बाद पार्वतीजी का महादेव से मिलन इसी दिन हुआ था।इस

क्यों है श्रावण भगवान शिव का प्रिय महीना?

कहा जाता हैं श्रावण भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता है।इसके पीछे की मान्यता यह है कि दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया। उसके बाद उन्होंने हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पुरे श्रावण महीने में कठोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की ।अपनी पत्नी से पुनः मिलन के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह माह अत्यंत प्रिय है।यही कारण है कि इस माह में कुमारी कन्याएं अच्छे वर के लिए शिवजी से प्रार्थना करती हैँ।    ऐसी मान्यता है कि श्रावण के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकर अपने ससुराल में विचरण किया था जहाँ अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्तव बताया गया है। धार्मिक मान्यानुसार श्रावण माह में ही समुंद्र मंथन हुआ था जिसमे निकले हलाहल विष को  शिव ने ग्रहण किया जिस कारण उन्हें नील कंठ का नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने से सृष्टि को  बचाया और सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष  स्थान है।    वर्षा ऋतु में भगवा

एक रसोईये का प्रेम पत्र

अलग-अलग व्यवसाय करने वाले लोग प्रेम पत्र लिखें और उसमें उनके व्यवसाय के शब्दों की प्रधानता हो तो सोचिए क्या दृश्य होगा! चलिए देखते हैं रसोईये का प्रेम पत्र........ मेरी प्रिय इमरती,  जब से तुम मेरा पान जैसा दिल लेकर पिहर गई हो तब से मेरी जिन्दगी बिन नमक की सब्जी जैसी बेस्वाद हो गई है। अभी हमारे प्यार का अचार पूरी तरह से तैयार भी नहीं हो पाया था कि उसमें फफूंद लग गई क्या तुम्हारा प्यार दूध का उफान था जो शीघ्र ही बैठ गया। मेरी आँखों में तो अब तक तुम्हारी  रोटी जैसा गोल चेहरा जो बसा हुआ है। मैं अपनी शक्कर जैसी मीठी मुलाकातें भुल ही नहीं पाया।        प्यारी इमरती, तुम्हारे बिना जिन्दगी की रसोई अधूरी है। जब भी दो बर्तन टकराते हैं, तुम्हारी याद ताजा हो जाती है। मैं तुम्हारी सेवईयाँ रूपी जुल्फों के सपने देखने लगा हूँ। अब एहसास हुआ की तुम हलुए के जैसी नरम व मुलायम हो,तुम मेरे बनाये स्वादिष्ट व्यंजन के बगैर नहीं रह सकती, इसलिए मेरे जीवन रूपी चाट में छौंक लगाने लौट आओ, तुम्हें तुम्हारी फेवरेट मिठाई की कसम जल्दी आना इमरती।                                            तुम्हारा    

महादेव की लीला न्यारी

देवों के देव कहलाए जाने वाले महादेव यानी भगवान शिव की लीला न्यारी है। इनके 1008 नाम भी इनके विभिन्न रूपों की तरह निराले एवं अनूठे हैं।जीवन का हर पहलू एवं हर घटना अपने आप में अद्वतीय एवं चमत्कारिक है।हर हाल में खुश रहने वाले भगवान शिव अपने भक्तों से भी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे भोले -भाले भगवान शिव वास्तव में महान हैं। हिन्दू धर्म में प्रधान देवताओं यानी ब्रह्मा, विष्णु , महेश का अपना अपना विशिष्ट स्थान है और इनमें से भगवान शिव की अपनी अलग ही भूमिका एवं छवि है। सृष्टि का संहार करने वाले शिव नए सृजन में सहायक तो हैं हीं साथ  ही जीवनदायी भी हैं। शिव प्रलयंकारी हैं तो महाकारूणिक भी। शिव एक होते हुए भी अनेक रूपों में हैं और हर रूप की अपनी गरिमा एवं महानता है। माना जाता है कि भगवान शिव प्राणियों के कल्याण हेतु लिंग रूप में वास करते हैं। जिस-जिस पुण्य स्थान पर भक्तजनों ने उनकी अर्चना की, उसी स्थान पर वे प्रकट होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए अवस्थित हो गये। ज्योतिर्लिंग की संख्या 12 मानी गयी है। कहा जाता है कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो ज

वाह रे टमाटर 😊

मारा-मारा जो फिरा, गलियों ंमें बेहाल। वही टमाटर हो गया, देखो माला माल।। सड़कों पर फेंका गया, जैसे कोई अनाथ। नहीं टमाटर आ रहा, आज किसी के हाथ।। भाव टमाटर का हुआ, अब अस्सी के पार। अच्छे-अच्छे देखकर, टपका रहे हैं लार।। बिना टमाटर के नहीं, अच्छी लगे सलाद। भोजन सब बेकार, बिना टमाटर स्वाद।। बिना टमाटर के लगे, घर का फ्रिज बेकार। जैसे साली के बिना,लगती है ससुराल।। एक टमाटर सूँघकर, दिल भर लेते आज। बिना टमाटर रो रही, फफक-फफक कर प्याज।। जब सड़ते थे टमाटर, तब न समझा मोल। आज टमाटर हो गया, सब किचिन से गोल।। आंनदित हों आप सब, देख टमाटर लाल। बिना टमाटर खाईये, अब अरहर की दाल।।

प्यार भरी 'चीटिंग'

बच्चे के दवा न खाने पर लड्डू में दवा छिपाकरखिला देना ,खाना न खाने पर कहानी सुनाने का लालच देनाऐसे ही न जाने कितने  प्यार भरे पैंतरे माँ बच्चों से काम कराने के लिए बचपन में अपनाती हैं और कुछ समय बाद जीवन के एक मोड़पर दोनों के रोल बदल जाते हैं ब च्चे  बड़े होकर माँ को उसी निश्छल प्यार से संभालते हैं।  ऐसे ही  सतीश की शादी हो गयी थी माँ बहुत खुश थी बहू डॉक्टर होने के साथ समझदार भी थी।रात को सोते समय माँ ने नींद की गोली माँगी तो बहू ने नींद की गोली रोज खाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया पर वे बार-बार यह कहकर की गोली के बिना मुझे नींद नहीं आयेगी बहू से गोली देने की जिद्द कर रहीं थी पर बहू भी आज अपनी बात पर अड़ी थी। बेटा सब सुन रहा था।माँ ने बेटे को जोर से अवाज लगायी और नींद की गोली देने के लिए कहा बेटे ने एक बार भी मना किये बिना जेब से एक दवा का पत्ता निकाला और एक गोली निकालकर माँ के मुँह में रख पानी पिला दिया।पानी पीकर माँ आर्शीवाद देती हुई सो गई।पत्नी ने गुस्सा होते हुए कहा- तुमने यह ठीक नहीं किया उसने बिना कुछ कहे पत्ता पत्नी को दे दिया।विटामिन की गोलियाँ देखकर वह मुस्कराने
नमस्ते, आज मैं, सरगम अपना ब्लॉग "रंगीली रंगोली" नाम से शुरू करने जा रही हूँ। रंगोली के रंगो की तरह ही अलग-अलग रंगो से सजी रचनाएं मैं आप तक पहुँचा सकूँ, यही मेरा प्रयास रहेगा।आशा है कि आप सभी को मेरा ब्लॉग पसंद आयेगा व आप सभी समय-समय पर अपने विचारों से अवगत कराते रहेंगे। ब्लॉग की शुरूआत ' बरखा रानी' को समर्पित एक अपनी कविता से करती हूँ- घुमड़-घुमड़ काले मेघा आये, सबके मन हर्षाये,                            रिमझिम-रिमझिम बारिश होगी                            तपती गर्मी की छुट्टी अब होगी। धरती का श्रृगांर होगा, हरा-भरा संसार होगा।                           चारों ओर हरियाली होगी,                           पग-पग पर खुशहाली होगी। मोर पपीहा गायेंगे,  दादुर शोर मचायेंगे।                          चिड़िया भी चहचाहयेगी                           हर मन को हर्षायेंगी। आओ मिलजुल कर नाचें गायें वर्षा का आन्नद उठायें                         इंद्रदेव की महिमा न्यारी                         वर्षा रानी, तुम सबको लगती प्यारी। 

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हाथी घोड़ा पाल की...जय कन्हैया लाल की..!!

यादें याद आती हैं....बातें भूल जाती हैं....

माता-पिता ईश्वर की वो सौगात हैं, जो हमारे जीवन की अमृतधार है!