हम सबमें एक आत्मा है, जो चेतन है, जो शांत है, और प्यार से भरपूर है लेकिन वह बुद्धि, जड़ता व भ्रम के परदों से ढ़की हुई है | हमारी आत्मा सदैव प्यार व आनन्द
की अवस्था में रहना चाहती है | मन अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए इसे रोकता
है | मन को सांसारिक चीज़ो में मजा आता है | दुर्भाग्यवश उक्त सारे आकर्षण
क्षणभंगुर है | क्योंकि इन्हें हमसे कभी भी वापिस लिया जा सकता है, यह नष्ट हो सकते हैं अथवा गुम हो सकते हैं एवं हमारा मन भी अपेक्षाकृत इन
दुःख तकलीफों से गुजरता है | इसीलिए हमारा जीवन भी एक चक्र की भांति है जिसमें
हमें दुःख और सुख क्रमशः अनुभव होते रहते हैं |
यदि हम अपनी आत्मा व स्वयं को
जान पाएं अथवा पहचान पाएं तो हम सदा प्रसन्नचित्त व शांत अवस्था में रह सकते हैं |
जो संत महात्मा अपनी आत्मा को पहचान चुके हैं वे चाहते हैं कि अन्य लोग भी इस
सुन्दरतम् अनुभूति को अपने अंदर अनुभव करें | मानवता व इंसान के दुःखों को दूर
करने के लिए वे अक्सर दूसरों को समझते हैं कि अपनी आत्मा को कैसे पाया व पहचाना
जा सकता है |
महात्मा बुद्ध की गणना संसार के
सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक गुरूओं में होती है | उन्होंने भी संसार को चेतना का ही
मार्ग दिखाया | उनसे किये गए एक प्रश्न से ज्ञात होता है कि किस तरह हम संतों
महात्माओं के विवेक का लाभ उठा सकते है | उदाहरण के लिए, एक दिन गांव के मुखिया
ने महात्मा बुद्ध को बुलाया और पूछा, ‘’क्या आप सभी जीवों के प्रति
दयालु हैं?’’ बुद्ध ने जवाब दिया, हां | मुखिया ने आगे पूछा, ‘’क्या आप अपनी शिक्षाएं कुछ लोगों को देते हैं, कुछ नहीं भी?’’ महात्मा बुद्ध ने इसके प्रत्युत्तर में एक कहानी सुनाई। उन्होने कहा कि
इस स्थिति की तुलना एक किसान से करते हैं | उदाहरण के तौर पर एक किसान के पास तीन
अलग-अलग प्रकार के जमीन के टुकड़े थे| एक जमीन की मिट्टी बहुत उपजाऊ थी, दूसरी जमीन ठीक-ठाक थी तथा तीसरी जमीन की मिट्टी खराब थी यानि बंजर थी
जिसमें ज्यादा कुछ न उग सकता था | हम यह भी मान लेते हैं कि किसान को उनमें बीज
बोने थे | आपको क्या लगता है कि वह किस जमीन में उसे बोएगा?
मुखिया ने जवाब दिया, ‘’वह उसे उपजाऊ जमीन में बोएगा| उसके पश्चात् बाकी बीज ठीक-ठाक जमीन में
बोएगा| शायद वह खराब या बंजर जमीन में बीज न बोए | बीज को खराब करने की अपेक्षा
जानवरो को खिलाने में उनका इस्तेमाल कर सकता हैं | महात्मा बुद्ध ने समझाया, ‘’आध्यात्मिक ज्ञान के साथ भी ऐसे ही होता है | जो शिष्य बुद्ध बनना चाहते है, जो सत्य की तलाश में हैं, वह उपजाऊ जमीन की भांति ही हैं। वे ज्ञान को पूरी तरह समझते हैं | वे पूरी तरह
से चेतनता के अभ्यास को सीखते हैं | शिष्य मेरे पास रोशनी के लिए शरण
में आते हैं और तब मै उन्हें अपनी सारी शिक्षाएं देता हूं क्योंकि उन्हें यही
चाहिए |’’
आगे बुद्ध ने कहा, ‘’जो लोग ठीक ठाक जमीन की भांति होते हैं लेकिन वे अपनी पूरी जिंदगी केवल
ज्ञान की ओर नहीं लगाते ऐसे लोगों को भी मैं पूरा ज्ञान देता हूं | वे भी मेरे पास
प्रकाश के लिए आते हैं, मेरी शरण में आते हैं|
अतः वे लोग जो
आध्यात्मिक ज्ञान को पाना ही नहीं चाहते जो बंजर भूमि की भांति होते हैं | जो सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं
फिर भी मैं उन्हें भी पूरा आध्यात्मिक ज्ञान देता हूं |’’ आश्चर्यचकित मुखिया बोला, ‘’आप अपना ज्ञान उन्हें क्यों देते हैं जो सुनने को भी
तैयार नहीं है? क्या यह सब बेकार नहीं है? इस पर महात्मा बुद्ध ने कहा, ‘’यदि किसी दिन
वे मेरे द्वारा प्राप्त ज्ञान में से एक वाक्य भी ग्रहण कर दिल में लेंगे तो उन्हें
उससे लम्बे समय तक खुशियां व आशीर्वाद मिलेगा | तभी मुखिया को समझ आया कि महात्मा बुद्ध अपना ज्ञान समस्त संसार
को बांटने आए हैं | चाहे उसके लिए कोई
तैयार हो या न हो | क्योंकि एक दिन अवश्य वे भी तैयार होंगे |
हम भी
इस कहानी से बहुत कुछ सीख ले सकते हैं |
क्या हम बहुत उपजाऊ मिट्टी की भांति होना चाहते हैं, ठीक-ठाक मिट्टी की भांति
होना चाहते हैं अथवा बंजर खराब मिट्टी की भांति होना चाहते हैं | आत्मा उपजाऊ
मिटृी की भांति होना चाहती है। हमारी आत्मा बिलख रही है कि हम उसके विकास के लिए
उपजाऊ मिट्टी को तैयार करें | आत्मा चाहती है कि हम उपजाऊ मिट्टी की भांति हो
ताकि वह एक फलदार वृक्ष बन सकें जो सबको फल व छाया दे | हमारी आत्मा स्वयं को
जानने व पहचानने के लिए तड़प रही है वह मन को शांत करना चाहती है ताकि वह अपनी
शक्ति व गौरव को पूरी तरह अनुभव कर सके |
हममे उपजाऊ मिट्टी को तैयार करने का सामर्थ्य है | खराब मिट्टी के कारण हमारी आत्मा
को बहुत तकलीफ होती है जब संतों द्वारा विवेक के बीज फैलाए जाते हैं और बंजर जमीन
उसे अपने ह्रदय में नहीं समा पाती |
संत
महापुरूष जो दया व प्रेम के महासागर हैं, सत्य, प्यार व प्रकाश के बीज हमारे आस-पास फैलाते रहते हैं | क्या हमारी उर्वरा मिट्टी इसके लिए तैयार है?
अथवा क्या यह विवेक के बीज बेकार हो जायेंगे ?
हम अपने
अंतःकरण की जमीन इस तरह तैयार करें कि सतगुरू द्वारा प्रदान किया जाने वाला समस्त
ज्ञान उसमें बोया जा सके और हम आध्यात्मिक जागृति को प्राप्त कर सकें | जमीन की तैयारी के लिए हम प्रतिदिन ध्यान-अभ्यास
करें ताकि हमारा मन शांत और ग्रहणशील बन सके | हम अपने जीवन को शांत, संतोषी और उन इच्छाओं से
रहित बनाएं जो हमें सदाचार के मार्ग से डिगा देती हैं| इच्छाएं हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार की ओर ले जाती हैं | ये पांच
चोर हमारी आत्मिक शांति को भंग करते हैं और ध्यानाभ्यास में बाधा डालते हैं | वे
हमारे मन को हमेशा अशांत और चिंतित रखते हैं | इच्छाओं को वश में करके हम अपनी
जमीन को उपजाऊ बनाते हैं ताकि आध्यात्मिक वरदानों को ग्रहण कर सकें | प्रेम और निष्काम
सेवा का जीवन जीना, जमीन से खरपतवार हटाकर उसे उपजाऊ बनाना है ताकि उसमें जीवनदायक
फल पैदा हो सकें |
ध्यान–अभ्यास के लिए बैठना उपजाऊ जमीन में खेती-बाड़ी
करने जैसा है | जमीन को तैयार करो ताकि आत्मा उसमें फल-फूल सके | आत्मा के लिए
सबसे अच्छी जमीन वही है जो प्यार, नम्रता, सच्चाई, पवित्रता और निष्काम सेवाभाव से रची-बसी
हो और जिसमें ध्यान-अभ्यास द्वारा अंतरीय ज्योति एवं शब्द की खेती की जाए |
ऐसी उपजाऊ जमीन में ही संतों की महान शिक्षाएं फलती-फूलती हैं और हम आध्यात्मिक
जागृति को पा लेते हैं |
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