कारण और प्रभाव का संबंध अधिकांश धर्मों के दर्शन का मुख्य
बिंदु होता है। यह विश्वास दूसरों के लिए अच्छे कर्म करने की भावना को पैदा करता
है। हमारे कर्म संभवतः पूरे ब्रह्मांड को प्रभावित करते हैं। किसी भी व्यक्ति के कर्म
हम पर शारीरिक प्रभाव के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी छोड़ते हैं। ये कर्म हमारे
भौतिक शरीर के साथ-साथ हमारी मानसिकता को भी बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं।
वास्तविकता तो यह है कि दोनों के बीच बहुत गहन संबंध होता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना
है कि हमारे अंदर जितनी अधिक अपराध भावनाएं होती हैं, यह
हमारे लिए उतना ही अधिक नुकसानदायक होता है। जो लोग अपराध भावना से मुक्त रहकर कार्य
करते हैं, वे प्रकृति के क्रोध से बचे रहते हैं।
अगर देखा जाए तो शुद्ध रूप से
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हमारे कर्मों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि यदि
सीमित समय के लिए किसी बुरी आदत को आपनाया जाता है और इसे जारी रखा जाता है तो इससे
होने वाले नुकसान की भरपाई तो आसानी से की जा सकती है। परंतु, यदि इस प्रवृत्ति को
लंबे समय के लिए जारी रखा जाता है, तो इससे होने वाला नुकसान अधिक गंभीर होता है
जो मुश्किल पैदा कर सकता है। यदि इसके बावजूद भी इसको जारी रखा जाता है, तो इससे
होने वाला नुकसान असाध्य ही होगा। बार-बार बुरे कर्म करने की प्रवृत्ति किसी भी
व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व में प्रतिकूल घटनाओं को जन्म देती है और नकारात्मक
मानस को जन्म देती है।
कर्मों का आध्यात्मिक अर्थ यह है कि
हमारी प्रत्येक क्रिया ब्रह्मांड में ऊर्जा की वह शक्ति उत्पन्न करती है जो उसी
रूप में वापस लौटकर आती है। शायद इसलिए कहा गया है कि हम जो बोते हैं वही हमें काटना
पड़ता है। यदि हम ऐसे कार्यों का चुनाव करते हैं जो दूसरों के जीवन में सफलता और
खुशी लाएं, तो निःसंदेह हमारे जीवन में भी ऐसा ही होगा क्योंकि क्रिया की
प्रतिक्रिया एक वैज्ञानिक तथ्य होने के साथ-साथ एक प्राकृतिक सत्य भी है।
हम अपने जीवन में कभी जानबूझकर और कभी
अनजाने में कर्मों को करते रहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि हम अपने कर्मों का
चुनाव करें तो कैसे करें? इस
दुविधापूर्ण स्थिति में कर्मों का चयन करने में हमारी मदद करने वाला अत्यंत सरल
सूत्र यह सोच रखना है कि अगर किसी अन्य व्यक्ति ने मेरे लिए भी ऐसा ही कर्म किया
है तो मुझे कैसा महसूस होगा। जो कर्म दूसरों को खुशी, प्रसन्नता और सफलता प्रदान
करते हैं, केवल उन्हीं कर्मों को किया जाना चाहिए और जो कर्म दुःखी करते हैं,
अवसाद देते हैं और नकारात्मक भावनाओं को पैदा करते हैं उनसे से बचना चाहिए। स्वयं
की आवाज़ जिसे हम अंतरात्मा की आवाज़ कह सकते हैं, स्थिति को उपयुक्त बनाने में
हमारा मार्गदर्शन करती है। अंतरात्मा का संदेश हमारे शरीर द्वारा भी व्यक्त किया
जाता है। यदि हमारा शरीर बेचैनी का संकेत भेजता है, तो संभवतः विकल्प शायद सही
नहीं होगा। इसलिए, हमारे कर्म हमारे भाग्य का फैसला
प्रत्येक क्षण करते रहते हैं।
कर्मों का सिद्धांत स्पष्ट रूप से
कहता है कि हमें अपने सभी कर्मों का भुगतान करना ही होगा। इसलिए, यदि आप वर्तमान
क्षण में किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह
पिछले कर्मों का प्रभाव है और यह वास्तव में हमारे कर्मों द्वारा अर्जित हमारे ऋण
का भुगतान है। कभी-कभी, किसी को परेशानी में देखते हुए हम इस स्थिति को उसके पिछले
खराब कर्मों से जोड़कर सही ठहरा सकते हैं। लेकिन यह एक शाश्वत तथ्य है कि इस
दुनिया में कोई भी पूर्णतया पवित्र या निष्कलंक नहीं है। आज यदि उसे अपने पिछले
कर्मों का फल भोगना है तो कल हमें भी भोगना होगा। यदि आज उसकी बारी है तो कल हमारी
बारी आना भी अवश्यम्भावी है। ब्रह्मांड की लेखांकन प्रणाली आदर्श है। यदि आप इस
समय पीड़ित हैं, तो इस स्थिति का यह समझकर आनंद लें कि आप अपने पुराने बुरे कर्मों
का भुगतान कर रहे हैं। आपको अपने अतीत के बुरे कामों से राहत मिल रही है। यह आपदा
के बजाय एक अवसर है। बाधाओं की स्थिति में भी अपने जीवन में खुश रहने का यही एक
सही तरीका है
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