मेरा जीवन मेरा है
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शालिनी की अरेंज मैरिज हुई थी। उसने मन ही मन सोच रखा था कि ससुराल में सभी से बहुत अच्छे से रहूंगी। घर के कामों में भी होशियार, पढ़ी लिखी समझदार, ससुराल भी अच्छा, सास ससुर ननद देवर सभी अच्छे से रहते!
फिर भी कभी-कभी सास किचन के किसी काम के लिए ...घर के साफ सफाई के लिए... ससुर जी उसके पहनावे के लिए.... देवर कभी खुद के कपड़ों के लिए.... ननंद किसी बात के लिए कभी-कभी बहस कर लेती....! शलिनी जब अपने पति से कभी इस बारे में कुछ कहती तो एक ही जवाब आता, ''मैं क्या कर सकता हूं? ना मैं अपनी मम्मी को कुछ कह सकता हूं ना तुम्हें !''
दिन महीने में बदले और महीने साल में...लेकिन यह सिलसिला चलता रहा और बढ़ता रहा! जब शालिनी को घर में लगभग हर चीज़ के लिए टोका जाने लगा, उसके हर काम में गलती निकली जाने लगी और उसे हर बार एक ही जवाब मिलने लगा कि मैं क्या ही कर सकता हूँ, तो उसने मन ही मन सोच लिया कि यह समस्या मेरी अपनी है!
शलिनी ने सोच लिया कि मुझ में क्या कमी है कि मैं सबको खुश करूँ लेकिन खुद दुखी होकर! मुझे अच्छे से रहने का पूरा अधिकार है! मैं खुशी से रहूँगी! दूसरों से पहले अपनी खुशी का ध्यान रखना ज़रूरी है! जो चीज मुझे अच्छी नहीं लगती.. उसका विरोध भी करूंगी!
ना पसंद चीजों के प्रति आवाज़ उठाई, अपनी मन की बात सबके सामने रखी, दूसरों की छिपाया नहीं बल्कि उसको बता कर सुधारा...शुरू शुरू में कई मन मुटाव हुए...पर धीरे धीरे बदलाव आया...और शालिनी अब पहले से ज्यादा खुश और संतुष्ट थी!
अपनी बेटी से बात करते हुए जब माँ ने उसकी आवाज में एक अलग सी चहक और आत्मविश्वास सुना, तो उनसे पूछने बिना ना रहा गया! और अपनी बेटी का जवाब सुनकर वो निश्चिंत थी कि बिटिया अब बड़ी हो गयी!
शलिनी का एक ही जवाब था, "माँ! अब तुम्हारी सिखायी बात समझ आ गयी है.....मेरा जीवन मेरा है!"
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