रोगों
के उपचार के लिए दुनिया भर में अनेक चिकित्सा पद्धतियों का प्रयोग होता है। भारत
में भी अनेक चिकित्सा पद्धतियाँ जैसे होम्योपैथी, एलोपैथी, आयुर्वेद आदि हैं जिनसे
साधारण और पुराने रोगों का इलाज किया जाता है। यदि हम आयुर्वेद और एलोपैथी की बात
करें, तो, आयुर्वेद भारत की सबसे पुरानी चिकित्सा विधि है जो आदिकाल से लोगों को
निरोगी काया प्रदान करती रही है जबकि एलोपैथी चिकित्सा पद्धति ब्रिटिश शासनकाल में
भारत में आई और जिसने ब्रिटिश शासकों के प्रोत्साहन से देश में अपनी जड़े जमा ली।
अकसर ये सवाल उठता है
कि आयुर्वेद बेहतर चिकित्सा पद्धति है या फिर एलोपैथी। दोनों ही चिकित्सा
पद्धतियाँ लोकप्रिय हैं। लोगों के दोनों चिकित्सा विधियों के विषय में अलग-अलग
विचार हैं। आयुर्वेद व एलोपैथी में से कौन सी पद्धति बेहतर है यह स्पष्ट रूप से कह
पाना तो कठिन है पर इन दोनों चिकित्सा विधियों के फायदे तथा नुकसान के विषय में
विस्तार से जानकर, इनको अच्छी तरह समझ सकते हैं और इनके विषय में अपनी राय कायम कर
निर्णय ले सकते हैं।
इसमें कोई शक नहीं
है कि एलोपैथी चिकित्सा पद्धति संक्रमणों से निपटने में सबसे प्रभावी है। परंतु मनुष्य
की ज्यादातर बीमारियां खुद की उत्पन्न की हुई होती हैं। ऐसी पुरानी बीमारियों के
लिए, एलोपैथी चिकित्सा
बहुत कारगर साबित नहीं हुई है। एलोपैथी से बीमारी को सिर्फ संभाला जा सकता है। वह
कभी बीमारी को जड़ से खत्म नहीं करती क्योंकि मुख्य रूप से इसमें लक्षणों का इलाज
किया जाता है।
ज्यादातर पुरानी
बीमारियों के लक्षण बड़ी समस्या का छोटा सा हिस्सा होते हैं, एवं
एलोपैथी में इन ‘छोटे हिस्सों’ का इलाज किया जाता है। असल में अब यह उपचार का एक
स्थापित तरीका बन गया है, चाहे आपको मधुमेह हो, उच्च रक्तचाप या दमा, डॉक्टर
आपसे इसी बारे में बात करते हैं कि बीमारी को संभाला कैसे जाए। वे कभी उससे
छुटकारा पाने की बात नहीं करते।
जहाँ तुरंत इलाज की जरूरत
हो जैसे कि हार्ट अटैक, सीवियर इन्फेक्शन, एंजियोप्लास्टी आदि में एलोपैथी
काफी फायदेमंद है। साथ ही एलोपैथी में सर्जिकल ऑपरेशन के लिए ज्यादा बेहतर
सुविधाएं, इंजेक्शन और एंटीबायोटिक्स की बड़ी श्रृंखला मौजूद है। इस
पद्धति से इलाज से रोगी को तुरंत आराम आ जाता है इसलिए सलाह दी जाती है कि अगर आप
बहुत गंभीर स्थिति में हैं, तो किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाना सही नहीं होगा। कुछ
बीमारियों के लिए एलोपैथी में कोई निदान उपलब्ध नहीं हैं। उदाहरण स्वरुप, उदर
रोगों का परीक्षण कठिन होता है तथा उसके सकारात्मक परिणाम भी नहीं मिल पाते। उदर
रोगों का जितना सटीक एवं सफल उपचार आयुर्वेद में है, उतना एलोपैथी में नहीं है।
मगर जब आपकी समस्याएं
हल्की होती हैं, और वे उभर रही हो, तो
आयुर्वेदिक उपचार और दूसरी प्रणालियां उपचार के बहुत प्रभावशाली तरीके हैं। आयुर्वेदिक
चिकित्सा पद्धति इम्युनिटी बढ़ाने, रोगों से बचाव हेतु एवं बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए उत्तम पद्धति है। आयुर्वेदिक
दवाओं के साइड इफेक्ट कम होते हैं क्योंकि अधिकांश दवाएं प्राकृतिक पदार्थों से
बनती हैं जिसके कारण ‘रिएक्शन’ कम होते हैं। आयुर्वेद में सिद्धांत है कि इंसान
कभी बीमार ही न हो, और इस के हेतु छोटे- छोटे उपाय हैं जो बहुत ही आसान हैं और
उनका उपयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है, जबकि एलोपेथी के
पास इसका कोई सिद्दांत नहीं है|
आयुर्वेद की दवाएं गाँवों में भी आसानी
से उपलब्ध हो जाती हैं, जबकि एलोपेथी दवाएं शहरों में ही
उपलब्ध हो पाती हैं। आयुर्वेदिक दवाएं एलोपेथी दवाओं की तुलना में बहुत ही सस्ती
होती हैं। एक अनुमान के मुताबिक एक आदमी की जिंदगी की कमाई का लगभग 40% हिस्सा बीमारी और इलाज में ही खर्च होता है।
आयुर्वेद का 85% हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और केवल 15% हिस्सा में आयुर्वेदिक दवाइयां आती है, जबकि
एलोपेथी का 15% हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और 85%
हिस्सा इलाज के लिए है।
आयुर्वेदिक दवाओं का साइड इफेक्ट
बहुत कम होता है, जबकि एलोपेथी में सिंथेटिक दवाएं, एलर्जी, साइड
इफेक्ट के साथ-साथ कई बीमारियों का हल भी नहीं मिल पाता। कई
बीमारियों का ऑपरेशन के बिना इलाज नहीं हो सकता। एलोपेथी में दवा को एक बीमारी में
इस्तेमाल करते हैं तो उसके साथ दूसरी बीमारी अपनी जड़े मजबूत करने लगती है।
आयुर्वेद के जानेमाने विशेषज्ञ डॉ
रामनिवास पराशर का कहना है कि आज भी
मानसिक अवसाद से बचने के लिए लोग किसी भी पैथी में इलाज कर रहे हों पर अश्वगंधा औषधि का इस्तेमाल करते हैं। इसी
प्रकार पेट के रोगों के लिए ऐसी कई दवाएं हैं जो आज आयुर्वेद में निर्मित हैं
लेकिन एलोपैथी का हिस्सा बन चुकी हैं।
एलोपैथी और आयुर्वेद के समावेश से
बीमारियों से बचाव और निदान हो सकता है व मरीजों को लंबी उम्र दी जा सकती है। अतः
स्पष्ट है कि एलोपेथी में बीमारियों का इलाज तो है पर बचाव नहीं है वहीं आयुर्वेद
में उपचार के साथ-साथ बचाव भी है। इसलिए एलोपैथी के डॉक्टर भी आयुर्वेद की दवाओं
को प्रोत्साहित करने लगे हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें