उसको नहीं देखा
हमने कभी...
पर उसकी जरूरत क्या होगी,
...हे माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी...
मातृत्व वह भाव है, जो सिर्फ ममता की तरंगों से
तरंगित होता है, और मोह के धागों में बंधकर आनंद के घुंघरुओं
में खनकता है। माँ बनना हर स्त्री के जीवन की मधुरतम अनुभूति होती है। नौ महिने तक
अपने रक्त से सींचकर एक अंश को पालने के बाद असहनीय पीड़ा सहन कर जन्म देना, इस
सुखद एहसास का सिर्फ एक माँ ही अनुभव कर सकती है। नन्हे मासूम फरिश्ते के इस
दुनिया में कदम रखते ही उसका जीवन ही बदल जाता है, उसे सिर्फ और सिर्फ अपने शिशु
की खुशी और भलाई दिखाई देने लगती है, चारों ओर बच्चे की खनकती हँसी सुनाई देती है
और ताउम्र वह उसके हर छोटे–बड़े सुख–दुख मे साथ खड़ी रहती है।
हर माँ, चाहे वह गाय हो, नन्ही सी चिड़िया हो या
जंगल के राजा शेर की पत्नी, सभी अपने बच्चे का पालन पोषण करती हैं और समय आने पर
जीवन जीने के गुरों का प्रशिक्षण भी देती हैं। एक चिड़िया दूर-दूर से अपने बच्चों
के लिए दाना लाती है, और समय आने पर वही माँ उन्हें चोंच से मार मार कर उड़ना भी
सिखाती है। माँ के दिल में हमेशा बच्चे का हित निहित होता है, और इसलिए ही जहाँ वो
अपने बच्चे को कभी दुःख में नहीं देख सकती, वहीँ उसे दुनिया में जीना सिखाने के
लिए खुद रुलाती भी है। और शायद बच्चा भी समझता है है कि कुछ भी हो माँ हमेशा उसके
साथ खड़ी है, इसलिए जब कभी दर्द में होता है तो माँ को ही पुकारता है।
मां ही है जो हमेशा अपने बच्चे की लम्बी उम्र और
सफलता के लिए प्रार्थना करती रहती है। उसकी प्रार्थना में प्रतिदिन अपने बच्चे के
उज्जवल भविष्य की कामना अवश्य होती है। खुद चाहें माँ कितनी ही बीमार ना हो जाए, वो
कभी आराम नहीं करेगी और ना परेशान होगी, पर यदि उसी समय उसके बच्चे को हल्की सी
खरोंच भी आ जाए, तो अपना दर्द भूल वो उसके दर्द को मिटाने में लग जाएगी! और शायद
इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य हो सकती है, पर उसकी
उत्कृष्ट रचना माँ है क्योंकि ईश्वर हर जगह नहीं पहुँच सकता इसीलिए उसने अपने सारे अंश माँ में समाहित कर
दिए।
विज्ञान और तकनीक के युग में कई आविष्कार
हुए, कई विषयों और परिस्थितियों के विकल्प भी खोज लिए गए,
किन्तु शिशु को जन्म देने का सौभाग्य आज भी सिर्फ स्त्री को प्राप्त
है। जब कोई स्त्री मातृत्व सुख से वंचित रह जाती थी तो उसे समाज में अनेक बातें
सुननी पड़ती थी पर अब किसी परिस्थिति में स्त्री सृजन न भी कर पाए, तो ‘सरोगेसी’ के माध्यम से वह दूसरी नारी की मदद से जीवन सृजन कर मातृत्व
सुख प्राप्त कर सकती है यानि विज्ञान भी ईश्वर की इस इच्छा को पार नहीं कर पाया।
माँ, वह है तो ईश्वरीय
छाया सुख देती है, जब 'नहीं' होती
है तब उसके आशीर्वादों का कवच हमें सुरक्षा प्रदान करता है। माँ, वह है जो हर किसी
की और हर किसी के पास होती है। माँ शब्दातीता है, वर्णनों से
परे है।
उसकी
अप्रतिम सुगंध हमारे रोम-रोम से प्रस्फुटित होती है लेकिन हमारी हर महक उसकी आत्मा
से उठती है। पौराणिक काल की पार्वती से लेकर त्रेता युग की सीता तक, द्वापर युग की
यशोदा, कुंती से लेकर राजा-महाराजा के युग की जीजाबाई, अहिल्या देवी तक और कस्तूरबा से लेकर मदर
टेरेसा तक मातृत्व की अद्भुत परंपरा को जन्म देने वाली हर माँ को नमन।
क्योंकि 'जननी जन्मभूमिश्च
स्वर्गादपि, गरीयसी अर्थात
'जननी, जन्मभूमि
स्वर्ग से महान है।'
धरती पर उपस्थित साक्षात
चमत्कार है माँ।
उसके प्रति व्यक्त
सम्मान परिधि से परे है।
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