हिन्दी - भाषा नहीं एक भावना

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भारत की प्यारी भाषा है हिन्दी, जग में सबसे न्यारी भाषा है हिंदी! जन-जन की भाषा है हिंदी, हिन्द को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिंदी! कालजयी जीवनरेखा है हिंदी, जीवन की परिभाषा है हिंदी!  हिंदी की बुलंद ललकार से थी हमने आज़ादी पाई, हर देशवासी की थी इसमें भावना समाई! इसके मीठे बोलों में है ऐसी शक्ति, अपने ही नहीं, परायों को भी अपना कर लेती! हर भाषा को अपनी सखी-सहेली है मानती, ऐसी है हमारी अनूठी अलबेली हिंदी!   संस्कृत से निकलती है हिंदी की धारा, भारतेंदु जयशंकर ने इसे दुलारा! जहाँ निराला महादेवी ने इसको सँवारा, वहीं दिनकर और सुभद्रा ने इसको निखारा! ऐसे महापुरुषों की प्यारी है हिंदी, हिन्द का गुरूर है हिंदी!   विडम्बना है कि हिंदी को राष्ट्र धरोहर मानते हैं, फिर भी लोग हिंदी बोलने में सकुचाते हैं! वैदिक काल से चली आ रही भाषा को छोड़, विदेशी भाषा बोलने में अपनी झूठी शान मानते हैं! पर आज तो विदेशी भी ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ बोलकर, हिंदी संस्कृति के रंगों में रंग जाते हैं!   तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी सभी रंगों को अपनाती, जैसे भी बोलो यह मधुर ध्वनी सी हर के मन में बस जाती। जहाँ कुछ भाषाओं के

इन्टरनेट पर हिंदी


आज के तकनीकी दौर में इन्टरनेट के उपयोग से कोई अछूता शायद ही होगा। 1980 के बाद इंटरनेट सूचनाओं के आदान-प्रदान का सबसे सुलभ साधन बन गया है। इसने मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है।

परन्तु वर्षों से इन्टरनेट पर अंग्रेजी भाषा का ही साम्राज्य रहा है जिसके चलते इसकी उपयोगिता हिंदी जैसी एक वृहद साहित्य सम्माहित करने और कालों से विद्यमान भाषा तक नहीं पहुँच पायी। और यही एक मुख्य कारण भी बना हिंदी की लोकप्रियता कम होने का।

परन्तु अब, इन्टरनेट की दुनिया ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि भले अंगरेजी आती हो लेकिन हिंदी या स्थानीय भाषाओं को हम जिस सहज भाव से आत्मसात करते हैं उस भाव से अंगरेजी को नहीं, चूंकि हिंदी या हमारी प्रादेशिक भाषाएं हमारे अंत:करण में विद्यमान हैं।

और यही कारण है इन्टरनेट पर हिंदी के बढ़ते प्रभाव का।
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सन् 2000 में हिन्दी का पहला वेबपोर्टल अस्तित्व में आया। हिन्दी ने फॉन्ट जैसी समस्याओं से जुझते हुए इंटरनेट पर अपने कदम जमाने शुरू कर दिये। यूनीकोड, गूगल जैसे यूनीवर्सल फॉन्टो ने देवनागरी लिपि को कंप्यूटर पर नया जीवन प्रदान किया है।
 इंटरनेट पर हिन्दी की प्रसिद्धि बढ़ने के कारण हिंदी साहित्य को एक नई ऊर्जा मिली है। आज इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य से संबंधित लगभग सत्तर ई-पत्रिकाएं देवनागरी लिपि में उपलब्ध हैं।

जहाँ पहले हिंदी की रचनाएं केवल पुस्तकों तक ही सीमित थी, वहीं आज फेसबुक पर हिंदी समूह, हिंदी पोर्टल के माध्यम से हर इच्छुक पाठक के पास पहुँच रही है।

आज हिन्दी में ब्लॉग लिखने का चलन बढ़ा है और याहू, गूगल और सभी अन्य आवश्यक वेबसाइटों के हिंदी संस्करण हिन्दी में उपल्ब्ध होने से, जिन्हें अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है वे भी दुनिया भर की जानकारी इंटरनेट का प्रयोग करके प्राप्त कर सकते हैं।

इंटरनेट ने जब से हिन्दी को अपनाया है इसके प्रयोग करने वालों की संख्या बढ़ गयी है। गूगल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, इन्टरनेट को प्रयोग करने वालो में 94% उपयोगकर्ता हिंदी को अधिक पसंद करते हैं।

इंटरनेट पर हिंदी के बढ़ते प्रयोगकर्ता की संख्या के चलते रोजगार के मौके भी बढ़े हैं। अंग्रेजी की तरह ही लोग हिंदी टाईपिंग, लेख लेखन आदि हेतु लोगों की खोज कर रहे हैं।

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आने वाला समय हिंदी का है। आज के समय में न तो हिंदी की सामग्री की कमी है और न ही पाठकों की।

हिंदी का एक मजबूत पक्ष यह भी है कि यह जन जन  की भाषा बन चुकी है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने के लिए अपने कदम बढ़ा चुकी है, बस आवश्यकता मजबूत इच्छाशक्ति की।

   

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