हिन्दी - भाषा नहीं एक भावना

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भारत की प्यारी भाषा है हिन्दी, जग में सबसे न्यारी भाषा है हिंदी! जन-जन की भाषा है हिंदी, हिन्द को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिंदी! कालजयी जीवनरेखा है हिंदी, जीवन की परिभाषा है हिंदी!  हिंदी की बुलंद ललकार से थी हमने आज़ादी पाई, हर देशवासी की थी इसमें भावना समाई! इसके मीठे बोलों में है ऐसी शक्ति, अपने ही नहीं, परायों को भी अपना कर लेती! हर भाषा को अपनी सखी-सहेली है मानती, ऐसी है हमारी अनूठी अलबेली हिंदी!   संस्कृत से निकलती है हिंदी की धारा, भारतेंदु जयशंकर ने इसे दुलारा! जहाँ निराला महादेवी ने इसको सँवारा, वहीं दिनकर और सुभद्रा ने इसको निखारा! ऐसे महापुरुषों की प्यारी है हिंदी, हिन्द का गुरूर है हिंदी!   विडम्बना है कि हिंदी को राष्ट्र धरोहर मानते हैं, फिर भी लोग हिंदी बोलने में सकुचाते हैं! वैदिक काल से चली आ रही भाषा को छोड़, विदेशी भाषा बोलने में अपनी झूठी शान मानते हैं! पर आज तो विदेशी भी ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ बोलकर, हिंदी संस्कृति के रंगों में रंग जाते हैं!   तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी सभी रंगों को अपनाती, जैसे भी बोलो यह मधुर ध्वनी सी हर के मन में बस जाती। जहाँ कुछ भाषाओं के

सोशल मीडिया....सकारात्मकता या नकारात्मकता बढ़ाने का जरिया??

आज के समय में सोशल मीडिया के इस्तेमाल न सिर्फ स्टेटस सिम्बल के लिए, बल्कि एक जरूरत के रूप में आकार ले चूका है. इस बात में कोई शक नहीं है कि इंटरनेट क्रांति के दौर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के रूप में दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा मिला है. 

फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सप्प, पिंटरेस्ट, टंब्लर, गूगल प्लस और ऐसे ही अनेक प्लेटफॉर्म पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने की ताकत रखते हैं. यह बात कोई हवा हवाई नहीं है, बल्कि इन प्लेटफॉर्म्स ने विभिन्न अवसरों पर अपने महत्त्व को साबित भी किया है. चाहें देशी चुनाव हो अथवा विदेशी धरती पर कोई आंदोलन हो या पर्सनल ब्रांडिग ही क्यों न हो, आज लाइक्स, फोलोवर्स, शेयर जैसे शब्द हर एक जुबान पर छाये हुए हैं. 

एक स्टडी के अनुसार 2014 में भारत के लोकसभा चुनाव में लगभग 150 सीटों पर सोशलमीडिया ने जीत में अपनी भूमिका निभाई थी, वहीं दिल्ली राज्य के बहुचर्चित चुनाव में अरविन्द केजरीवाल द्वारा नवगठित पार्टी ने अपना 80 फीसदी कैम्पेन सोशल मीडिया के माध्यम से ही किया,और परिणाम पूरी दुनिया ने देखा.इसके अतिरिक्त मिश्र देश में हुए आंदोलन में सोशल मीडिया की भूमिका हम सब जानते ही हैं और व्यक्तिगत ब्रांडिग के लिए भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल नेताओं, खिलाडियों, अभिनेताओं द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है.

 थोड़ा और आगे बढ़ा जाये, तो बड़े नेताओं के साथ छुटभैये नेता भी फेसबुक, ट्विटर प्रबंधन और मेलिंग के लिए आईटी- प्रोफेशनल्स से संपर्क साध रहे हैं, या फिर अपने किसी रिश्तेदार, जो इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा हो, या जॉब कर रहा हो, उससे इस संबंध में सहायता ले रहे हैं. आप चाहें गाँव में ही क्यों न हों, आपको तमाम नवयुवक अपने फेसबुक और जुड़े मित्रों से सम्बंधित गतिविधियाँ शेयर करते नजर आयेंगे. पर इन सकारात्मक दृश्यों के पीछे एक कड़वी परत भी दिखती है.जिसमें सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है. मुजफ्फरनगर में पिछले दिनों हुए दंगों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल की खबरे बड़ी तेजी से फैलीं थीं, तो जम्मू- कश्मीर में भी आये दिन इस तरह की खबरें देखने को मिलती ही रहती हैं.इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में नफरत भरे संदेशों को सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाया जा रहा है, कई बार इरादतन और संगठित रूप में तो कई बार बहकावे में युवक- युवतियां ऐसे कदम उठा देते हैं, जो उनकी गिरफ्तारी तक पहुँच जाता है.हाँलाकि, इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जिसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गयी है, उससे इन माध्यमें का गलत इस्तेमाल करने वालों द्वारा फायदा उठाने की संभावना भी बढ़ सकती है. 

अभी हाल ही में कविता कृष्णन और वॉलीवुड के आदर्शवादी बाबूजी कहे जाने वाले सीनियर अभिनेता आलोकनाथ के बीच ट्विटर पर गाली- गलौच किये जाने का शो हावी रहा, जिसके लेकर सोशल मीडिया यूजर्स ने जोरदार, मगर नकारात्मक सक्रियता दिखाई. इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपना वह दर्द नहीं छिपा पाये, जिसे उन्होंने एक लंबे समय तक झेला है.

एक खबर के अनुसार पीएम ने अपने सोशल मीडिया पर सक्रिय सौ समर्थकों से बातचीत के दौरान कहा, सोशल मीडिया पर मुझे जिन भद्दे और गाली जैसे शब्दों का सामना करना पड़ा है यदि उनके प्रिंट निकाले जायें तो पूरा ताजमहल ढक जायेगा.इसके बावजूद पीएम मोदी ने आलोचनाओं को शालीनता से सुनते हुए अपने समर्थकों से परिपक्व बर्ताव करने की नसीहत दी जिसे सराहा ही जाना चाहिए. वो कहते हैं न अपने ऊपर फेंके हुए पत्थरों से जो घर बना ले असली विजेता वही है वैसे मजाक में कहा जा सकता है की शायद सोशल मीडिया पर गाली- गलौच झेलने के बाद ही नरेन्द्र मोदी इसके प्रति सीरियस हुए होंगे और तभी उनको इसकी मजबूती का एहसास भी हो गया होगा. 

वैसे यह एक बात है लेकिन प्रधानमंत्री की दूसरी बात पर गौर करना भी उतना ही आवश्यक है जिसमें पीएम ने कहा है कि उनके समर्थक सकारात्मक सोच रखें क्योंकि गलत भाषा का इस्तेमाल सोशल मीडिया जैसे रोमांचक माध्यम के लिए खतरा हो सकती है. यह बात दूरदर्शी होने के साथ -साथ उतनी ही तथ्यात्मक भी है क्योंकि गाली- गलौच होने से आम जनमानस की रूचि धीरे-धीरे कम होने लगती है और अन्नतः समाप्त हो जाती है. उम्मीद की जानी चाहिए की प्रधानमंत्री की अपील का असर न सिर्फ उनके समर्थकों बल्कि उनके विरोधियों ट्विटर इत्यादि को विवादित स्थल बनाने का प्रयास करने वाले सेलेब्स पर भी पड़ेगा शायद इससे सोशल मीडिया का असली उद्देश्य समझने में सहायता मिलेगी और उनके सही प्रयोग की दिशा में हम एक कदम बढ़ा सकने में सफल होंगे. 

आखिर सोशल मीडिया को विवादित बनाने में आम आदमी का ही नहीं बल्कि सेलेब्स की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है आपको गायक अभिजित भट्टाचार्य का वह विवादित ट्विट तो याद ही होगा जिसमें उन्होंने गरीब आदमी को ‘कुत्ता’ कहते हुए ट्विटर पर लिखा की ‘कुत्ता सड़क पर सोयेगा तो मरेगा ही सड़क गरीब के बाप की नहीं है’.वे बेचारे सलमान खान की चापलूसी या समर्थन कर रहे थे लेकिन खामख्वाह ट्विटर को बदनाम कर गये. इसके अतिरिक्त देश से फरार पूर्व क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी के ट्विट ने राजनीति में उथल-पुथल मचा रखी है. कहने का तात्पर्य यह है की हम आज भी सोशल मीडिया का प्रयोग विवाद फैलाने में या अपनी कुंठित सोच को जाहिर करने में करते हैं मगर हमें अन लोगों से प्रेरणा लेने में क्यों संकोच होता है जो बहतरीन नेटवर्किग एवं ब्रांडिग में इन प्लेटफार्म्स का बेहतरीन उपयोग करते नजर आते हैं. 

अपने देश में खुद प्रधानमंत्री इसके बेहतरीन उदाहरण हैं, जो अपने प्रत्येक मंतव्य को इंटरैक्टिव ढंग से लोगों के बीच जोरदार ढंग से पहुँचाने की कोशिश करते हैं. दूसरे उदाहरणों के रूप में पर्सनल स्टाइल ब्लागर डैनियेला बर्नस्टेन का नाम ले सकते हैं जिन्हें एक इंस्टाग्राम पोस्ट के लिए 10 लाख रूपये तक मिलते हैं. यह पैसे वह ब्रांड देते हैं जो चाहते हैं की उनके प्रॉडक्टस् को 9,92,000 लोग फॉलो करें जो एप पर बर्नस्टेन को फॉलो करते हैं. अब समझा जा सकता है की सोशल मीडिया का प्रयोग इस युवा लड़की ने किस प्रकार किया. विदेशी उदाहरणों की ओर थोड़ा और बारीक दृष्टि से देखें तो एक-एक पेज की बेवसाइट बना बना कर छोटे व्यापारी भी अपने प्रॉडक्ट को वर्ल्डवाइड फैला देते हैं जो संभव होता है सोशल मीडिया के माध्यम से. ब्लॉग, तस्वीर ,पोस्ट इत्यादि शब्द कितने ताकतवर हो सकते हैं हम इन उदाहरणों से समझ सकते हैं. , फेसबुक और ट्विटर पर गाली-गलौच करने वाले हमारे देश के युवा क्या बेहतरीन ब्लॉगर बनकर सूचना के संसार में अपनी जगह नहीं बना सकते हैं?

समस्या सोच बदलने की है जिससे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म्स हमारे लिए वास्तव में उपयोगी साबित हो सकते हैं. जरूरत है इसकी उपयोगिता समझने की, और इसको अपने जीवन में उपयोगी तरीके से ढालने की और इसके लिए हमें नकारात्मकता छोड़नी ही होगी क्योकि इसके सिवीय कोई और दूसरा विकल्प नहीं है.

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