मिल्टन ने कहा था कि "The childhood shows the man, as morning shows the day" जब हम पैदा
होते हैं तो हम क्या जानते हैं?" बेशक, सतही तौर पर यह एक आसान सवाल है। हम सभी में प्रवृत्तियां होती हैं। हम एक चीज़ को चूसना
जानते हैं और इस तरह हम भोजन प्राप्त करते हैं। लेकिन वास्तव में यह सवाल नहीं है।
हर उस वृक्ष में जिसे हम देखते हैं जड़ें होती हैं जिनको हम देख नहीं सकते हैं; हर वह वृक्ष
जिसे हम देखते हैं किसी न किसी प्रकार के बीज से उत्पन्न होता जिसे अब नहीं देखा
जा सकता है। बारिश जो नदी के रूप में एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैल जाती है, वह
कोई नए सिरे से प्रकट नहीं हुई है अपितु वह पहले नदी ही थी जो फिर से नदी बन गयी। जो
सूर्य हर नए दिन की शुभकामनाएं देता है वह ऐसा नया नहीं कर रहा है, अपितु वह
मृत्यु चक्र से वापस लौट रहा है। बसंत कोई जन्म नहीं है, अपितु पुनर्जन्म है। जीवन, मृत्यु और
पुनर्जन्म का यह चक्र मनुष्य के लिए बिल्कुल सटीक है। बच्चे जन्म लेते हैं, एक मनुष्य
के रूप में बढ़ते हैं और पुनर्जन्म लेने के लिए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
इसलिए, जब हम किसी बच्चे को देखते हैं तो दरअसल हम खुद को देखते हैं। फिर भी, बच्चे जड़ वाले पेड़ की तरह होते हैं और बच्चे का रोपड़ बीज और अंडे के
रूप में किया गया था, एक आनुवंशिक मिश्रण। दो लोगों के संसर्ग से एक की उत्पत्ति
होती है। शेक्सपियर ने ठीक ही कहा है, "बच्चे में पिता की छवि निवास करती है।" लेकिन शायद, वर्डसवर्थ ने
ज्यादा सटीक लिखा था कि "Child is the father of man" क्योंकि अगर भावी पिता अशिक्षित और अस्वस्थ है, या किसी उद्योग में कोई अकुशल
मजदूर है तो यह सोचना कोई मुश्किल काम नहीं है कि भविष्य में वह किस प्रकार का
पिता होगा। स्वतंत्रता के बाद से भारत में वंचित लोगों के बच्चों की काफी संख्या
में कुछ सुधार नहीं हुआ है। यह हमारे राजनीतिक विचारकों, अर्थशास्त्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्वैच्छिक संगठनों की मुख्य चिंता होनी चाहिए।
दूसरे शब्दों में, भारत या समाज या किसी परिवार का भविष्य बच्चे पर ही निर्भर करता
है। यदि कोई बच्चा अनपढ़ है, तो कल का भारत भी अशिक्षित होगा और ऐसा ही उस परिवार और समाज के साथ भी होगा।
बच्चों को भी मूल रूप से वयस्कों के समान ही अधिकार प्राप्त होते हैं। चूंकि
वे नाबालिग हैं, इसलिए उन्हें विशेष सुरक्षा की आवश्यकता होती है। वे हमारे समाज का
सबसे कमजोर वर्ग होते हैं। यदि किसी राष्ट्र के भविष्य को सुरक्षित बनाना है तो उन्हें
विशेष देखभाल और संरक्षण देने की आवश्यकता होती है। बाल विकास और कल्याण सामाजिक
विकास के हित में होता है। किसी वयस्क व्यक्ति का आचरण और चरित्र दर्शाता है कि
उसने अपने बचपन में और परिवार में क्या आत्मसात किया है। आज के समय में बाल विकास
बाल श्रम, खराब स्वास्थ्य, गरीबी, औपचारिक शिक्षा की कमी, भेदभाव और अनेकों अनसुलझी सामाजिक समस्याओं से घिरा होता है। किसी बच्चे
के अधिकार की रक्षा करना वह सबसे अच्छा निवेश है जो हम किसी देश के विकास के लिए
कर सकते हैं।
बाल श्रम शायद बचपन के प्रति
सबसे बड़ा पाप है। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के द्वारा राज्य मशीनरी को दृढ़ता
के साथ बाल श्रम की मौजूदा बुराई को रोकने
के निर्देशों के बावजूद भी इसकी संख्या निरंतर बढ़ रही है। बच्चों को कोमल आयु में
काम पर नहीं लगाया जाना चाहिए। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अनेकों बच्चों को काम
पर रखा जाता है और उनके पास अध्ययन करने के लिए समय नहीं रहता है। देश को प्रगति
के लिए शिक्षित पुरुषों और महिलाओं की जरूरत है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 24 में कोमल आयु
वर्ग के बच्चों के संरक्षण पर काफी जोर दिया गया है और उन्हें शिक्षा और कल्याण के
मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। इसके अनुसार, "चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी
बच्चे को किसी भी कारखाने या खान में काम करने या किसी भी अन्य खतरनाक रोजगार में
शामिल होने की अनुमति नहीं होगी"। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के अनुसार संविधान
के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अध्याय में अनुच्छेद 39 में राष्ट्र की नयी पीढ़ी के लाभ के लिए खण्ड (एफ) को निम्न प्रकार से अतिरिक्त
रूप से बढ़ाया गया है: - "बच्चों को स्वस्थ तरीके से और स्वतंत्रता और गरिमा
की स्थिति में विकास करने के अवसर और सुविधाएं दिए जाते हैं और युवाओं को शोषण से
और नैतिक और भौतिक क्षरण के खिलाफ संरक्षित किया जाता है।" इसके विपरीत सच्चाई यह
है कि गरीब माता-पिता अब भी अपनी गरीबी, अज्ञानता और निरक्षरता के कारण चुप रहते हैं। यह जानकारी चौंकाने वाली है
कि हमारे देश में बाल मजदूरों की संख्या ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर है। बच्चों
से माचिस और आतिशबाजी के कारखानों में, कालीन बुनाई, बीड़ी रोलिंग, हीरा उद्योग में काम कराया जाता है। हमारे कस्बों में, गांवों में, बस टर्मिनलों
में, सड़क के किनारे घरों और चाय-स्टालों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे काम
पर लगे होते हैं। दुर्बल युवाओं को बारह घंटे से अधिक समय तक काम करने के लिए
मजबूर किया जाता है और उनको काम के अनुपात में भुगतान नहीं किया जाता है। सुप्रीम
कोर्ट के निर्देशों के बावजूद इस प्रथा को रोकने के लिए अब तक किसी अधिकारी ने रूचि नहीं दिखायी है।
ऐसे बच्चों को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए कानून के बल पर उनके मालिकों को
मजबूर किया जा सकता है ताकि आने वाले वर्षों में उच्च जिम्मेदारियों को संभालने के
लिए वे अच्छे नागरिक बन सकें। दरअसल बाल श्रम गरीबी पैदा करता है। यह न केवल
वयस्कों के लिए नौकरी के अवसर कम करता है बल्कि बच्चों को अकुशल बनाए रखने की
स्थितियां भी पैदा करता है। अंततः यह उनके भविष्य में भी उनके माता-पिता की ही तरह
गरीबी और बेरोजगारी पैदा करता है। कानून ने अपनी भूमिका निभाई है। अब श्रम
अधिकारियों की बारी है कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाएं। मजदूर वर्ग के लिए बेहतर
मजदूरी और सुविधाओं के लिए और विशेष रूप से बाल श्रम के उन्मूलन के लिए किए अंर्तराष्ट्रीय
श्रम संगठन 1919 के बाद से किए गए प्रयासों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
शिक्षा का संवर्धन और वृद्धि, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सुदृढ़ीकरण और उनका बेहतर
प्रवर्तन, गरीबों का सशक्तिकरण, सामाजिक एकरसता और बाल श्रम के सभी प्रकारों के खिलाफ सामुदायिक
संवेदीकरण, नियोक्ताओं और निगमों के बीच उन्नत जिम्मेदारी की वकालत और जागरूकता पैदा
करना ही वंचित बच्चों की उदासीन स्थिति में सुधार करने के लिए अपनाने योग्य सर्वोत्तम
मार्ग हैं। आम जनता में बहुत जागरूकता और करुणा की आवश्यकता है ताकि सड़क के
बच्चों और मलिन बस्तियों में रहने वाले और दूरदराज के गांवों में रहने वाले बच्चों
के बारे में सोचा जा सके और कुछ योजना बनाई जा सके जहां पर उनको बाल मजदूरी पर रखा
जाता है। इस सबसे बड़ी सामाजिक समस्या को नजरअंदाज करना जो भारत में गरीबी का
मुख्य कारण है, न केवल अनैतिक है अपितु देश के संविधान की महान भावना की अवज्ञा भी
है।
बच्चों के वंचित वर्ग की समस्याओं के अलावा बच्चों का विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग भी सामाजिक समस्याओं से ग्रस्त है।
बच्चा विशाल क्षमता का एक स्रोत होता है। माता-पिताओं को उन्हें वह बनने देना
चाहिए जो वे बनना चाहते हैं। उनकी तुलना अपने पड़ोस या रिश्तेदारी में उनके समकक्षों
के साथ न करें। माता-पिताओं को उन्हें सचिन तेंदुल्कर, माइकल जैक्सन, लता मंगेशकर, ब्रिटनी स्पीयर्स आदि दिखाकर उनकी प्रगति की आग को रोकना नहीं चाहिए। वे
शायद अपना नाम इन नामों से भी ज्यादा मशहूर कर सकते हैं। किसी भी उद्देश्य के लिए
काम करते समय कुछ नुकसान होना स्वाभाविक होता है। ऐसे हालातों में माता-पिता को
हमेशा अपने बच्चों के साथ खड़े होना चाहिए और इस तरह की बाधाओं को पार करने के लिए
उनको भावनात्मक सहारा देना चाहिए।
बच्चे को सामयिक
सामाजिक कठिनाइयों से निपटने के लिए विकसित किया जाना चाहिए। एक सक्षम व्यक्ति
होने के स्वस्थ भाव को विकसित करने के लिए एक बच्चे को सीखना होगा कि वह अपनी समस्याओं को कैसे हल कर सकता है। दरअसल,
सफलता IQ + EQ होती है जहां पर IQ बच्चों की संपत्ति है और EQ (भावनात्मक कौशल) माता-पिता द्वारा दी गई ताकत है
जब कोई बच्चा बड़ा
होता है तो माता-पिता की भूमिका बदल जाती है। जब कोई बच्चा छोटा होता है तो उसे माता-पिता
की जरूरत इसलिए होती है कि वह मुख्य रूप से उसकी देखभाल करें और उसके संरक्षक बनें।
अपनी स्कूली उम्र उन्हें उनको प्रोत्साहित किए जाने की करने की जरूरत होती है। जब किसी
बच्चे का सामना तरह-तरह के अनुभवों और लोगों से होता है तो उसे माता-पिता की जरूरत होती है
जो अच्छे और बुरे समय के दौरान रुचि रखें और इसमें लिप्त हों। माता-पिता को अपने
बच्चों को प्रशिक्षित करना चाहिए और उन्हें भावनात्मक समर्थन देना चाहिए कि वे
अपने दम पर समस्याओं को कैसे हल कर सकते हैं। जब आपका बच्चा किसी सामाजिक समस्या
के साथ आपके पास आता है तो आप नीचे दी गई प्रक्रिया का उपयोग करके उसकी सहायता कर
सकते हैं। इस प्रक्रिया का उपयोग करके आप अपने बच्चे को सहारा और प्रोत्साहन दे सकते हैं और उसे समस्याओं का
समाधान करने का तरीका भी दिखा सकते हैं। बच्चे के व्यक्तित्व के उचित विकास के लिए
और किसी जटिल, सामाजिक समस्या के विकास से बचने के लिए माता-पिता द्वारा निम्न द्वारा तत्काल
हल किया जाना चाहिए:
• बच्चे की बात को
ध्यान से सुनना
• समस्या की पहचान
करने में बच्चे की सहायता करना
• मंथन समाधानों में
बच्चे की सहायता करना
• समाधान चुनने में
बच्चे की मदद करना
• परिप्रेक्ष्य में
चीजों का ध्यान रखना
• विभिन्न सामाजिक जिम्मेदारियों
को संभालने के लिए सिखाना
• दोस्तों के साथ
समस्याओं को सुलझाने के लिए बच्चे को अवसर प्रदान करना
एक निष्कर्ष के रूप
में यह कहा जा सकता है कि शारीरिक रूप से चुस्त, सामाजिक रूप से व्यवहार्य और नैतिक रूप से सशक्त बच्चा ही राष्ट्र के
उज्ज्वल और स्वस्थ भविष्य को सुनिश्चित करेगा। इसलिए, हर समझदार नागरिक को प्रतिज्ञा करनी चाहिए, "सैकड़ों फूलों को खिलने
दें। 'आज का बच्चा' एक आदर्श कल के नागरिक के रूप में उभर कर आए और निकट भविष्य में देश को
अपनी उपलब्धियों से गौरवांवित करे।" यही वर्ड्सवर्थ के शब्दवचनों को प्रासंगिक
और सत्य साबित करत सकता है कि "Child is the father of man"(बच्चा मनुष्य का जनक होता है)।
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