हिन्दी - भाषा नहीं एक भावना

चित्र
भारत की प्यारी भाषा है हिन्दी, जग में सबसे न्यारी भाषा है हिंदी! जन-जन की भाषा है हिंदी, हिन्द को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिंदी! कालजयी जीवनरेखा है हिंदी, जीवन की परिभाषा है हिंदी!  हिंदी की बुलंद ललकार से थी हमने आज़ादी पाई, हर देशवासी की थी इसमें भावना समाई! इसके मीठे बोलों में है ऐसी शक्ति, अपने ही नहीं, परायों को भी अपना कर लेती! हर भाषा को अपनी सखी-सहेली है मानती, ऐसी है हमारी अनूठी अलबेली हिंदी!   संस्कृत से निकलती है हिंदी की धारा, भारतेंदु जयशंकर ने इसे दुलारा! जहाँ निराला महादेवी ने इसको सँवारा, वहीं दिनकर और सुभद्रा ने इसको निखारा! ऐसे महापुरुषों की प्यारी है हिंदी, हिन्द का गुरूर है हिंदी!   विडम्बना है कि हिंदी को राष्ट्र धरोहर मानते हैं, फिर भी लोग हिंदी बोलने में सकुचाते हैं! वैदिक काल से चली आ रही भाषा को छोड़, विदेशी भाषा बोलने में अपनी झूठी शान मानते हैं! पर आज तो विदेशी भी ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ बोलकर, हिंदी संस्कृति के रंगों में रंग जाते हैं!   तत्सम, तद्भव, देशी-विदेशी सभी रंगों को अपनाती, जैसे भी बोलो यह मधुर ध्वनी सी हर के मन में बस जाती। जहाँ कुछ भाषाओं के

नारी और आत्मरक्षा...


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सवास्त्रुत्रापफलाः क्रिया।।

अर्थात् जिस कुल में नारी का पूजा-सत्कार होता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती वहाँ सभी क्रिया निष्फल है। इससे स्पष्ट है कि वैदिक भारत में नारी का स्थान पूजनीय व सम्मानित था।

परन्तु, मध्यकालीन युग से लेकर 21वीं सदी तक महिलाओं की प्रतिष्ठा में लगातार कमी आयी जबकि वे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा विकास में भी आधी भागीदार हैं। आज के आधुनिक युग में महिला पुरुषों के साथ ही नहीं बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुकी है। वे राष्ट्रपति से लेकर ज़िला स्तर की योजनाओं का आधार बन चुकी है। महिलाओं के बिना दिनचर्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन इतनी उपल्बधियों के पश्चात भी उसके प्रति विसंगतियाँ बढ़ती जा रही हैं।
पहले यह कहा जा सकता था कि नारी अपने घर में सुरक्षित है परंतु अब विडंबना ही है कि बाहर ही नहीं घर पर भी उसकी अस्मिता पर खतरा मंडरा रहा है। नारी सम्मान व सुरक्षा की दृष्टि से काफी असहाय व असहज अवस्था में है। दिन प्रतिदिन स्त्रियों के साथ छेड़ छाड़ -बलात्कार, दहेज़ हत्या, घर या दफ्तर में यौन उत्पीड़न,  ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता आदि घटनाओं में हो रही वृद्धि को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे नारी को सिर्फ उसकी देह से पहचाना जा रहा है। और इसके चलते उनके सम्मान व सुरक्षा की मांग चारो ओर होने लगी है 
नारी की सुरक्षा को लेकर समाज व सरकार में चिंता उत्पन्न हुई है, जिसके चलते अनेक कानून बनाये व संशोधित किये गये हैं। लेकिन, इन प्रयासों के पश्चात भी नारी के पास अपने आप को समाज में पूर्ण रूप से सुरक्षित करने का एक मात्र उपाय आत्म रक्षा ही है क्योंकि कहा भी गया है “भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करना जानते हैं।“ नारी को समझना होगा कि कब, क्यों और कैसे उसको अपनी सुरक्षा करनी है।
प्रशासन, समाज और सरकार के दायित्व के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि महिलाएं खुद आगे बढ़कर अपनी सुरक्षा को लेकर मुस्तैद रहें जिसके लिए उन्हें जूडो, कराटे, टायक्वांडो, कुंग फू आदि कलाएं सीखनी चाहिए जिनका उपयोग मुश्किल समय में आत्मरक्षा हेतु खासतौर पर उस स्थिति में जब आप बिल्कुल निहत्थे हो, में किया जा सकता है।

मुश्किल घड़ी में हमारा सिक्स्थ सेन्स हमें इशारे करता है कि हम कहां सुरक्षित हैं और कहाँ नहीं। उसपर ध्यान दें। इसके लिए जरूरी है कि आप तनाव और टेंशन से मुक्त रहें और तुरंत निर्णय लेने के लिए हमेशा तैयार रहें।
 कुछ अन्य सुझाव जो आत्म रक्षा में सहायक होंगे -
·         महिलायें किसी भी अनजान पुरुष के साथ अकेले में कही न जाये व इंटरनेट या किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा अनजान व्यक्ति से बातचीत करते वक्त सावधान रहें और उन्हें अपना कोई भी निजी विवरण न दें।
·         घर से बाहर जाते वक़्त हमेशा अपने साथ मिर्च स्प्रे अथवा कोई और विकल्प अपने पास रखना चाहिए।
·         अपने आप को विपरीत परिस्थिति में घिरता देख अपने फ़ोन से इमरजेंसी नंबर या किसी परिजन को व्हाट्सएप्प भी कर सकती हैं।
·         किसी भी अनजान शहर के होटल या अन्य जगह पर रुकना हो तो वहाँ के स्टाफ के लोगों तथा बाकी चीज़ो की सुरक्षा को पहले ही सुनिश्चित कर ले।
नारी सुरक्षा को लेकर सरकार–समाज द्वारा किये जा रहे प्रयास तभी सार्थक होंगे जब  नारी स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगी, अपनी शक्ति को पहचान अपने प्रति हो रहे अत्याचारों के प्रति आवाज उठायेगी, एवं तभी नारी के प्रति पुरूषों के सोच में बदलाव आयेगा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हाथी घोड़ा पाल की...जय कन्हैया लाल की..!!

यादें याद आती हैं....बातें भूल जाती हैं....

माता-पिता ईश्वर की वो सौगात हैं, जो हमारे जीवन की अमृतधार है!